ज़हर भर कर जाम दे दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
ज़हर भर कर जाम दे दो 
मौत का ईनाम दे दो । 
थक गए दुनिया से लड़ते 
अब हमें आराम दे दो । 
दर्द सहना आ गया है 
तुम दवा का नाम दे दो । 
बेख़ता को हर सज़ा अब 
बज़्म में खुले आम दे दो । 
क़त्ल से पहले मुझे बस 
आखिरी पैग़ाम दे दो । 
हम नहीं ख़ैरात लेंगे 
पर हमें कुछ काम दे दो । 
नफ़रतों का दौर ' तनहा '
चाहे जो इल्ज़ाम दे दो । 
( 1 सितंबर 2004 की पुरानी डायरी पर लिखी रचना। ) 

2 टिप्पणियां:
बढ़िया शेर 👌👍
👍👌
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