नवंबर 21, 2016

काले धन तेरा भी कल्याण हो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          काले धन तेरा भी कल्याण हो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

   काले सफेद का भेद सभी की समझ नहीं आता , नोट कोई भी काली स्याही से नहीं बना होता , छपते भी सारे नोट एक ही जगह हैं। फिर ये भेद-भाव कैसा , काहे लक्ष्मी जी को बदनाम करते हो। भगवान ने दुनिया सभी के लिये एक समान बनाई थी , इंसानों ने उसको काले गोरे में तकसीम कर दिया। गोरों ने भारत देश पर दो सौ साल राज किया और हमने उनको निकाल बाहर किया देश को आज़ाद करवा कर। इस के बावजूद भी हम गोरे रंग के मोहजाल से निकले नहीं। काले से चिड़ आखिर किसलिये , काला होना अर्थात बुरा होना। दो नंबर की कमाई को काला धन बता इक शब्द ही नहीं इक रंग को भी नाहक बदनाम किया गया है। ठीक उसी तरह जैसे सोशल मीडिया ने सोनम गुप्ता बेवफा है हर नोट पर लिख दिया , बिना परखे कि नोट कैसा है काले धन वाला या सफेद। अपनी अपनी भड़ास लोग इसी तरह निकालते हैं। जो चाह कर भी धन एकत्र नहीं कर सके वही दूसरों के पास पैसा देख जलते हैं और बदनाम करते हैं काला है बता कर।  

            हमारा नाम हो शोहरत हो इस से सब से अधिक जलन उन्हीं को होती है जो हमारे मित्र कहलाते हैं मगर हम से आगे बढ़ना चाहते हैं पर हर बार और भी पीछे रह जाते हैं। अधिकतर ये हमारे करीब वाले होते हैं , पर कभी उनको भी तकलीफ होती है जिन से हमारा वास्ता ही नहीं होता। एक ही बिरादरी के लोगों में इक होड़ रहती ही है , और शायद ही कोई किसी दूसरे की सफलता से खुश होता हो। ये इक आम स्वभाव है दुनिया में इंसानों का , पशु पक्षी पेड़ पौधे इन बातों से बचे हुए हैं , तभी वो कभी रोते नहीं।  खुश होते हैं चुप भी रहते हैं और कभी शोर भी करते हैं पर उनको रोना नहीं आता। कई बार जानवर भी दूसरे जानवर को घायल देख संवेदना ज़ाहिर किया करते हैं जो दिखावे की नहीं होती इंसानों की तरह। आदमी अजीब है , जब पैदल होता है साइकिल वाले से जलन होती है , जब बस में होता है कार वाले से , कार मिल जाती है तो उनसे जलन होती है जो विमान में यात्रा करते हैं। वो सब से तेज़ भागना चाहता है और सब से जल्दी पहुंचना चाहता है मंज़िल पर , और अक्सर इसी दौड़ में ये भी भूल जाता है कि मंज़िल कहां है और जाना किधर है। ऐसा उनके साथ भी होता है जिनका काम ही औरों को राह दिखाना है , प्रवचन देने वालों को सब पता होता है फिर भी पता नहीं चलता क्या सही है और झूठ किसे कहते हैं। कुछ लोगों को लड़ने का शौक होता है , उनको जीतना पसंद है मगर जीतने के लिये लड़ना ज़रूरी है। अब लड़ना है तो कोई दुश्मन भी होना ही चाहिये , इसलिये दुश्मन भी खोज ही लेते हैं। अदालतों में हार जीत से अधिक महत्व विरोधी को मज़ा चखाना है का बन जाता है , खुद अपनी जीत से हासिल कुछ हो न हो विपक्षी की हार से इक अलग ही चैन मिलता है सुख मिलता है ख़ुशी मिलती है। किसी अमीर का महल जल गया हो जानकर छोटे मकान वालों को सकून मिलता है। लूट की दौलत से बनाया था , अब किया ऊपर वाले ने हिसाब बराबर।

                                            देश में आजकल यही हालत है , अधिकतर लोग कल तलक परेशान थे अपनी गरीबी को लेकर , जाने कब आयेंगे अच्छे दिन। जब उनके बुरे दिन आये जो बड़े बड़े अमीर थे तब खुश हैं कि किसी ने उनकी भी हालत खराब कर दी है। सरकार को भी समझ आ गया था कि सब के अच्छे दिन लाना उसके बस की बात नहीं है मगर जिन के अच्छे हैं उनके खराब दिन लाना बहुत आसान है। और ऐसा करने से वो भी थोड़ा तो खुश होंगे ही जिनके हमेशा ही बुरे दिन रहे हैं। चलो धरती पर हैं तो आकाश से नीचे गिरने का कष्ट तो नहीं झेलना पड़ा , अगर अमीर होते तो आज अपनी भी हालत पतली होती।बाग में सभी तरह के पेड़ होते हैं , सेब का पेड़ अमरूद के पेड़ से परे परे नहीं रहता खुद को खास समझ क्योंकि उसको लोग महंगे दाम देकर खरीदते हैं। न ही कोई पेड़ दूसरे पर अपने से ज़्यादा फल लगे देख उसको बुरी नज़र से देखता है। ये आदमी है जो धंधे में पड़ोसी दुकानदार की दुकान पर अधिक ग्राहक देख जल भुन जाता है। बुरी नज़र वालों से बचने को काले रंग का नजरबट्टू ही काम आता है। गाय और भैंस में काला सफेद होने की कभी तकरार नहीं होती , दोनों एक ही खूंटे से बंधी रहती ख़ुशी से। भैंस का दूध भी हीनभावना का शिकार नहीं होता , बिकते हुए। इंसान बिना कारण खुद उलझनों का शिकार हुआ रहता है , अपने चरित्र अपनी शख्सियत अपने सवभाव से अधिक महत्व रंग रूप वेशभूषा को देकर। कागज़ के नोट भी किसी को अपना पराया नहीं मानते , जिस की जेब में होते उसी के हो जाते हैं। उनको इस बात से भी कोई मतलब नहीं कि सरकार उनको किस श्रेणी में रखती है काले धन की या सफेद की। उनको मालूम है सरकार के खज़ाने में जाते ही दोनों एक समान हो जाते हैं , जब खुद सरकार को अपनी तिजोरी में काला धन रखते कोई लाज नहीं आती तो बाकी लोगों को काहे बदनाम करती है।

                               हमने तो भैया एक सबक सीखा है , सभी के लिये अच्छी दुआ करना , इक जेबतराश ने ये सर्वोतम ज्ञान दिया हमको आज। मधुर स्वर में इक गीत गाकर : -

                                   " उपर वाले इस दुनिया में कभी जेब किसी की न खाली रहे ,
                                     कोई भी गरीब न हो जग में हर पॉकेट में हरियाली रहे। "

      चलो फिर आज हम भी साथ मिलकर उन सभी के वास्ते दुआ मांगते हैं जिनको नोट बंदी से क्षति हुई है। भगवान उनको समझ दे ताकि वो जल्द अपने काले धन को फिर से सफेद कर के पहले जैसे खुशहाल हो सकें। और उनको अब किसी की बुरी नज़र नहीं लग पाये। क्योंकि और की भलाई से अपनी भलाई होती है। इक दोहा यही समझाता है :-
                                   " चार वेद षट-शास्त्र में बात मिली बस दोय ,
                                    दुःख देवत दुःख होत है सुख देवत सुख होय। "

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