नाट्यशाला ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
मैंने देखे हैंकितने ही
नाटक जीवन में
महान लेखकों की
कहानियों पर
महान कलाकारों के
अभिनय के ।
मगर नहीं देख पाऊंगा मैं
वो विचित्र नाटक
जो खेला जाएगा
मेरे मरने के बाद
मेरे अपने घर के आँगन में ।
देखना आप सब
उसे ध्यान से
मुझे जीने नहीं दिया जिन्होंने कभी
जो मारते रहे हैं बार बार मुझे
और मांगते रहे मेरे लिये
मौत की हैं दुआएं ।
कर रहे होंगे बहुत विलाप
नज़र आ रहे होंगे बेहद दुखी
वास्तव में मन ही मन
होंगे प्रसन्न ।
कमाल का अभिनय
आएगा तुम्हें नज़र
बन जाएगा मेरा घर
एक नाट्यशाला ।
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