नवंबर 23, 2016

हमने दुनिया के सवालात का हल ढूंढ लिया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       हमने दुनिया के सवालात का हल ढूंढ लिया (  व्यंग्य  ) 

                                         डॉ लोक सेतिया

                        हमने दुनिया के सवालात का हल ढूंढ लिया

                        क्या बुरा है जो ये अफवाह उड़ा दी जाये।

     शायर ने पहले ही सुझाव दिया था , किसी ने समझा ही नहीं। अब आया समझ इक नेता जी को और उन्होंने घोषणा कर दी है गरीबी को खत्म करने का तरीका उनको पता चल गया है। बस उन्होंने ये राज़ राज़ ही रखा है कि पता चला कब और कैसे , अभी चला या पहले से जानते थे। अगर पहले से जानते थे तो इतने दिन तक उसको आज़माया क्यों नहीं। लोग उनके पहले दिए भाषणों को फिर से सुन रहे हैं और सोच रहे हैं कि तब तो कुछ और ही बातें कहते रहे , फिर अचानक ये क्या हुआ जो सरकार इतना बदल गये। वास्तव में कुछ दिन पहले उनको इक पुरानी डायरी मिली थी अपने सचिवालय के तयखाने से जो कभी इक अर्थशास्त्री ने लिख कर भेंट की थी तब के शासक को , गरीबी का अंत करने का एक मात्र उपाय यही है समझाने को। लेकिन उस शासक ने देश के सभी राजनेताओं की भलाई समझते हुए डायरी को अति गोपनीय घोषित कर दिया था , साथ ही उस अर्थशास्त्री को आदेश सुना दिया था कि राष्ट्रहित में इस बारे कभी किसी को नहीं बताना है। मगर उस अर्थशास्त्री को सम्मान और पुरुस्कार भी दिया था , यही उचित था उनकी काबलियत को मानना ज़रूरी था और उनको खामोश रखना भी। चलो आपको उस डायरी के प्रमुख अंश पढ़ कर सुनाते हैं।

                                  प्रधानमंत्री जी , आपने संकल्प लिया है गरीबी हटाने का और सभी से सहयोग एवं सुझाव भी मांगे हैं। मैं आपको बताता हूं देश से गरीबी का सदा सदा के लिये खात्मा करने का एक मात्र उपाय क्या है , इसको छोड़ दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं। संक्षेप में गरीब को गरीब ही बनाये रखना और उसको खैरात बांटना वोट हासिल करने को , इस खेल को बंद करना होगा और जो जनता के धन से राजा महाराजा की तरह ठाठ से रहते हैं उनको बदलना होगा। अकेले देश के राष्ट्रपति के निवास को इतना बड़ा महल होना लोकतंत्र का उपहास ही तो है। उस भवन के रख रखाव पर हर महीने करोड़ों रुपये खर्च किया जाना इक अपराध है जब देश की असली मालिक जनता को बुनियादी सुविधाएं भी हासिल नहीं हों। गरीबों की चिंता सब से पहले वहीं से शुरू की जाये फिर आप खुद भी ये विलासिता पूर्ण जीवन त्याग साधारण नागरिक की तरह रहें। आपके मंत्री और मंत्रालय के बड़े बड़े अधिकारी भी अपने फज़ूल खर्चों को बंद करें। सांसद विधायक सभी राज्यों के राज्यपाल मंत्री से लेकर जनता के सेवक प्रशासनिक अधिकारी समझें कि जब तक देश की जनता को उसको सभी अधिकार शिक्षा आवास स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार उपलब्ध नहीं करवाते अपनी योजनाओं द्वारा तब तक खुद भी आम नागरिक की तरह ही रहें। लाखों रुपये वेतन भत्ते किसलिए जब आपको जो करना चाहिए वही कर ही नहीं पाये अभी तलक। अगर नाकाबिल नेताओं और प्रशासन के अधिकारियों को उनकी नाकामी का ईनाम आलीशान घर और सभी सुख सुविधाओं के रूप में मिलता रहा तो जनता कभी खुशहाल हो ही नहीं सकेगी। आपको नियम बनाना होगा कि ऐसी योजनायें बनानी हैं जिन से जनता को उतना पहले मिले जितना आप नेता और अफ्सर चाहते हैं पाना देश की जनता की कमाई से। जब ये मालूम होगा कि जनता की भलाई से ही खुद हमारा भला जुड़ा है तभी पूरी सरकार जनता को समर्पित होगी। ये कर के देखो कैसे सब अपने आप होता है। आखिर सेवक कब तक छपन भोग खाते रहेंगे और जनता भूखी सोती रहेगी। मगर तब के नेता जी को लगा था ऐसा किया तो हम कहने को ही शासक होंगे वास्तविक शासन तो जनता का होगा। उनके सभी सलाहकारों ने भी यही विचार प्रकट किये थे कि ये राज़ सदा को राज़ ही रहने दिया जाये। मगर हर बार चुनाव में ऐसा वादा किया जाता रहे कि हमारा मकसद आपकी गरीबी दूर करना है। पहले हम खुद अपनी उसके बाद अपने नाते रिश्ते वालों की फिर आस पास के लोगों की तो गरीबी मिटा लें तब बाद में जनता की भी बारी आएगी कभी। और डायरी पर लिख दिया था जब हमारे पास इतना धन जमा हो जाये कि उसको रख पाना ही असंभव हो जाये तब जनता की गरीबी मिटाने की शुरुआत की जाये। अब वो दिन आ गये हैं सभी बड़े बड़े लोग अपना धन कहीं गहरे में दबा देने को सोचने लगे हैं। इतना धन सभी के लिये सरदर्द बन गया है और अपनी नींद चैन सब का अंत हो गया है , तब ऐसे पैसे से क्या लाभ। प्रधानमंत्री जी ने घोषणा की है देश की खातिर सब कुछ त्याग करने की , वास्तविक त्याग। वो त्याग नहीं जिस में सन्यासी महलों में राजसी शान से रहे।

               थोड़े दिन मांगे हैं प्रधानमंत्री जी ने , फिर सब बदल जायेगा , गरीब लोग सुख चैन से रहेंगे और सारी बेचैनी हर परेशानी नेता मंत्री और सरकारी तंत्र झेलेगा। अफवाह है अगले बजट से यही होने वाला है। आने वाले हैं अबके आम लोगों के अच्छे दिन। आखिर में दुष्यंत कुमार का शेर :-

                                           खुदा  नहीं न सही आदमी का ख्वाब सही ,

                                           कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये।

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