कुछ नहीं पहले था बाद भी नहीं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
आग़ाज़ से अंजाम तक सिर्फ मैं ही मैं हूं इस देश में कुछ भी नहीं था मुझ से पहले यही सत्य है आपको जो भी दिखाई देता था वास्तविकता नहीं था इक भ्रम था कोई मायाजाल था । मुझे किसी ने नहीं बनाया जनता ने नहीं चुना बल्कि इस देश की जनता को मैंने चुना था कल्याण करने को । सदियों से लोग जिस भगवान ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु ख़ुदा की आराधना पूजा ईबादत किया करते थे वो पाषाण था कुछ देखता सुनता बोलता नहीं था मैं सिर्फ मैं साक्षात दर्शन देता हूं हर पल हर टीवी चैनेल पर अख़बार में दुनिया भर में चिपकाए खूबसूरत रंग बिरंगे चमकदार इश्तिहार में । अलग बात है मेरे इस कलयुग के आधुनिक अवतार में सारा विश्व है जिस लंबी लगी कतार में पहला भी मैं अंतिम भी छोर पर मेरा ही कोई हमसाया बदले किसी किरदार में । मैंने खुद को बनाया तभी सब कुछ आपको दिखलाया , झूठ सच से कितना बड़ा है कोई कभी नहीं जान पाया । बिन बुलाए चला आया कहकर मैया ने है मुझे बुलाया मेरा भेद कभी नहीं कोई समझ पाया , दुनिया वालों ने सब कुछ खोया बस एक मैंने सभी कुछ पाया । मैंने क्या नहीं कर दिखाया हर खोटा सिक्का मैंने बाज़ार में दोगुना चौगुना दाम पर चलाने का कीर्तिमान बनाया । मुझसे रूठ कर किधर जाओगे जिस तरफ जाओगे मुझसे ही टकराओगे । मेरे सामने हाथ फ़ैलाओगे मुझे फ़रिश्ता समझ मेरे भजन गाओगे भूखे रहकर की खैर मनाओगे । यही नसीब है इस गरीब देश की जनता का सर उठा नहीं सकते इक बार जो झुकाओगे । सारे जहां से अच्छा नेता कोई और नहीं है कहते हैं ग़ालिब इश्क़ पर ज़ोर नहीं है मेरे दर को छोड़ मिलता कोई ठौर नहीं है । सब जानते हैं मुझे आता कोई तौर नहीं है बाहुबली से पूछना क्या मुझसे कमज़ोर नहीं है । सब मेरा है किसी का मालिक कोई और नहीं है मैं उड़ती पतंग हूं जिस की कोई डोर नहीं है । जंगल में नाचता कोई भी मोर नहीं है मत पूछना किसने मोर चुराया है कौन चोर नहीं है । चोर मचाये शोर का ये दौर नहीं है किस ओर नहीं है फिर भी सभी जगह है किस ओर नहीं है ।
भगवान ने दुनिया बनाई या दुनिया ने भगवान बनाया ये राज़ कोई नहीं जानता लेकिन मुझे पता है मैंने खुद को बनाया है किसी ने भी मुझे नहीं बनाया है । मेरे राजनैतिक दल का अस्तित्व मुझी से है सांसद विधायक प्रधान सचिव से मंत्री क्या संत्री क्या सभी मुझ में शामिल हैं उनका नाम काम अंजाम सब केवल मैं ही हूं । बाक़ी सभी दल के सदस्य मेरे बनाये माटी के खिलौने हैं जब चाहे जिस से खेल सकता जब जी भर जाए तोड़ मरोड़ कर फेंक सकता हूं । मिटाना ही आता है मुझे लिखना नहीं आता है इसलिए मैंने इतिहास को मिटाया है जो बचा है मिटा कर ख़ाक़ में मिलाना है कोई नया इतिहास नहीं बनाना है । धुंध फ़िल्म मैंने धुंध में ही देखी थी कोई दोस्त साथ था हैरान था ऐसा भी होता है रात घर से निकले चाय पीने और पहुंच गए सिनेमाहॉल को ।
मेरा दल मुझ में ऐसा समा गया है हर कोई ख़ुद अपने आप से घबरा गया है उनको अपना अस्तित्व खोना इतना भा गया है , ज़हर पिलाया मैंने कहते हैं मौत का ख़ौफ़ नहीं ज़िंदगी से सरोकार नहीं , जीत नहीं हार है लेकिन मज़ा आ गया है ।
1 टिप्पणी:
Ishwar k nazariye se yukt bdhiya lekh
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