नवंबर 27, 2016

उधर थे जो कल , आज इधर हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      उधर थे जो कल , आज इधर हैं (  व्यंग्य  ) डॉ लोक सेतिया 

   हंगामा हो गया उस इक बात से , हर जगह वही मुद्दा छाया हुआ है। अख़बार टीवी समाचार फेसबुक ट्विट्टर व्हाट्सऐप संदेश से गली पार्क में आपसी चर्चा उसी विषय की है। ऐसे में इस पर बहस आमंत्रित करने का विचार बना तमाम बुद्धिजीवी वर्ग को पत्र लिख कर पूछा कि आप किधर हैं , पक्ष में बोलना चाहते हैं अथवा विरोध में बात रखना चाहते हैं। जो भी चाहें करें मगर आयोजकों को कार्यक्रम से एक घंटा पहले सूचना अवश्य दें ताकि बहस को सार्थक बनाया जा सके इक संतुलन दोनों पक्ष में बना कर। लेखक चिंतक विचारक आलोचक और पत्रकार सभी को शामिल किया गया बहस में भाग लेने को। सभी को मांगने पर जो जो प्रश्न पूछे जाने हैं उनका विवरण उपलब्ध करवा दिया गया। लोकतंत्र की सफलता विफलता से लेकर अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी तक हर बात शामिल थी सवालों में। नैतिक मूल्यों से देश की बिगड़ी हालत तक , नागरिक अधिकारों से सभी में समानता लाने की बात तक सब कुछ बहस में शामिल होगा। अधिकतर ने शुरू में ही विरोध में भाग लेने का मत प्रकट किया मगर उनको कहा गया अभी जल्दी नहीं है दो दिन बाद कार्यक्रम का आयोजन है तब तक मुमकिन है घटनाएं और रूप में सामने आयें और आपकी सोच बदल जाये इसलिये आप तय दिन बहस शुरू होने से एक घंटा पहले बताना जो चाहते हों। आप समर्थन करें या विरोध उसका मतलब आपकी निजि राय ही नहीं है अपितु समझना है कि उचित या अनुचित क्या है।

                बहस आयोजित करने का जम कर प्रचार किया गया , तमाम जाने माने लोगों को बुलावा भेजा गया , इक अपने रसूख वाले टीवी चैनल को भी शामिल किया गया ताकि बहस के अंश खबरों में दिखाये जा सकें। लोग भी अधिक आयेंगे ये पता चलने पर कि श्रोता  बन कर ही सही टीवी पर चेहरा दिख तो सकता है। पहले भी अलग अलग विषयों पर चर्चा आयोजित करते रहे हैं और सभी सरकारों की अनुकंपा पाते रहे हैं , इस सरकार से पाने में सफल होंगे उनको भरोसा है। दो दिन भी उनके पास है और नई जानकारी नये तथ्य जुटाने के लिये। उधर हर तरफ शोर बढ़ता जा रहा था और उनको ख़ुशी हो रही थी मामला गर्म है अभी ठंडा नहीं हुआ। जो भी उनको तो हर हाल में बहस करवानी ही थी।

                           दो घंटे पूर्व सभी वक्ता आ गये थे और आयोजक ने फिर याद दिलाया था कि ठीक एक घंटा बाद आपको लिखित में अपना निर्णय उनको बताना है कि आप उधर हैं या इधर , मतलब पक्ष में बात रखना चाहते हैं या विपक्ष में। क्योंकि उनको इक चिंता थी कि बहस एकतरफा नहीं हो जाये अगर सभी समर्थन में ही बोलना चाहें इसलिये उनहोंने ये सूचना दे दी थी कि विरोध में बोलने वालों को काफी अधिक राशि का मानदेय मिलेगा प्रयोजकों की तरफ से जबकि पक्ष में बोलने वालों को दूसरे प्रयोजक उतनी राशि का मानदेय नहीं दे सकते। इस को भेद भाव नहीं हमारी विवशता समझना , विरोध करने के प्रयोजक धनवान हैं , पक्ष में बोलने वालों के थोड़ा कम अमीर हैं हालात के मारे हैं। कोई इस पर आपत्ति नहीं जता सकता , मगर चाहें तो अपना मत बदल सकते हैं और बता सकते हैं अब आप किधर खड़े होना चाहते हैं।

                             सभी ने बंद लिफाफे में लिख कर दे दिया था किस तरफ हैं। जब सभी लिफाफे खोले गये तो पता चला सबने अपना इरादा बदल लिया है। सभी विरोध में बोलना चाहते हैं। मत बदलने का कारण भी सभी ने बताया था , निडर होकर सच का साथ देने का कर्तव्य निभाना। जो अभी तलक उधर थे अब इधर हैं , बहस का अंजाम जो भी हो , ये बात ज़ाहिर हो गई थी कि पैसे के महत्व पर सब एकमत हैं।

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