मई 16, 2020

देने वाला एक है मांगत बीस लाख करोड़ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 देने वाला एक है मांगत बीस लाख करोड़ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   कुछ गड़बड़ है देश की आबादी एक सौ तीस करोड़ ही है फिर बीस लाख करोड़ क्या दुनिया भर से लोग आये हैं हाथ पसारे। नहीं ऐसा नहीं है मांगने वाले नहीं हैं बीस लाख करोड़ बंट रहे हैं। किसको कितना मिलता है देने वाला बता रहा है नहीं बता रही भी हैं इंग्लिश में हिंदी में अनुवाद करता है साथ बैठा कोई। ये हिंदी की बारी बाद में यही सच है। टुकड़े टुकड़े दिन बीता धज्जी धज्जी रात मिली , जिसका जितना आंचल  था उतनी ही सौगात मिली। टीवी पर सब मिल रहा है बाहर जाने की ज़रूरत क्या है टीवी के सामने हाथ फैलाओ और ले जाओ। क्या कहते हो टीवी से कैसे मिलेगा सबको ये समझाओ , चलो इधर आओ मंदिर के कपाट भी खुल गये हैं क्या करोगे ज़रा बताओ। भगवान के सामने जाकर जितना है जेब में भावना से चढ़ाओ फिर अपना सीस झुकाओ और आरती गाओ घंटी बजाओ भजन उपदेश सुन लो खुश हो जाओ। आंखें बंद कर भगवान से जितना चाहो मांग लो बिल्कुल नहीं शर्माओ। सामने देखो उधर ऊपर भगवान देवी देवता का हाथ आपको आशीर्वाद देता हुआ नज़र आएगा कितना अच्छा लगा जैसे कह रहे तथास्तु जाओ झूमो नाचो गाओ। ये विश्वास भरोसे की बात है सवालात मत उठाओ जाओ भाई जाओ पीछे लंबी कतार है कदम उल्टे घर को बढ़ाओ। भगवान सब देता है सबको देता है आपकी कमीज़ फ़टी थी झोली कैसे भरती जिनके पास पहनने को नहीं था नंगे बदन थे झोली नहीं थी हाथ पसारे खड़े थे उनको वही मिला जो बड़े लोग होते हैं झोला लेकर आते थे आजकल बड़े बड़े सूटकेस भरवा जाते हैं। भगवान से कोई हिसाब नहीं पूछ सकता किस को कितना दिया क्या क्या दिया कौन खाली हाथ चला गया सबकी झोली भरने की बात सच है आपकी बात झूठी है। बस ये वरदान मिलने की तरह की बात है , देने वाली की हैसियत मांगने वाले की औकात है। राजा बोला रात है रानी बोली रात है मंत्री बोला रात है संत्री बोला रात है ये सुबह सुबह की बात है।

   आपको पहले भी कितनी बार बताया था कुछ भी ज़रूरत हो कोई भी परेशानी किसी की शिकायत हो बस ऐप्प खोलो और जैसे जैसे संदेश मिले हां नहीं भरते जाओ , आपने सही विकल्प नहीं चुना है फिर से वापस जाओ। सही की दबाओ , आपने अधिक समय लगा दिया है अभी और संभव नहीं है बाद में कोशिश करें। भगीरथ कोशिश करने के बाद आपको इक संख्या एसएमएस से मिली है भविष्य में उपयोग करने को। बस अब आपको इंतज़ार करना है जब भी पता करोगे आपकी समस्या विचाराधीन है मिलेगा। फिर इक दिन आपको एसएमएस मिलेगा आपकी समस्या का समाधान किया जा चुका है। अब आपको अपना माथा पीटना बाकी है। किसी भी जगह आपकी कोई बात दिखाई नहीं देगी ढूंढते रह जाओगे। जिन खोजा तीन पाइया गहरे पानी पैठ , मैं बपुरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ। कबीर जो का इशारा समझो बहती गंगा में डुबकी लगाओ अब गंगा निर्मल हो गई है। आपको तैरना नहीं आता तो किसी खेवनहार को तलाश करो फिर कश्ती से उस पर आओ जाओ कोई तरीका सोचो कोई जाल बिछाओ। ये नहीं होता तो डूब जाओ भवसागर को पार कर जाओ।

   अपने कहीं कोई कभी भगवान देखा है जो गरीब हो मुझे सभी भगवान बड़े बड़े भवन सोने चांदी के गहने और चमकीले रेशमी लिबास पहने सुबह शाम छप्पन भोग का आनंद उठाते दिखाई दिए हैं। अमीरों के नाम खुदे हैं शिलालेख पर दानवीर और धर्मात्मा का सच्चे भक्त होने का सबूत। ऐसे भगवान को गरीब लोग परेशान क्यों करते हैं अपना कोई और भगवान तराशते जो उनकी तरह भूखा नंगा उनकी व्यथा समझता। ये सरकार भी कहलाती गरीबों की है होती अमीरों की ही है क्या शान है जब जो चाहती है किसी अलदीन के चिराग की तरह मांगने से पहले मिल जाता है कभी भूखी नहीं सोती है पेट भर सोने के बाद ही तो सुनहरे ख्वाब दिखाई देते हैं। दस लाख कभी ख्वाब थे जब इस नाम की फिल्म बनी थी और दस लाख की लॉटरी लगते ही सब बदल गया था। आजकल दस लाख की औकात क्या है जनाब दस लाख का इक इक सूट बनवा पहनते हैं। क्षमा मांगते हुए कवि प्रेम धवन जी से गीत को आधुनिक ढंग से पैरोडी बनाया है क्योंकि यही वास्तविकता है।

चाहे लाख करो तुम बातें बोलो झूठ हज़ार , 

जब तक गरीब नंगे पांव चलते तुम कैसी सरकार। 

साथी संगी अमीरों के तुम कैसी लूट मचा ली , 

आधी आबादी भूखी उसकी थाली है खाली। 

बेबस लोगों के आंसू उनकी आहें तक बेकार , 

इनकी सब उम्मीदों का किया है तूने बंटाधार। 

सबसे ज़्यादा धन दौलत है पास तुम्हारे पर , 

नहीं ख़त्म होती और भूख और पाने की कभी। 

बेघर बेचारों की किस्मत में ठोकरें खाना है , 

झूठे हैं सरकारी आपके दावों के सब इश्तिहार। 

क्या किसी का ईलाज करोगे जनाब खुद जब , 

है आपकी व्यवस्था है लाचार सबसे बीमार। 

आपको शायद नहीं मालूम उनकी चिंता कितनी बड़ी है। लॉक डाउन ने कोरोना को हराया या नहीं उनको बचाया है सच सामने कम आया है और जाने कितना छुपाया और दफ़नाया है। ये बीस लाख करोड़ भी जैसे झूठी माया है कोई समझ नहीं पाया ये क्या जाल बिछाया है। डर है घबराहट भी है सन्नाटा छाया है नहीं पता इतने दिनों में क्या खोया है क्या पाया है। दलील नहीं काम आई अपील करने लगे हैं मगर लोग ख़ामोशी को छोड़ चिल्लाने लगे हैं। ऐसे में आपको दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल सुनाने लगे हैं। 

                दुष्यन्त कुमार जी की लाजवाब ग़ज़ल ( साये में धूप , से साभार )

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये , 

इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये। 

गूंगे निकल पड़े हैं ज़ुबां की तलाश में , 

सरकार के खिआफ़ ये साज़िश तो देखिये। 

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन , 

सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिये। 

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें , 

चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये। 

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स ग़ुम हुआ , 

इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिये।

  अभी तक सरकार को समझ नहीं आया था मज़दूर और किसान मेहनतक़श लोग देश की नींव होते हैं बिना आधार की अर्थव्यस्था किसी आधार कार्ड से संभलेगी नहीं। 

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