सितंबर 03, 2025

POST : 2008 आ भी जाओ हमें अब लगा लो गले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  आ भी जाओ हमें अब लगा लो गले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया  

आ भी जाओ हमें अब लगा लो गले  
दोस्तो ख़त्म कर के सभी फ़ासले ।  
 
है यही आरज़ू हमसफ़र जो बने 
उम्र भर हाथ में हाथ लेकर चले । 
 
ये मुलाक़ात कितनी सुहानी है अब 
थम ही जाएं ये घड़ियां यहीं दिन ढले ।  
 
प्यार का एक पौधा उगा कर उसे 
दो दुआएं  कि  वो खूब फूले फले ।
 
कौन देगा नसीहत उन्हें फिर भला 
मानते ही नहीं आजकल मनचले । 
 
सिर्फ़ उनके सहारे है ये  ज़िंदगी 
दर्द बन कर मेहरबान दिल में पले ।   
 
महफ़िलें ढूंढते फिर रहे लोग अब 
वो जो कहते कभी थे हैं 'तनहा' भले ।  
 
 दिल को छूने वाली ग़ज़ल
 
 

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