नवंबर 27, 2016

आपकी सुन ली हमने , अब तो हमारी भी सुनो सरकार जी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

    आपकी सुन ली हमने , अब तो हमारी भी सुनो सरकार जी

                              आलेख   -       डॉ लोक सेतिया   

    आप जो भी सत्ता में हो , आपके पास हर साधन है , सुविधा है , तरीका भी है अपनी बात हम लोगों को बताने का समझाने का ही नहीं मनवाने का भी आदेश देकर। आपने कहा हमने सर झुका स्वीकार कर लिया कि आप हमारी और देश की भलाई चाहते हैं। आप टीवी से प्रसारण करें या सभा बुला भाषण दें , अपनी हर बात रख सकते हैं। कभी तो हो ऐसा भी कोई ढंग कि वोट डालने के सिवा भी हम किसी तरह अपनी बात कह सकें और आपसे अपने सवाल पूछ सकें। क्या ये ज़रूरी नहीं जनतंत्र में। आज बहुत साधारण से सवाल मुझे पूछने हैं देश की जनता की ओर से।
 
                           पहला ज़रूरी सवाल :-

  आपने बहुत कुछ समझाया लोग समझ गये कि आप गरीबों की गरीबी मिटा देंगे , पर कब , कोई समय सीमा तो तय कर दो कि इस अवधि तक जनता को और झेलना है परेशानियों को हंसते या रोते। बस इतना बता दो कब कोई भूखा नहीं होगा , किसी को स्वास्थ्य सेवा की या शिक्षा की कोई कमी नहीं होगी गरीबी के कारण। बस इंसान की तरह जी सकें हम भी इतना ही चाहते हैं , और कितना इंतज़ार करना है।

                   दूसरा ज़रूरी सवाल  :- 

आप सभी जनप्रतिनिधि कब तक इसी तरह खुद अपने पर जनता का सरकारी पैसा खर्च करते रहोगे , जैसे आप जनता और देश के सेवक नहीं मालिक हैं , राजा हैं। लोकतंत्र के नाम पर जारी ये लूट क्या कभी खत्म होगी। क्या जनता के लिये जैसे मापदंड बनाये हैं कि इतना है तो गरीब नहीं उसी तरह नेता मंत्री के लिये भी कोई सीमा अधिकतम की होगी। और उस में और आम जनता में अंतर ज़मीन और आसमान जैसा नहीं होगा। कभी हिसाब लगाना और जनता को भी बताना कि इतने सालों में कितने लाखों करोड़ सिर्फ सरकारी मंत्री और अमले पर ही खर्च होते रहे हैं , जिन से देश से गरीबी कभी की मिट सकती थी। लोग भूखे हैं क्योंकि आप नेता अफ्सर ज़रूरत से बहुत बहुत अधिक खुद पर बर्बाद करते हैं। सत्ता के अधिकारों का दुरूपयोग आपराधिक सीमा तक कर रहे करते आये हैं।

             तीसरा ज़रूरी सवाल :-

ये आज तक का सब से बड़ा घोटाला है। जितना धन इस में बेकार बर्बाद किया जाता रहा और लगातार किया जा रहा है हर सरकार द्वारा चाहे केंद्र की हो या राज्यों की , उतना शायद बाकी सभी घोटालों में भी नहीं लूटा गया होगा। वो घोटाला है अनावश्यक सरकारी प्रचार के विज्ञापन का। कुछ मुट्ठी भर लोगों अख़बार टीवी वालों को छोड़ और किसी को इन से कुछ नहीं मिलता है।

                            जवाब कौन देगा

क्या पत्रकार जनहित की बात करने वाले कभी ये सवाल पूछेंगे जब भी सत्ताधारी नेता या प्रशासनिक अधिकारी से साक्षात्कार हो उनसे।  कभी तो अपना स्वार्थ छोड़ सच का पक्ष लें मीडिया वाले। 

 

कोई टिप्पणी नहीं: