जून 14, 2024

ये इश्क़ नहीं आसां ( बैसाखियों का मज़ा ) डॉ लोक सेतिया

     ये इश्क़ नहीं आसां ( बैसाखियों का मज़ा ) डॉ लोक सेतिया  

आज फिर इक फ़िल्मी दृश्य से शुरुआत करते हैं , राजपाल यादव अभिनय और कॉमेडी दोनों लाजवाब करते हैं । वाशरूम जाते हैं जो बैसाखियां हैं उनको भीतर इक तरफ रख कर नृत्य करते हैं और जिस महिला डॉक्टर से मिलने आते हैं उस नायिका का नाम ले कर कहते हैं उनकी खतिर जीवन भर ऐसे ही रहना मंज़ूर है । नायक सलमान खान देख कर हैरान हो जाते हैं , ऐसी बैसाखियां कितनी कीमती होती हैं आशिक़ ही ये राज़ समझते हैं । इधर सरकार बनी तो लोग कहने लगे दो बैसाखियां पुरानी देखी भाली हुई बेहद कमज़ोर हैं पता नहीं कब धड़ाम से सरकार गिर सकती है । बैसाखियों पर मैंने गहन शोध किया है बरसों बरस तक । टीवी चॅनेल अखबार जाने कब से सरकारी बैसाखियों के सहारे तेज़ बहुत तेज़ दौड़ रहे हैं उनको पता है ये भले भरोसे के काबिल नहीं सत्ताधारी नेता अधिकारी वर्ग लेकिन उनकी चाहत नाम शोहरत की ऐसी कमज़ोर नस है जिस पर हाथ रख कर पत्रकार मनचाहा वरदान हासिल कर लेते हैं । सरकार भी जानती है जो बिक जाए वो कभी खरीदार नहीं हो सकता ये दुनिया का दस्तूर है । सभी जानते हैं पिछले दस साल तक उनकी सरकार बहुमत से अधिक कुछ और चीज़ों पर कायम रही है , बस वो बैसाखियां पर्दे के पीछे से आसरा देती रही हैं जान कर भी अनजान बनते हैं लोग समझदार होकर समझते नहीं हैं । सरकार बैसाखियों को पकड़े हुए दिखाई देती है जबकि जकड़ रखी बैसाखियां समझती हैं हाथ छुड़ाना अपना अस्तित्व मिटाना है , इसी को राजनीति में घठबंधन धर्म कहते हैं । दुश्मन को चूड़ियां पहनानी हैं मगर हाथ खाली नहीं ये समस्या कोई नहीं समझता है चूड़ियों की खनक पायल की झनक सिर्फ आशिक़ समझता है झुमका बरेली वाला कानों में ऐसा डाला झुमके ने ले ली मेरी जान हाय मैं तेरे कुर्बान । 
 
 फिल्म में राजपाल यादव जी वाशरूम से निकलते हुए हाथ धोने लगते हैं , मगर धोते नहीं रुक जाते हैं , और बोलते हैं जाओ हाथ नहीं धोता इन गंदे हाथों से हाथ मिलाउंगा सभी से । ये मज़ा कोई आशिक़ ही लेता है या फिर राजनीति में सरकार का बहुमत पाने को कोई शासक , हाथ धोकर पीछे पड़ना बाद की बात होती है पहले हाथ मिलाते हैं गंदे हाथ साफ़ करना संभव नहीं कितनी बार हाथ धोये कोई । कोरोना कब का चला गया हाथ छुड़ा कर सभी से हम हाथ मलते रह गए । 
 
सत्ता में जन्म जन्म का साथ नहीं होता है , तमाम उम्र कहां कोई साथ देता है कदम दो कदम भी साथ निभाना बड़ी बात है । अभी तो चांदनी रात है मेरे हाथों में तेरा हाथ है डरने की क्या बात है जब पिया साथ है । सावन की बरसात है खूबसूरत समां है हमसफ़र साथ है , ऐसे में इक महिला मित्र की कविता याद आई है कुछ भी नहीं दिल से दिल की बात है , मन की बात और दिल की बात थोड़ा अंतर समझ नहीं आता दिल का क्या है दिल तो दीवाना है दिल तो पागल है दिल दिया दर्द लिया कितनी सारी दिल की बातें हैं । चलो सजना जहां तक घटा चले , लगा कर मुझे गले , मेरे हमसफ़र मेरे दोस्त फिल्म का गीत गाते गाते चलते ही जाना है । 

चलो चलें ( कविता ) रश्मी शर्मा

चलो चलें कही दूर
हम दोनों संग चलें
उड़ जायें कहीं  दूर
नीले  आसमान में
उन्मुक्त परिदों की
तरह उड़ान भरने ।
 
चलो न ऐसे जहाँ में
जहाँ बस प्रेम ही हो
खुशियां ही रहती हों
नित ही नव - पल्लव
बागों में खिलते हों
भ्रमर का गुंजन हो
तितलियों मनभावन
फूलों पर नृत्य करना हो ।
 
चलो चलें  न कहीं  दूर
ये सारा जहाँ हमारा हो ।
 
चलो चलें  खो जायें  हम
किसी को नज़र  न आयें
आसमां की गहराइयों में
हमसफर बन चले दोनों
सफ़र की इस तन्हाई में
मीत बन जायें इक दूजे के ,
हर कदम संग चलते जायें ।
 
चलो चलें  न कहीं  दूर
ये सारा जहाँ हमारा हो ।
 
चलो प्रेम भरे गीत गायें
साथ - साथ हँसते जायें
छू लें  इन चाँद सितारों को ,
 
फिर कोई नया नगमा
हम दोनों मिलकर गायें
चाँद से चाँदनी को हम
चुपके से यूँ ही चुरा लायें ।
 
चलो चलें न कही दूर
ये सारा जहाँ हमारा हो ।
 
रश्मि शर्मा "इंदु"   (  जयपुर राजस्थान )

( लेखिका से अनुमति ले कर आभार सहित शामिल किया है। )
 
 दिन में कितने क़दम चलना आपको बना सकता है सेहतमंद? - BBC News हिंदी

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

👍👌....सरकार बैसाखियों पर ही है इस बार....पत्रकारिता भी सरकारी बैसाखियाँ लिए रहती है..