हैरान हैं भगवान ( क्षणिकाएं : हास्य - व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
क्या ऐसे होते हैं इंसान
क्या यही है शराफ़त की पहचान ,
चोर से कहते चोरी कर कोतवाल से भी पकड़वाते ,
कोयला करने लगा है हीरे की पहचान ।
भाई से भाई , बेटे से बाप की करवाते लड़ाई ,
आफ़त खुद जिसने बुलाई
शामत उसकी आई ,
खाते सभी से खूब मलाई ,
कहना मत उनको हरजाई आदत है बनाई ।
बेच ईमान दौलत कितनी कमाई ,
जिसकी खाई उसकी बजाई
दो तरफ़ा है किरपान ,
मान न मान सभी लोग नादान
बस इक अपनी आन बान शान ।
कौन किसका है कद्रदान ,
मिलता है सभी को जीने का वरदान
मीठा ज़हर पहचान ,
किस किस की ऊंची है दुकान
फ़ीके फ़ीके सभी पकवान ।
अपने बनकर समझते
सभी को पायदान ,
जाके पैर न फटी बिवाई ,
वो क्या जाने पीर पराई ,
बिछा हुआ क़ालीन नीचे छुपा
सभी कूड़ा कर्कट बाहरी शान ।
ऊपर बैठा हुआ हैरान
कोई भगवान ,
सच और झूठ की मिलावट
करते हैं नासमझ नादान ,
पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,
करते दुनिया पर कितने एहसान ।

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