नवंबर 16, 2016

पागलपन अपना अपना ( बुरी लगे या लगे भली ) डॉ लोक सेतिया

 पागलपन अपना अपना ( बुरी लगे या लगे भली ) डॉ लोक सेतिया

     सब से पहले मैं मानता हूं कि मैं इक पागल हूं , उम्र भर मैंने पागलपन ही किया है। कुछ साल पहले मैंने पहली अप्रैल को तमाम लोगों को आमंत्रित किया इक सभा आयोजित कर , ये बताने को कहा गया सभी से कि बताएं आपने क्या क्या और कैसी कैसी मूर्खतापूर्ण बातें जीवन में की हैं। मुझे तब सभी ने मूर्ख शिरोमणि का ख़िताब एकमत से दिया था इसी बात के लिये कि ऐसी सभा उस शहर में बुलाना जिस में साहित्य और अदब की बात शायद ही लोग समझते थे , केवल कोई पागल ही कर सकता था। मगर मेरे लिये उसी दिन शुरुआत थी इक नई तलाश की यहां साहित्य से सरोकार रखने वालों को जोड़ने की। मगर आज यहां इक और पागलपन की बात करनी है।
                                           देश में कुछ भी होता रहे कुछ लोग उस में हंसी मज़ाक ढूंढ ही लेते हैं। मगर इन दिनों जो दिखाई दिया वो हैरान करता है। लोग परेशान हैं किसी समस्या को लेकर और आप स्मार्ट फोन वाले व्हाट्सऐप पर चुटकुले बना बना अपना और औरों का मनोरंजन करने में व्यस्त हैं। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बातें पोस्ट पर लिखने से चाहते हैं सभी को वह बात समझा दें जो खुद ही समझ नहीं रहे कि कर क्या रहे हैं। जैसे लोग प्यासे हों और आप पानी पानी लिख कर या पानी की तस्वीर दिखा कर अथवा जल शब्द का उच्चारण कर समझते हों उनको राहत मिलेगी। इतना ही नहीं लोग इसी को बहुत महान काम भी बता रहे हैं। कहते हैं ये इक क्रांति है नये युग की।

                                  हम किस हद तक असंवेदनशील बन गये हैं कि औरों का दर्द हमें रुलाता नहीं हंसाता है। क्या नेताओं से सीखा है हमने ये सबक , कृपया नेता मत बनिये , इंसान बनिये। सोचिये क्या हर विषय मात्र मनोरंजन का होना चाहिए। किस दिशा में अग्रसर हैं हम सभी। काश जितना समय या धन आपने बेकार के कामों में लगाया उसको किसी अच्छे और सार्थक प्रयास में लगाते तो मुमकिन था किसी का थोड़ा भला ही हो जाता। पागल बनो मगर किसी उद्देश्य की खातिर , व्यर्थ का पागलपन बंद करो। चलो कुछ शेर ही याद करते हैं पुराने शायरों के।


                          उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें ,

                         चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये।

                       

                      हसरतें और भी हैं वस्ल की हसरत के सिवा ,

                      और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा।

                    

                        हमें मालूम है तगाफुल न करोगे लेकिन ,

                       ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक।