दिसंबर 07, 2023

भटकन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

               भटकन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया  

चाहिए बस दो ग़ज़ ज़मीन , नहीं मांगते ऊंचा आसमान ,
पेट भरता दाल-रोटी से ही , क्यों चाहें हम मधुर मिष्ठान । 
 
सुकून से छोटे घर में रहना , महलों की झूठी लगती शान ,
झौंका खुली हवाओं को मिले , थोड़ा सा जीने का सामान । 
 
कतरे भर की प्यास हमारी , भर मत देना अपना ये जाम ,
आख़िर सूरज ढल जाता है , जलता दिया है हर इक शाम ।
 
मन उपवन खिला फूल प्यार के , कंटीला वन दुनिया न छान ,
खोने और पाने की धुन में अपना , बीत रहा है जीवन नाकाम । 
 
खुशियों को कैद मत करना कभी , हंसना आज़ादी का इक नाम ,
पल पल मौत खरीद रहे सभी हैं , चुका कर जीने का महंगा दाम ।      
 
 

            ( बहुत साल पुरानी डायरी से इक रचना प्रस्तुत की है। )