ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ख़ुदकुशी आज कर गया कोईज़िंदगी तुझ से डर गया कोई ।
तेज़ झोंकों में रेत के घर सा
ग़म का मारा बिखर गया कोई ।
न मिला कोई दर तो मज़बूरन
मौत के द्वार पर गया कोई ।
खूब उजाड़ा ज़माने भर ने मगर
फिर से खुद ही संवर गया कोई ।
ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है
उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई ।
और गहराई शाम ए तन्हाई
मुझको तनहा यूँ कर गया कोई ।
है कोई अपनी कब्र खुद ही "लोक"
जीते जी कब से मर गया कोई ।
1 टिप्पणी:
ज़िन्दगी तुझसे डर गया कोई...👌👍
एक टिप्पणी भेजें