दर्द की क्या दवा हम नहीं जानते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
दर्द की क्या दवा हम नहीं जानते
चारागर का कहा हम नहीं मानते ।
शोर चारों तरफ मिल गया इक ख़ुदा
हम मगर सब खुदाओं को पहचानते ।
आस्मां को समझते हैं जो सायबां
काग़ज़ी चादरें , वो नहीं तानते ।
मुश्किलें लाख हैं हौसलें कम नहीं
हार मानी नहीं , जीत ही ठानते ।
ग़ुम हुई मंज़िलें , खो गए कारवां
ख़ाक राहों की ' तनहा ' रहे छानते ।
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