सितंबर 13, 2025

POST : 2016 हैरान हैं भगवान ( क्षणिकाएं : हास्य - व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     हैरान हैं  भगवान ( क्षणिकाएं : हास्य - व्यंग्य  ) डॉ लोक सेतिया 

क्या ऐसे होते हैं इंसान 
क्या यही है शराफ़त की पहचान , 
चोर से कहते चोरी कर कोतवाल से भी पकड़वाते , 
कोयला करने लगा है हीरे की पहचान । 
 
भाई से भाई , बेटे से बाप की करवाते लड़ाई ,
आफ़त खुद जिसने बुलाई 
शामत उसकी आई , 
खाते सभी से खूब मलाई , 
कहना मत उनको हरजाई आदत है बनाई ।  
 
बेच ईमान दौलत कितनी कमाई , 
जिसकी खाई उसकी बजाई 
दो तरफ़ा है किरपान ,   
मान न मान सभी लोग नादान 
बस इक अपनी आन बान शान । 
 
कौन किसका है कद्रदान , 
मिलता है सभी को जीने का वरदान 
मीठा ज़हर पहचान , 
किस किस की ऊंची है दुकान 
फ़ीके फ़ीके सभी पकवान ।

अपने बनकर समझते 
सभी को पायदान ,
जाके पैर न फटी बिवाई , 
वो क्या जाने पीर पराई ,
बिछा हुआ क़ालीन नीचे छुपा 
सभी कूड़ा कर्कट बाहरी शान ।  
 
ऊपर बैठा हुआ हैरान 
कोई भगवान ,
सच और झूठ की मिलावट 
करते हैं नासमझ नादान ,
पर उपदेश कुशल बहुतेरे , 
करते दुनिया पर कितने एहसान । 
 

   
 
 

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