जा तन लागे सो तन जाने ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया
अध्याय - 1
उस लोक की बात है कि किस लोक की बात है सच कहूं तो हर लोक परलोक की बात है । अवसर विशेष था सभी का सुहागिन नारी का सुंदर भेस था । खुद ईश्वर की पत्नी बेहद उदास थी विरह की तरह उसको लगती मिलन की रात थी । पलकों पर गंगा यमुना समाए बरसने को व्याकुल बरसात थी अपनी प्रेम लीला की शतरंज की बाज़ी हार बैठी थी हुई शह मात थी । सभी सखियों ने किया सवाल था भला ईश्वर पत्नी को किस बात का मलाल था । बोली थी इक अबला बेचारी दर्द किसी का कौन पहचाने जा तन लागे सो तन जाने , झूठे हैं सारे अफ़साने चाहे कोई माने चाहे कोई नहीं माने । मेरे पति हैं लगते हैं बेगाने उनको फुर्सत नहीं दुनिया जहान की चिंताएं हैं कैसे कैसे हैं बने ठिकाने । हर पत्नी का यही दुःख है मेरा पति हर क्षण मेरा हो सांझ हो जीवन की या सवेरा हो । कितनी बार उनको समझाया कुछ भी उनको समझ नहीं आया छोड़ो अब दुनिया वालों की चिंता सब ने कब का आपको भुलाया कौन जानता प्रभु क्या है किसे खबर कैसी है माया । नहीं किसी भक्त ने कभी ईश्वर को जाना क्या सच झूठ कहां पहचाना सबका अपना अलग तराना क्या रोना है कैसा गाना । दुनिया करती शोर बहुत है उनका संसार उजला भी है मन में अंधेरा घनःघोर बहुत है ।
मैंने उनको कितना समझाया है आपने इंसान बनाए जहां बनाया आखिर हर अपना हो जाता है पराया खुद आपने यही रीत चलाई कोई नहीं किसी का भाई रिश्तों की गहरी है खाई भला चली किसी की चतुराई । अब जब दुनिया आपको भुला चुकी है अपने भगवान खुद बना चुकी है किसी को विधाता की ज़रूरत नहीं है । क्यों आप उनके झूठे बंधन में बंधे हुए हैं हर पति पत्नी के बीच झगड़े हुए हैं सभी पुरुष शायद बिगड़े हुए हैं । मुझे नहीं कोई बांकपन चाहिए कोई धन चाहिए न ही सुःख साधन चाहिए बस मुझे उनका मन चाहिए । मेरे मन में बस कर रहे मेरा पति कोई और कहीं नहीं उनका बंधन चाहिए । हर पत्नी हमेशा यही वरदान मांगती है कि उसकी हर बात बिना शक सवाल उसका पति समझे माने सखियां देती हैं सब ताने भगवान की बातें बस भगवान ही जाने दुनिया कहती फिरती है उसी के हम दीवाने । उनकी चिंता बढ़ती जाए धर्म की दशा किसे कौन बताए कौन पीसे कौन खाये सब को कोई और मन भाये । ईश्वर को मेरा दर्द नहीं समझ आता उनका दुखड़ा मुझे ख़बर है उनके सभी इंसान बनाए खुश हैं उनको भुलाए मेरी याद कभी उनको सताये ऐसा भी इक पल मिल जाये । तभी अचानक कोई संदेशा लाया पति परमेश्वर ने याद किया है जल्दी घर वापस आओ आपकी पसंद का सब है मंगवाया , मान गई रूठी हुई महारानी रही आधी अधूरी उसकी कहानी । दूध का दूध पानी का पानी सबकी नानी बुढ़िया भूल गई देवरानी जेठानी जो नहीं समझा है बड़ा ज्ञानी ।
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