नवंबर 13, 2016

सूरत बदलनी चाहिए ( हालत-ए-वतन ) डॉ लोक सेतिया

      सूरत बदलनी चाहिए ( हालत-ए-वतन ) डॉ लोक सेतिया

 बस यही अथवा इस से आगे भी , ये सवाल बेहद ज़रूरी है। चलो थोड़ा अलग ढंग से समस्या को समझते हैं। मैं गांव में रहा हूं और ये बात वहीं से समझी है। गांव में तालाब का बहुत महत्व होता है , तालाब का पानी जीवन की पहली बुनियाद होता है आज भी , शहर में भी तालाब हुआ करते थे जिनको धीरे धीरे मिट्टी से भर दिया गया और उस पर बस्तियां बसा ली। जब भी तालाब का पानी गंदा हो जाता था , आदमी और जानवर दोनों के काम का नहीं रहता था , आजकल की भाषा में प्रदूषित हो जाता था , तब उस तालाब के पूरे पानी को निकाल देते थे बाहर सफाई के लिये। अगर खराब पानी में ही और साफ पानी मिलाया जाता रहता तो नया डाला साफ पानी भी गंदा हो जाता। इसलिये पहले गंदे पानी को निकाला जाता फिर उस तालाब की सारी गाद सारी गंदगी को तल से निकाल दिया जाता था। फिर उसकी पूरी सफाई के बाद सारा कीचड़ निकालने और दूर फैंकने के बाद नया साफ पानी डालते थे। ये इक साधारण ज्ञान था जिसके लिये किसी अध्यापक या किताब की ज़रूरत नहीं होती थी। आजकल हमें पानी गंदा करना तो आता है साफ करना नहीं आता , तभी आर ओ जैसी मशीनों की ज़रूरत पड़ती है। अभी भी समझ नहीं रहे कि यही हाल वायु का भी होता जा रहा है , सांस लेना दूभर होने लगा है ,  मगर हम तथाकथित समझदार लोग खुद समस्या पैदा करते हैं फिर उसका हल तलाश करते हैं। बात स्वच्छता की कर रहे थे , हवा पानी की बात तो उदाहरण मात्र को की समझने को। समझना यही है की बात पूरे तालाब के पानी को बदलने की है , अधूरे काम से बात नहीं बनेगी। सारा पानी बदलना ही नहीं होगा सारी गाद काई कीचड़ और खराब मिट्टी को भी निकलना होगा। दुष्यंत कुमार ने तालाब के पानी बदलने की तभी की थी , उनके शेर में और भी उदाहरण हो सकता था।  चलो उस शेर को दोहराते हैं।

                                       " अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,
                                          ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं। "
                                         
       ये केवल विषय की भूमिका थी , आगे विस्तार से असली समस्या की बात करते हैं। सवाल काले धन और भृष्टाचार का है , समस्या केवल पांच सौ और हज़ार रुपये के नोटों को बंद कर नये नोट बदलने से हल नहीं होने वाली। काला धन सिर्फ नकद धन के बंडलों में ही नहीं है , उस से कई गुणा अधिक काली कमाई ज़मीन प्लॉट्स फ्लैट्स और आलीशान महल नुमा मकानों में छुपी हुई है। कानून बनाने से कुछ नहीं होगा , जैसे पांच सौ और हज़ार रुपये के नोटों को लेकर निर्णय किया गया और साफ बताया गया कि पचास दिन में जमा करवा बदल सकते हो अन्यथा वो नोट खाली कागज़ के टुकड़े रह जायेंगे , उसी तरह सभी को अपनी ज़मीन जायदाद की घोषणा करनी ज़रूरी हो कुछ दिन में , और बिना घोषित सम्पति होना अपराध समझा जाये जिसकी कठोर सज़ा भी हो। अगर सरकार चाहती है कि हर नागरिक को घर की छत हासिल हो तो किसी को भी ज़रूरत से अधिक सम्पति रखने की अनुमति नहीं होनी चाहिये। आपके पास कितने घर हों इसकी सीमा होनी ही चाहिए। किसी को भी बीस मंज़िला महल बनाने की अनुमति नहीं हो ताकि सभी के लिये ज़रूरत की जगह उपलब्ध हो सके। यही अर्थशास्त्र का नियम है , गरीब इसी लिये गरीब हैं कि कुछ लोग ज़रूरत से कहीं अधिक एकत्र किये बैठे हैं। जब तक सभी के लिये न्यूनतम और अधिकतम की सीमा नहीं बनाई जाती , देश में अमीर और गरीब में अंतर बढ़ता ही जायेगा।  सभी को समानता का अधिकार कभी नहीं मिल सकेगा। काम आसान नहीं है , शुरुआत कहां से की जाये ये भी सवाल आयेगा। सब से पहले उनको जो दूसरों से नियम कानून का पालन करने को कहते हैं उनको खुद अपने पर यही लागू करना होगा , क्या सरकार ऐसा करती है , कदापि नहीं , यही समस्या की जड़ है। जैसे अभी खुद प्रधानमंत्री जी ने बताया कि उनके प्रयासों से सवा सौ करोड़ का काला धन जमा हुआ पिछले दिनों में , कुछ महीने पहले भी आय सीमा से अधिक जमा किया धन बताने का अवसर दिया गया 4 5 प्रतिशत कर चुका कर। मतलब क्या हुआ , सरकार को हिस्सा मिल गया तो चोरी चोरी नहीं रही , ईमानदारी बन गई। ये तरीका ही अनुचित है , मगर सरकारें यही करती रही हैं , नियम तोड़ो और जुर्माना भर अनुचित को उचित घोषित करवा लो। इसी से लोग कानून को खिलौना समझने लगे हैं , जांच की जाये तो पता चलेगा सब से अधिक कायदे कानून खुद सरकार और प्रशासन ने तोड़े हैं। आपको मेरी बात गलत लगी हो तो समझाता हूं। खुद सरकार ने घोषित किया कहां क्या बनाना है , हर नगर का मानचित्र बाकायदा पास किया गया कानूनी ढंग से। जनता को पालन करना ही है कहां घर बनाये , किस जगह दुकान , किस जगह उद्योग लगाना आदि आदि। मगर खुद नेताओं ने जनहित की बात की आड़ लेकर जहां जो मर्ज़ी बदलाव कर लिया। अपने लोगों को भूमि जायदाद खैरात की तरह बांटी गई और उसके लिये सारे नियम कानून बदल लिये गये। ऐसा बिल्कुल ज़रूरी नहीं था , वोटों की खातिर बाज़ार की ज़मीन किसी वर्ग को धर्मशाला बनाने को दी गई , जो कानूनन गलत था , किसी पार्क को बदल जो मर्ज़ी बना लिया। सरकारी दफ्तर की खाली हुई जगह , जब दफ्तर किसी बड़े भवन में स्थानांतरित हुआ तो , अपनी सुविधा से अपनों को आबंटित किया गया। कितने धर्म स्थल तक गैर कानूनी ढंग से बनाये गये , बिना विचारे कि भगवान उस में रहेगा भी या नहीं। मर्यादा की बात को दरकिनार कर अमर्यादित तरीके से आश्रम मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर बने , प्रशासन नेताओं , सरकारों की सहमति से। एक गलत परंपरा शुरू की गई हर गलत को सही बनाने की पैसे से , ये खेल किसने शुरू किया , क्या जनता ने , नहीं खुद सरकार ने अपनी सुविधा अपने फायदे की खातिर। इतने साल तक बढ़ावा देते रहे नियम कानून तोड़ने वालों को , और आज दोष अपना नहीं मानते , औरों को कटघरे में खड़ा करने वाले भी शामिल रहे हैं अपराध को बढ़ावा देने में। 

                   घोटालों की चर्चा बहुत हुई , मगर जो सब से बड़ा घोटाला हुआ , होता रहा , अभी भी जारी है , उसका ज़िक्र किसी ने किया ही नहीं। हर वो जनता का धन , सरकारी पैसा , जिसको इस तरह खर्च किया जाये जिस से जनता को कुछ भी हासिल नहीं हो , और कुछ ख़ास लोगों को फायदा पहुंच सके , किसी विशेष वर्ग को खुश किया जा सके ,  अपनी नाकामी को छुपाया जा सके , उसको घोटाला ही कहेंगे। समझ गये या नहीं। सरकारी विज्ञापन देश का सब से बड़ा घोटाला हैं , आज़ादी से आज तक जितना धन उन पर बर्बाद किया गया उसका हिसाब लगाओगे तो चौंक जाओगे। शायद देश की सभी समस्याएं इतने धन से हल हो सकती थीं। काला धन किसको माना जाये , सवाल टेड़ा है , आपने किसी को कानून का दुरूपयोग कर फायदा पहुंचाया , तो कसूरवार वो नहीं आप हैं। मगर आज भी झूठे प्रचार का मोह किसी सत्ताधारी से छूटता नहीं है। इतिहास क्या समझेगा मुझे नहीं मालूम , यूं भी ये मेरा प्रिय विषय नहीं रहा शिक्षा में भी , मुझे कभी समझ ही नहीं आया यही विषय। आज डिजिटल युग में ब्लैक एंड वाइट फिल्मों की बात करना थोड़ा असहज लगेगा सभी को , मगर मुझे देश समाज में दोनों इक साथ दिखाई देती हैं आज भी। किस पर यकीन किया जाये और किस को झूठ समझा जाये। सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है नित नये आयोजन आयोजित करने में , महानगरों में बहुमंज़िला भवन , फ्लाइओवर , जगमगाती सड़कें , बड़ी बड़ी गाड़ियां , पांच तारा होटल ही नहीं पांचतारा सुविधा वाले अस्पताल भी , बड़े बड़े स्कूल जिन में लाखों रुपये खर्च कर धनवान अपने बच्चों को दाखिल करवा सकते हैं , इस चमकती दुनिया में इक और संसार भी बसता है। झुग्गी झौपड़ी में बसर करते लोग , भूख से तड़पते बच्चे , शिक्षा से वंचित बचपन गलियों में कूड़ा बीनता हुआ , सर्दी गर्मी बरसात में खुले आसमान में रहने वाले , रात को फुटपाथ पर सोने वाले लोग , साफ पीने के पानी को तरसते देश के अधिकतर लोग। मगर विकास की अंधी दौड़ में सरकार की प्राथमिकता गरीबी और भूख नहीं है , समानता का अधिकार क्या यही होता है , अमीर की शिक्षा अलग गरीब की अलग , उपचार भी अलग अलग , मानवता का हक भी अलग अलग। आज भी सरकार उस से आयकर वसूलना चाहती है जिसकी आमदनी इक सीमा से अधिक है , मगर जिस की आमदनी गुज़ारे लायक नहीं उसको देना नहीं चाहती उसका अधिकार मान , भले कहने को खैरात देती हो जो इक छल है धोखा है। बेबस लोग सरकार से निराश ही होते हैं। 

                      इस देश का दुर्भाग्य है कि हम भाग्यवादी हैं , रोज़ ज्योतिष विशेषज्ञ से अपनी राशि पूछते हैं , जो हमेशा हमें जल्द ही अच्छे दिन आने का दिलासा देते हैं। हम सोचते ही नहीं हमारी खराब हालत भगवान ने नहीं की , कुदरत ने सभी को सब इक बराबर ही दिया था , कुछ शक्तिशाली लोगों ने हथिया लिया है औरों का हक यही वास्विकता है। भले इसके लिए व्यवस्था और सामजिक ताने बाने को ढाल बना लिया गया हो।  लोकतंत्र का क्या अर्थ है , जनता देश की मालिक और प्रशासन और निर्वाचित प्रतिनिधि उसके सेवक हों। क्या ऐसा है , मालिक भूखा हो और सेवक मालपूरे खाये इसको लोकतंत्र नहीं कह सकते। देश का राष्ट्रपति जब सैंकड़ों कमरों के महल नुमा भवन में रहे और देश की इक तिहायी जनता बेघर हो तो इसको राजशाही कहा जाना चाहिये। छोटे से छोटे अधिकारी को शानदार घर मिलना रहने को तब तक जघन्य अपराध है जब तक आम नागरिक को छत तक नहीं मिलती। मोदी जी प्रधानमंत्री बनते ही किसी मंदिर में करोड़ रुपये मूल्य की 2500 किलो चंदन की लकड़ी दान दे आये थे , क्या ये सही था गरीब देश की जनता का पैसा आप दान नहीं कर सकते दानी बनकर। 

                      परिवारवाद राजनीति का कोढ़ है और जनतन्त्र का विरोधी , फिर भी आप अपने दल में ही नहीं इसको रोकते बल्कि ऐसे दलों को साथ लेते हैं जो बने ही किसी नेता की जागीर की तरह हैं। आज भी कोई नेता अपने सहयोगी को ये कहने का साहस नहीं कर सकता कि आप किसी राज्य या क्षेत्र की नहीं देशहित की बात करें और पूरा देश एक है सभी का है।

               ( विषय अभी काफी लंबा है और बहुत कहना बाकी है। जारी रहेगा अगली पोस्ट पर। ) 

               

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