दिसंबर 06, 2023

नींद नहीं ख़ूबसूरत सपनों से प्यार ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  नींद नहीं ख़ूबसूरत सपनों से प्यार ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया  

नींद आती है लेकिन चैन की गहरी नहीं आती है बड़े होने की यही सबसे बड़ी परेशानी है । बचपन में दादी नानी या कोई भी सबको परियों की प्यार भरी दुनिया की कहानी सुनाते हैं तभी उम्र बढ़ने पर हम ढूंढते हैं कहीं तो मिलेगा वो प्यारा सा जहां । अब हम बड़े हो चुके हैं लेकिन अभी भी हमको सुंदर सपने जो ख़ुशी देते हैं वास्तविक जीवन में नहीं मिलती । धीरे धीरे हमने सपनों में जीना सीख लिया है ज़िंदगी की समस्याओं से नज़रें चुरा कर ख़्वाब को सच समझने लगते हैं । कुदरत ने इंसान को सपने देखने का उपहार दिया था और आदमी ने अपने साहस और बार बार कोशिश कर अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलना शुरू किया तभी आज दुनिया में सब संभव हुआ है । जो भी आदमी ने अपनी कल्पना से बनाया कभी इक सपना ही था । हमारे देश को आज़ाद देखना जिनका सपना था उन्होंने अपना जीवन देश समाज के नाम समर्पित कर दिया । कितने फांसी का फंदा चूम कर हंसते हंसते मर कर अमर हो गए क्योंकि उनको हम पर भरोसा था कि हम उनके अधूरे सपनों को सच करने का फ़र्ज़ निभाएंगे । कितनी कोशिशों और कुर्बानियों के बाद देश को आज़ादी मिली और हमारे पूर्वजों ने इक संविधान बनाकर देशवासियों को भविष्य का इक नक़्शा दिखलाया और इक रास्ता बतलाया जिस पर चलकर हमको ऐसा समाज बनाना था जिस में समानता न्याय और सभी को जीने का अधिकार हासिल हो । अफ़सोस उनका वो सपना कभी सच नहीं हुआ और कुछ खुदगर्ज़ स्वार्थी लोगों ने जनता को इक खूबसूरत जाल में फंसा कर रोज़ झूठे सपने बेचने का कारोबार करना शुरू कर दिया जबकि उनको खुद कभी नहीं पता था कि सपनों को हक़ीक़त कैसे बनाया जा सकता है । 
 
आज़ादी के बाद लोकतंत्र के नाम पर जनता से हमेशा छल धोखा और षड़यंत्र का खेल खेला जाता रहा है ।  हमको तरह तरह से कोई नशा दिया गया और मदहोश कर राजनैतिक दलों के झांसों में फंसकर बर्बाद किया जाता रहा है । कुछ लोग फिर भी ऐसे हुए हैं जिन्होंने हमको इस मदहोशी की नींद से जगाने की कोशिश कितनी बार की है लेकिन हमको उनकी बातें अच्छी नहीं लगीं हमने उनको अनसुना कर दिया कभी भी समझने की कोशिश नहीं की । अधिकांश लोगों ने विश्वास कर लिया कि कोई ईश्वर कोई मसीहा आएगा और हमारे देश से समाज से बुराई अपराध और अन्याय असमानता का अंत कर देगा । सब जानते हैं कि भगवान भी उनकी सहायता करते हैं जो खुद अपनी सहायता करते हैं अपने हालात को बदलने को अपने हाथ की लकीरों तक को मिटाने और अपनी तकदीर खुद लिखने का दम रखते हैं । लेकिन हमको तो नींद से प्यार है और बस ख़ूबसूरत सपने देख दिल बहला लेते हैं । कौन जागे और ज़ालिमों से टकराये हमने तो ज़ालिम के ज़ुल्म को अपनी किस्मत समझ समझौता कर लिया है । हमको सपने बेचने वाले सौदागर ज़हर पिलाते हैं अमृत कहकर और हम पीते हैं जीने की चाह में रोज़ मरते हैं । हमारी उलझन है कि कभी कोई डरावना ख़्वाब हमको नींद से जगाता है तो हम बेचैन हो जाते हैं जबकि मनभावन सपना दिखाई देता है तो हम उसी में खोये रहना चाहते हैं जागना नहीं चाहते हैं । विडंबना है कि हम ऐसे लोगों की छत्रछाया में सुकून ढूंढते हैं जिन के भीतर कितनी ज्वालाएं सुलगती रहती हैं जो सबको जलाकर ख़ाक करना चाहते हैं । सभी जानते हैं कि राजनीति का खेल कितना गंदा है इक कालिख़ की कोठड़ी जैसा जिस में सभी का दामन दाग़दार है । जंग सिर्फ इक बात की है कौन अपनी चमक से अपने करिश्में से अपने दाग़ों को दुनिया से छुपा सकता है और कब तलक । राजनेता मसीहा नहीं होते हैं और राजनीति की हालत वैश्यावृत्ति जैसी है उनका धंधा बनावट से चलता है । 
 
कभी इक छोटी सी कहानी पढ़ी थी जिस का सार था कि हम लोग आज़ाद होना नहीं चाहते क्योंकि कहीं न कहीं इक गुलामी की मानसिकता हमको विवश करती है किसी को अपना मालिक समझ उस की जय जयकार करने की । शायर कैफ़ी आज़मी ने इक नज़्म लिखी थी , कुछ लोग अंधे कुंवें में कैद थे और आवाज़ें लगा रहे थे हमको आज़ादी चाहिए , हमको रौशनी चाहिए । जब उनको अंधे कुंवें से बाहर निकाला गया और आज़ादी और रौशनी दिखाई गई तब वो इस को देख घबरा गए और उन्होंने फिर से उसी अंधे कुंवें में छलांग लगा दी और दोबारा वही शोर करने लगे , हमको आज़ादी चाहिए , हमको रौशनी चाहिए ।  
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

अच्छा आलेख है सर....काश न्याय समानता का सपना पूरा हो