सितंबर 17, 2025

POST : 2021 किसे पकड़ना छोड़ना किसे ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

     किसे पकड़ना छोड़ना किसे ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया  

इ डी अर्थात प्रवर्तन निदेशालय की कहानी से आगे की बात है  ए सी बी अर्थात भ्र्ष्टाचार निरोधक ब्यूरो से हरियाणा सरकार ने कहा है कि आपने सरकार से पहले अनुमति नहीं ली थी छापे मारने की इसलिए आप किसी अधिकारी के रिश्वत लेते पकड़े जाने पर मुकदमा दायर नहीं कर सकते । सरकार कहते हैं सभी सरकारी अधिकारी वर्ग से राजनेताओं का काला सफेद का हिसाब किताब रखती है और जब ज़रूरत होती है तभी उसका उपयोग करती है । चुनावी बॉन्ड भले अवैध घोषित किये अदालत ने देने लेने वालों पर कोई असर नहीं हुआ खाया पीया हज़्म जैसी बात है । अगर कोई विभाग बिना इजाज़त नेताओं अधिकारियों पर छापे डालने लगा तो कौन बचेगा क्योंकि इस हम्माम में सभी नंगे हैं । आजकल देश की सरकार पर ही अल्पमत की तलवार लटकी हुई है समर्थन देने वाले कीमत मांगते हैं सरकार को रहना है तो चुपचाप मांगे पूरी करनी पड़ती हैं । शराफत नैतिकता के मापदंड आजकल कौन समझता है इस हाथ दे उस हाथ दे की बात है कल का क्या भरोसा है अभी तो जान बची तो लाखों पाए । अब सरकार कितने साहूकारों की उंगलियों पर नाचती है उनको जितना जब जैसे चाहिए देना मज़बूरी है , क्या बिकने को बचा है हिसाब लगाना बाकी है लाखों पेड़ों की हज़ार एकड़ की कीमत सिर्फ एक रुपया सालाना खूबसूरत चालाकी है । जिस संसद में आधे से अधिक लोग खुद गंभीर अपराधों के दोषी हैं वही कानून बनाती है मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री को हटाने को किसी अदालती करवाई की आवश्यकता नहीं जेल में महीना कैद होना पर्याप्त है मगर यही मापदंड खुद उन्हीं पर लागू नहीं होता है । क्या ग़ज़ब की न्याय की अवधारणा है । 
 
वास्तविकता तो ये है कि राजनीति और प्रशासनिक सेवाओं से तमाम वैधानिक संस्थाओं में भ्र्ष्टाचार को किसी और नाम से स्वीकृति मिली हुई है । बदले में कुछ भी देना लेना आपसी भाईचारा है ये लूट का रंग ढंग न्यारा सभी को प्यारा है । मीडिया वालों को विज्ञापन से लेकर कितना कुछ मिलता है बदले में सिर्फ जी हज़ूरी चाटुकारिता गुणगान करनी होती है लोक लाज की परवाह छोड़ बेशर्मी से । ये सभी लूले लंगड़े हैं जिनको इक इक कदम सरकारी बैसाखियों की ज़रूरत पड़ती है । मैंने कल ही लिखी है इक हास्य व्यंग्य की कविता जिसे आज की खबर पढ़कर लगता है लागू करने का समय आ गया नहीं बल्कि लुका छुप्पी से लागू किया जा चुका है । रिश्वत हमारे देश की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था से लेकर कारोबार उद्योग ही नहीं अन्य तमाम सामाजिक संगठनों में रग रग में बसी हुई है अगर कोई जांच संभव हो तो सभी में ये भ्र्ष्टाचार खून में शामिल मिलेगा जिसे अलग करते ही जीवन लीला का अंत हो जाएगा । इसलिए इसको वैधता देकर सभी माजरा ख़त्म किया जाना उचित है नहीं रहना तेरे बिन रिश्वत की देवी कितनी सुंदर लगती है । 
 
 
पहले इक पुरानी कविता पढ़ते हैं अंत में कल की कविता समझते हैं ।  
 
11 सितंबर 2012 पोस्ट : 127  

जय भ्र्ष्टाचार की ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ  लोक सेतिया

है अपना तो साफ़ विचार
है लेन देन ही सच्चा प्यार ।

वेतन है दुल्हन
तो रिश्वत है दहेज
दाल रोटी संग जैसे अचार ।

मुश्किल है रखना परहेज़
रहता नहीं दिल पे इख्तियार ।

यही है राजनीति का कारोबार
जहां विकास वहीं भ्रष्टाचार ।

सुबह की तौबा शाम को पीना
हर कोई करता बार बार ।

याद नहीं रहती तब जनता
जब चढ़ता सत्ता का खुमार ।

हो जाता इमानदारी से तो
हर जगह बंटाधार ।

बेईमानी के चप्पू से ही
आखिर होता बेड़ा पार ।

भ्रष्टाचार देव की उपासना
कर सकती सब का उध्धार ।

तुरन्त दान है महाकल्याण
नौ नकद न तेरह उधार ।

इस हाथ दे उस हाथ ले
इसी का नाम है एतबार ।

गठबंधन है सौदेबाज़ी
जिससे बनती हर सरकार । 
 
 

16 सितंबर 2025 पोस्ट : 2020 
 

रिश्वत की है नेक कमाई ( हास्य - व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

कर्मचारी संघ की बैठक चर्चा में इक बात सामने आई 
वेतन नहीं हक मेहनत का , हम सत्ता के हैं घर जंवाई 
शासक की अनुचित बातों को ख़ामोशी से मान लेते हैं  
लूट खसूट से उनको मलाई , छाछ अपने लिए है बचाई । 
 
रिश्वत सेवा का मेवा , करते हैं दूर जनता की कठिनाई 
कुछ भी अनुचित नहीं करते हम , लेन देन है चतुराई 
लोगों की सुनता कौन जनता सत्ता की साली - भौजाई
राजनेताओं ने हंसी मज़ाक में उसकी की मार कुटाई । 
 
रिश्वत को बदनाम कर दिया किसने कर कर के है बेईमानी
वर्ना ये भरोसे की निशानी हर किसी की होती थी आसानी 
सरकार से इक मांग हमारी बंद करनी तलवार है ये दोधारी 
बिना वेतन करेंगे काम हम पर रिश्वत से निभानी सबने यारी ।
 
काश कोई फरियाद सुने रिश्वत लेने की मिल जाये आज़ादी 
आओ हमको ख़ैरात डालकर मनचाहा करवा लो सभी लोग 
पुण्य मिलेगा जन्म जन्म में जितना दिया बढ़कर ही पाओगे  
वरमाला हाथ में लिए खड़ी स्वयंबर में जैसे कोई शहज़ादी । 
 
कैसे आज़माना योजना आयोग को नई तरकीब सुझाई गई है 
हर दफ़्तर में हर विभाग की आमने सामने बनाकर दो शाखाएं 
बीच में निर्देश लगवाएं रिश्वत देने वाले इधर अन्य उधर जाएं 
बिना रिश्वत जाने का मतलब होगा भटकते भटकते मर जाएं ।
 
रिश्वत देने वालों की तरफ सभी जाएंगे खुश होकर देंगे दुआएं 
एक बार ज़रूर आज़माएं बिना रिश्वत नहीं उधर जा पछताएं 
सफल योजना होगी सरकार की सभी का बराबर हिसाब होगा
बारिश होगी गरज बरस कर लौटेंगी आसमान से काली घटाएं ।      
 
 

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