दिसंबर 06, 2023

मेरी तलाश ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

              मेरी तलाश ( कविता ) डॉ लोक सेतिया  

जाने कैसा जहां है ये कहीं , 
आकर जिस में खो गया हूं मैं 
करते करते इक प्यार भरे , 
जीवन की तलाश युग युग से । 
 
भूल गए हैं यहां सभी लोग ,
जीने का वास्तविक अंदाज़  
हर शख़्स अकेला खड़ा है 
भीड़ में अजनबी लोगों की ।
 
ढूंढती फिरती है सबकी नैया ,
भंवर में डोलती कोई किनारा
मांझी गए पार छोड़ के पतवार
तूफानों के हवाले है सब संसार । 
 
नहीं है चाह धन दौलत की थी  ,
कभी नहीं मांगे हीरे और मोती  
ज़माने भर से रही है अभिलाषा 
हो विश्वास दो थोड़ा सा प्यार । 
 
सब कुछ मिल सकता था मुझे , 
शोहरत नाम अपनी इक पहचान 
मिलता काश स्नेह किसी का तो
मेरा बस इक वही तो था अरमान ।
 

         ( बहुत साल पुरानी डायरी से इक रचना प्रस्तुत की है। )  


 

   

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