झुक गया आसमान ( 2024 चुनाव ) डॉ लोक सेतिया
याद आया आपको अभिनेता राजेंद्र कुमार अभिनेत्री सायरा बानो की 1968 में इक फ़िल्म आई थी प्यार और कॉमेडी का संगम था । कहानी में ऊपरवाले से इक भयंकर भूल हो जाती है मौत का फ़रिश्ता उसी शक़्ल के किसी दूसरे व्यक्ति के प्राण हर लेता है रूह को ऊपर की दुनिया में ले जाता है । जब धर्मराज को माजरा समझ आता है तो यमराज को आदेश देता है इस भले व्यक्ति को फिर से ज़िंदा कर इक बदमाश की जान लेनी है । समस्या तब खड़ी होती है जब धरती पर वापस पहुंचने पर देखते हैं कि उसकी लाश को जलाया जा चुका है । धर्मराज उपाय बताते हैं कि इस शरीफ व्यक्ति की आत्मा को बदमाश व्यक्ति की रूह निकलते ही मृत शरीर में प्रवेश करवा समाधान किया जा सकता है । लेकिन नायक ज़िद पर अड़ जाता की बदमाश की जगह जीने से उसको सभी बुरा समझेंगे लेकिन शर्तों को मनवा कर तैयार हो जाता है । ये केवल बताने को लिखा है आधुनिक संदर्भ में इस आलेख से इसका कोई भी संबंध कदापि नहीं है , बात अब शुरू करते हैं ।
इस चुनाव को लेकर जानकर कितनी राय दे रहे हैं उनका विश्लेषण राजनैतिक सामाजिक अथवा अन्य आधार पर है । ये ज़रा अलग ढंग से जीत हार को एक तरफ कर कौन क्या चाहता था और किस को क्या हासिल हुआ ये देखना है । किसी को सिर्फ एक ही चाहत थी किसी और की बराबरी कर तीसरी बार लगातार सत्ता पर बने रहना और ऐसा करने के लिए विचार क्या अपने दल क्या गठबंधन क्या सबको पीछे रख कर सिर्फ और सिर्फ खुद अपने नाम पर जनादेश मांगा था अपने नाम को गारंटी घोषित किया था । लगता नहीं किसी ने गारंटी पर भरोसा किया दल को भी नहीं बहुमत मिला भी तो गठबंधन को शामिल करने के बाद । लगता है उनकी धड़कन और चिंता की रफ़्तार वही समझते हैं लेकिन खुद को सिर्फ एक मैं ही हूं की सोच निकलते पता ही नहीं चला बस किसी तरह दस्तार बच गई ये तसल्ली हुई । लेकिन तीसरी बार जनमत हासिल करने में क्या नहीं करना पड़ा और किस हद तक नीचे के स्तर तक आना पड़ा विचार करेंगे तो मुमकिन है समझ आए कि सौदा बड़ा ही महंगा पड़ा है , कभी हार कर भी शान बची रहती है कभी जीत कर भी लोकलाज और नैतिकता के तराज़ू पर हल्के साबित होते हैं । ये बताना भूलना नहीं कि जिनकी बराबरी करना चाहते हैं दस साल तक उनको बुरा साबित करने को बदनाम करने को कितना अशोभनीय आचरण नहीं किया । और उन्होंने कभी सत्ता से ऐसा मोह नहीं दिखाया था जैसा इन्होने किया जो भी जाए सत्ता मिल जाए ।
अब विपक्षी गठबंधन की बात करते हैं उनका घोषित मकसद था लोकतंत्र और संविधान को बचाना जिसे उन्होंने हारने के बावजूद भी हासिल कर लिया है । अब दस साल तक जिस तरह मनमाने ढंग से सत्ता और संविधानिक मर्यादा की परवाह नहीं कर मनमानी की आधुनिक जनादेश में संभव नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करते ही जिन बैसाखियों का सहारा है उन से अवरोध मिलने का खतरा है । सही में अब सभी को साथ रखना मज़बूरी होगा और आप कोई बाजपेयी भी नहीं जो सत्ता को चिमटे से भी नहीं छूने का संकल्प लेते हैं और त्यागपत्र दे देते हैं । आसमान को झुकाया भी और इस तरह से कि आसमान धरती के सामने नतमस्तक होने को विवश है , शायद अभी कुछ और समझना बाक़ी है । सच्चाई है कि आसमान का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है वो सिर्फ हमारी आंखें नज़र जहां तक देख सकती हैं उसका अंतिम छोर ही है । विपक्षी गठबंधन की सफलता है कि आसमान को झुकना पड़ा है और सत्ता को शर्तों से बांध दिया है गठबंधन के सहयोगी दलों में । त्रिशंकुः जैसी हालत बन गई है , इक कविता से अंत करता हूं ।
तुम्हारी विजय , मेरी पराजय ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
छल कपट झूठ धोखासब किया तुमने क्योंकि
नहीं जीत सकते थे कभी भी
तुम मुझसे
इमानदारी से जंग लड़कर ।
इस तरह
तुमने जंग लड़ने से पहले ही
स्वीकार कर ली थी
अपनी पराजय ।
मैं नहीं कर सका तुम्हारी तरह
छल कपट कभी किसी से
मुझे मंज़ूर था हारना भी
सही मायने में
इमानदारी और उसूल से
लड़ कर सच्चाई की जंग ।
हार कर भी नहीं हारा मैं
क्योंकि जनता हूं
मुश्किल नहीं होता
तुम्हारी तरह जीतना
आसान नहीं होता हार कर भी
हारना नहीं अपना ईमान ।
2 टिप्पणियां:
बढ़िया...सामयिक... बैसखियाँ जरूरी थीं
👍👌
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