जून 04, 2024

बना सकते हैं पर मना नहीं सकते ( आस्था ) डॉ लोक सेतिया

    बना सकते हैं पर मना नहीं सकते ( आस्था ) डॉ लोक सेतिया 

हम सीधे साधे इंसान हैं बिना वजह सवालों से नहीं उलझते हैं , कौन कैसा भगवान किस जगह रहता मिलता भी है या ढूंढना कठिन है ऐसी बातों को छोड़ भरोसा दुनिया का कर लेते हैं तो भगवान पर भी ऐतबार कर लेते हैं । लेकिन ज़िंदगी भर उस को मनाते रहते हैं जो किस बात पर क्यों खफ़ा है नहीं जानते बस उसे अपना बनाना है हम लोग हैं मानते । रोज़ जाते हैं कुछ लोग सुबह शाम जाते हैं कुछ कभी कभी जाकर किसी जगह सर झुकाते हैं अधिकांश लोग घर में ही छोटा सा पूजाघर बनाते हैं उस को भोग लगाते हैं दीपक जलाते हैं । भगवान ऐसा लगता नहीं कि मनाने से मान भी जाते हैं लोग शिकयत करते हैं दुःख दर्द उसको सुनाते हैं जो मुमकिन है बहरा हो आंसू बहाते हैं लौट आते हैं । कहते हैं ज्ञानी लोग अजब उसकी माया है गरीबों को तपती धूप मिलती अमीरों को शीतल ढंडी छाया है । सब कुछ मिलता है वहीं से उन्हीं को जिन्होंने कोई मंदिर कोई मस्जिद गिरिजाघर गुरुद्वारा बनवाया है आम लोगों को सुकून भी नहीं मिलता सब ने जगह जगह आज़माया है । चाहे किसी ने कितना चढ़ावा चढ़ाया है थोड़ा प्रसाद पाकर भी शुक्र मनाया है पर कभी हाथ कुछ भी नहीं आया है ये सच है अंधेरे में भी छोड़ जाता साथ अपना ही साया है । भगवान जाने कहते हैं आप कुछ भी नहीं जानते उसको सब पता है ऐसा कहा करते हैं । आप भगवान से नहीं डरते हैं नहीं मालूम ये नियम किस ने बनाया है भय बिनु होई ना प्रीति , क्या वास्तव में निर्जीव विनय नहीं सुनता । पत्थर का भगवान तभी कभी किसी की व्यथा सुनता ही नहीं लेकिन हर कोई उनकी तरह धमकी भी नहीं दे सकता कि शराफ़त से बात नहीं समझते तो दंडित होने को तैयार रहो । खुद भगवान समंदर को सुखा सकते हैं बिना विचारे की जो जीव हैं सागर में उनका विनाश हो जाएगा , लेकिन हम भूले से इक प्रश्न भी करते हैं तो मूर्ख कहलाते हैं । आज हमने भी खुद दामन उनका छोड़ दिया है जिस ने हमको मझधार में बेबस अकेला छोड़ दिया है । उसके होने का यकीन रखते हैं बस नहीं इंसाफ़ करता कहते हैं , किसी को बेपनाह देता है नहीं गुनाहों की उनको सज़ा देता है और जो लोग भूखे प्यासे हैं उनका दुःख दर्द नहीं मिटाता है । ज़ालिम ज़ुल्म ढाते रहते हैं ये नज़ारा क्या ईश्वर को मज़ा देता है । कोई शायर है जो ऊपरवाले से बस यही कहता है । 
 

दर्द से मेरा दामन भर दे  या अल्लाह , 

फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह । 

मैंने तुझसे चांद सितारे कब मांगे , 

रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह । 

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके , 

सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह ।

या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे , 

या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह । 

                    ( क़तील शिफ़ाई की ग़ज़ल है । )

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