सांप है आस्तीन का ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
सांप है आस्तीन का
लो मज़ा और बीन का ।
जब नज़र से नज़र मिली
लुत्फ़ देखा हसीन का ।
आज का जश्न क्या कहें
तेरहा का न तीन का ।
खेल पूरा न हो सका
उस इक तमाशबीन का ।
रात दिन शोर है मचा
घर है अपना ये टीन का ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें