पकड़ो पकड़ो डोर सजनियां ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
लोकतंत्र भाग्य तेरा ऐसा संविधान का छीका टूटा ,
मत पूछो किस किस ने कितना कैसे क्यों है लूटा ।
जनता की तकदीर है खोटी छिन गई इक धोती ,
पहेली कौन बूझे नेता सब के सब ही हैं पनौती ।
किस सांसद का है कौन जगह कैसा मज़बूत खूंटा
रस्सी छूटी कमज़ोर ज़रा गठबंधन से नाता ही छूटा ।
भूल-भुलैयां चलो संग संग सैंयां डाल के गलबहियां ,
हमको मिल कर करनी है ता-ता-थैया ता-ता-थैया ।
दुल्हन मंडप छोड़ भाग गई बारात है नाच दिखाती ,
रपट लिख़ाओ मिल नहीं सकेगा चितचोर सिपहियां ।
शोर है यही चहुंओर लागा चोर को मोर सजनियां ,
कटी पतंग उड़ चली पकड़ो पकड़ो डोर सजनियां ।
सत्तासुंदरी नाच रही है हर दिन का है वही तमाशा ,
ख़ुश हैं शासक मौज मनाते जनता की बढ़ी हताशा ।
1 टिप्पणी:
😊...Bahut khoob sir
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