अगर ग़म में नहीं शामिल ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
अगर ग़म में नहीं शामिल
मुहब्बत के नहीं क़ाबिल ।
चलेंगे साथ मिलकर हम
सफ़र कोई नहीं मुश्किल ।
अदावत छोड़ दी , सबसे
हुआ कुछ भी नहीं हासिल ।
यहां लाशें कई , जिनका
मिला अब तक नहीं क़ातिल ।
भंवर ढूंढो , कहीं ' तनहा '
अगर मिलता नहीं साहिल ।
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