मई 29, 2020

शहंशाह तलाश लिया हमने ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    शहंशाह तलाश लिया हमने ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

नारद जी को समझना था या समझाना उनको पता नहीं चला मगर जैसा उन्होंने वादा किया था नारद जी को वो राज़ की बात बतानी ही थी। कहने लगे हे मुनिवर आपको मालूम है भारत के नागरिक हमेशा इस उलझन में रहते हैं कि बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातों के अर्थ कभी किसी को समझ नहीं आते हैं। जैसे बच्चे स्कूल में अध्यापक से पढ़ते हैं और परीक्षा में लिखते भी हैं कि अगर कभी उनको किसी बड़े ऊंचे पद पर नियुक्त किया जाये तो उनको क्या क्या करना पसंद होगा। सभी बच्चे जो सीखा था उनको सिखाया गया था वही अच्छी आदर्शवादिता की बातें लिखते हैं ताकि अच्छे अंक मिलें मगर कोई नहीं बताता वास्तव में उनको ऐसा मौका मिल जाये तो उनकी हसरत क्या होगी। मानव सवभाव है जो मन में होता है ज़ुबान पर नहीं होता है और जो ज़ुबां से बोलते हैं मन की चाहत वो नहीं होती है। शासक बनकर कोई भी सामान्य जीवन जीने की बात नहीं सोचता है दिल यही चाहता है कि काश ऐसा हो जाये तो जितने सपने हैं सब को पूरे कर कर लेंगे। 

जब देखा कोई उसी तरह का है खूब शान से रहीसाना अंदाज़ से महाराजा बनकर रहता है तब लोग यही मानते हैं कि यही तो आनंद है शासक बनने का। राज पाकर भी मनमानी नहीं की अपना सिक्का नहीं चलाया तो क्या ख़ाक मज़ा किया। लोग खुद कितने झूठ बोलते हैं और चाहते हैं सभी यकीन करें ये सच है ऐसे में सत्ता का मकसद ही यही है कि आपका झूठ भी सच से बड़ा समझा जाये झूठ सच की कोई निर्धारित परिभाषा नहीं लिखी गई झूठ को सच साबित करने का हुनर होना सबसे महत्वपूर्ण बात है। वास्तव में आम नागरिक की मानसिकता ही यही बनी हुई है कि शासक है तो उसको सभी को अपने सामने झुकाना आना चाहिए। जो उसकी बुराई करे उसको नानी याद दिलवा दे और जो उसके सामने करबद्ध खड़े हों उनकी झोली भरता रहे। शासक बनकर भी सादगी से रहना कोई इसकी कल्पना भी नहीं करता सभी सोचते हैं ये तो कथा कहानी में लोगों से वास्तविकता छुपाने की घड़ी हुई झूठी बातें हैं। इसलिए भले आजकल राजाओं के अपने राज्य नहीं और लोकतंत्र में जनता के निर्वाचित सांसद विधायक हैं जनसेवा करने को मगर आम नागरिक समझते हैं उनको सत्ता की बागडोर सौंप दी तो वो ख़ास बन गए हैं। अब ख़ास आम कैसे हो सकता है ख़ास होने का मतलब ही आम नहीं रहना है। 

नारद जी ये देश कहने को नैतिकता और आदर्शों की बात करता है मगर सही मायने में ईमानदारी का मार्ग कोई नहीं चलना चाहता है। मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी सुना होगा आपने ,लोग शराफत से रहना नहीं चाहते बदमाशी नहीं कर पाते तभी शराफत को ओढ़ते हैं। मौका मिलते ही सभी बेईमान होने को तैयार हैं। हाथी के दांत खाने के और दिखाने को और होते हैं की ही तरह लोग जो कहते हैं चाहते उसके विपरीत हैं। जब कोई उस तरह का मिल गया है जैसा उनकी चाहत थी बन जाएं तो ऐसा होना है तब उनको लगता है शायद कभी उनको भी ये अवसर मिल ही जाये उसी की तरह से शहंशाह की तरह जीने को। ऐसे में क्या महसूस होता है समझना होगा , इस तरह की सोच वाले ऐसे शासक को देखते हैं तो उनको अपनी सूरत नज़र आती है। आईने में अपनी शक्ल हर किसी को बेहद खूबसूरत लगती है आपने ध्यान दिया सोशल मीडिया पर अजीब सी शक्ल सूरत वाले भी अपनी सेल्फ़ी या कोई फोटो जो शायद ही लुभावनी लगती है जिसकी डीपी है उसको खुद को विश्वसुंदरी से बढ़कर लगती है। नहीं मेरा मकसद कदापि ये नहीं कि देखने में खूबसूरत होना कोई बड़ी बात है असली महानता आपके आचरण की सुंदरता होती है मैं मानता हूं लेकिन ये जो अपने खुद पर मोहित होने का पागलपन है ये लाईलाज रोग है कोरोना की तरह।

लोग सोचते हैं अपने शासक की दुनिया में बड़ी अहमियत है उसको जब भी कोई शासक मिलता है तपाक से गले लगाता है हाथ मिलाने के साथ। ये राजनीति का धंधा है गंदा भी है लगता चंगा है। ये कुछ ऐसा है तुम मुझे चौधरी साहब कहकर बुलाना मैं तुझे मेहता जी संबोधित किया करूंगा। शुद्ध लेन देन की बात है दिल में दोनों नेताओं के अपना अपना गणित रहता है। दुनिया चढ़ते सूरज को नमस्कार करती है सुनते थे आजकल सब मामला आयत निर्यात का है जिस को जिस देश से कमाई होती है वही भाई भाई होते हैं। जनता तो भौजाई होती है मज़ाक उड़ाने को कभी किसी ने जनता को बहन की तरह आदर नहीं दिया। वोट लेते समय भाईयो और बहनों के बाद दोस्तो संबोधन उपयोग करते हैं। बहन का रिश्ता देने का हुआ करता है और सत्ता को देना भी हो तो भीख की तरह देती है प्यार का उपहार लेते हैं देते नहीं कभी भी।

कितने लोग होंगे जो धन दौलत सत्ता ताकत शोहरत पाने के बाद भी खुद को अहंकार से लोभ लालच से बचा कर रख सकते हैं। अधिकांश की मानसिकता यही होती है कि जो उसको नहीं अच्छा लगता काश उसको कभी सामने ही नहीं देखना पड़े चाहे तो व्यक्ति सच कहने वाला ही हो। अपनी आलोचना करने वाले को मुमकिन हो तो देश दुनिया से ही हटवा दें , कौन नहीं चाहता। जब हर किसी के मन में यही सत्ता का चलन उचित लगता है तब उनको जैसे ही ऐसा शासक मिला उनको लगा यही उनकी चाहत है कल्पना है। अब ऐसी सोच के लोग सत्ताधारी के अन्याय अत्याचार करने को मानते हैं उसका अधिकार है मर्ज़ी है। और ऐसे शासक भी आये दिन कोई न कोई कठोर कदम उठाकर ये परखते रहते हैं कि उनका रुतबा कायम है या कहीं कोई कसर तो नहीं है। आपने इक कहानी सुनी है इक राजा ने इक रेगिस्तान में जहां कोई पानी नहीं था इक पुल बनवा दिया और सबको दूसरी तरफ जाने को इक कर देने का नियम रख दिया। किसी ने नहीं सवाल किया कि जब बिना पुल के ही आसानी से सीधे रास्ते जा सकते हैं तो क्यों पुल का उपयोग ज़रूरी किया गया है और क्यों कोई कर सरकार को हर बार देना पड़ता है। जब शासक ने देखा कोई भी विरोध करने का साहस नहीं करता तो और कठोर निर्णय किया गया सबको आने जाने के समय इक इक डंडा मारने की शुरुआत की गई। लोग फिर भी कुछ भी नहीं बोले। मगर इक दिन कुछ लोग साथ मिलकर दरबार में आये तो शासक को लगा अब लोग ज़ुल्म नहीं सहने वाले और विरोध की बात करने आये होंगे। मगर फिर भी शासक ने पूछा क्या बात है आपको कोई परेशानी है पुल से गुज़रने में। नहीं सरकार कोई परेशानी नहीं है हम तो जनाब से निवेदन करने आये हैं कि इक इक सिपाही नियुक्त है और हमें कतार में बहुत समय खड़े होना पड़ता है आप इक की जगह दो या चार सिपाही नियुक्त कर देते तो हमारी परेशानी दूर हो सकती है। कर बढ़ा दे या सज़ा बढ़ाता रहे लोग हाथ जोड़ स्वीकार करते हैं। ये कहानी पढ़ी सभी ने थी आज़माई पहली बार किसी ने है और कमाल की बात है लोग फिर भी खुश हैं और चाहते हैं उसी को बार बार चुनकर शासक बनाना। पहले शासक मिले राजा महाराजा जैसे मगर शहंशाह पहली बार मिला है। ताजमहल देखते हैं तो शाहजहां की प्यार की निशानी कहते हैं। मुमताज को कौन याद करता है मुमताज ने कब ताज को देखा था कहते हैं शाहजहां अपने आखिरी समय में बंद कैद की खिड़की से ताजमहल को निहारा करता था। शाहजहां की मुहब्बत की हक़ीक़त इक तस्वीर बयां करती है। शाहजहां ने ताज बनवाया था इसको क्या बनाना है कोई नहीं जानता।  इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक। साहिर की नज़्म याद आयी है सुनते हैं।



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