दिसंबर 22, 2023

बग़ावत की आहट ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया { अध्याय - 3 }

   बग़ावत की आहट  ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया 

                                 अध्याय - 3 

अनहोनी कहते हैं जिसे दुनिया वालों के साथ घटती है कोई घटना लेकिन जिस की मर्ज़ी बिना कहते हैं इक पत्ता भी नहीं हिलता उसकी आलोचना कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । ईश्वर और देवी देवताओं की पारिवारिक बातों में हस्ताक्षेप से बढ़कर इक आधुनिक महिला जिस को प्रभु जी की पत्नी का आशिर्वाद प्राप्त था दास दासियों के अधिकारों को लेकर भगवान से उलझ गई है । धरती पर जीवन बिता मरने के बाद उस लोक में पहुंची आत्माओं को उनके कर्मों का अच्छा बुरा फल भोगने को तमाम देवियों की सेवा करने का निर्णय सुनाया जाता है ताकि घरेलू काम काज झाड़ू पौंछा बर्तन साफ़ करने जैसे काम लिया जा सके । भगवान जी क्या आप बताएंगे ऐसा किस संविधान किस नियम कानून की कौन सी धारा में कहां लिखा गया है और किस सभा ने निर्धारित किया है । हमने तो विदेशी शासन में सरकार और हुक़ूमत को गुलाम बना शोषण और ज़ुल्म करने की बात सुनी थी आज़ादी मिलने के बाद जो भी ऐसा करते हैं उनको मानवता और न्याय के दुश्मन मानते हैं । राजनेता बड़े अधिकारी पुलिस वाले जब मानवाधिकारों का उलंघन करते हैं तब मानवाधिकार आयोग करवाई कर कठोर दंड देता है । हंगामा होना ही था जब जानकारी मिली कि यहां जो ऊपरवाला चाहता है वही इंसाफ़ कहलाता है और देवी देवताओं की मंडली में सभी ईश्वरीय सत्ता के पैरोकार पक्षधर हैं विपक्षी दल जैसा कुछ भी नहीं है । नारी शक्ति मुखर हो कर कहने लगी अर्थात भगवान का मनमाना ढंग तानाशाह जैसा है तो दयावान और सब पर कृपा करने की बात क्या धरती के राजनेताओं की मीठी लुभावनी बनावटी भाषण की खोखली बातों जैसी हैं । किसी दरबारी ने समझाया देवी जी जैसा आपको लगता है वैसा कदापि नहीं है और आपको ये सब कहने पर खेद जताना चाहिए । महिला बोली जनाब मैंने कोई भगवान के भगवान होने को चुनौती नहीं दी है बल्कि मैंने सुझाव दिया है पुराने सड़े गले तौर तरीके बदल कर आधुनिक युग के अनुकूल व्यवस्था स्थापित करने को बदलाव करने की आवश्यकता समझनी चाहिए । देवलोक सकते में है घर की बात गली चौराहे तक पहुंच गई है इतना नहीं कोई और दुनिया का संगठन बिचौलिया बन कर किसी बड़े आंदोलन की रूपरेखा घड़ सकता है , सुगबुगाहट आहट बन सकती है ।  
 
भगवान हमेशा वचन दे कर उलझन में पड़ जाते हैं , जिस दिन उनकी पत्नी ने उस बेमिसाल महिला भक़्त को उनसे मांगा था महिला ने इक अनुबंध करने की शर्त रख दी थी । अब ईश्वर उसको अपनी पत्नी की सेवा से कभी हटवा नहीं सकते हैं , ईश्वर की पत्नी की भी सहमति शामिल थी कि वो अपनी उस परमप्रिय भक़्त को हमेशा कुछ नया बदलाव करने से रोक नहीं सकती हैं । उस महिला ने बताया था उसे रोज़ कुछ नवीन कार्य और सुधर करने की आदत है जो जैसा है वैसा रहने देना उसको परेशान करता है । देवी देवताओं की मंडली नहीं जानती धरती पर दो देशों के बीच समझौते होते हैं जिनको भविष्य में निभाना पड़ता है , गले पड़ा ढोल बजाना पड़ता है । कथा समाप्त । 
 
 सत्ता को चुनौती देती मशहूर उर्दू शायर हबीब जालिब की शायरी- 'बीस घराने हैं  आबाद, और करोड़ों हैं नाशाद' - Habib Jalib Pakistani poet Urdu Shayar Famous  Hindi Poetry Kavita ...
 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढ़िया आलेख...बदलाव ज़रूरी है... जालिब साहब का शेर भी👌