नवंबर 19, 2016

क्या गंगा स्नान से पापी पुण्यात्मा बन जाता है , पंडित जी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 क्या गंगा स्नान से पापी पुण्यात्मा बन जाता है पंडितजी                

                                    व्यंग्य - डॉ लोक सेतिया

     बात समझने की है और समझते वही हैं जो समझदार हैं , समझदार शासक होता है , उसको जो उचित लगता है वो उसी तरह नियम बनाता है , लागू करता है और सभी को मानने पड़ते हैं। ये तो नहीं पता लिखा कहां है और लिखा किस ने है पर कहते हैं राजा अर्थात शासक कभी गलत नहीं होता। पहले कहा जाता था कि शासन की नाफरमानी करना बगावत होती है , मगर जब सरकार का कानून नहीं मानना बगावत बन कर बदलाव लाने में सफल हो जाता है , तब उसको क्रांति कहते हैं। आज़ादी का अंदोलन क्या था , क्या उसको तब की सरकार के क़ानून नहीं मानने की छूट मिली थी , अगर नहीं तो उस समय का विरोध सही था या गलत। आज भी सरकार मानती है जो उस से सहमत नहीं वो देश हित को नहीं समझता , ऐसे में लोग डरते हैं उसकी किसी बात को अनुचित कहने में। मगर सर्वोच्च अदालत ने सरकार की बात नहीं मानी है कि जो लोग नोट बंदी के खिलाफ अदालत जायें उनकी अर्ज़ी नहीं सुनी जाये। क्या ये वही लोग हैं जो अपने फैसले पर जनता की परेशानी को ऐसा कहकर उचित ठहराते हैं कि कभी किसी ने आपात्काल घोषित कर देश को उनीस महीने कैद में बंद कर दिया था। कोई सवाल करे कितनी जनता को बंद किया गया था , और पता चले कुछ लाख राजनीति से जुड़े लोगों को तो क्या समझा जाये वही लोग देश थे। मेरा मकसद आपत्काल को सही ठहराना नहीं है , और ये भी दोबारा दोहराता हूं कि मैं उस सभा में शामिल था दिल्ली के रामलीला मैदान में जिस में जे पी जी ने भाषण दिया था जिस को आधार बना इमरजेंसी लागू की गई थी। मैं तब भी सत्ता और सरकार के खिलाफ लिखता था मगर मुझे तो जेल में नहीं डाला गया आज तक कभी , जबकि हर सरकार का विरोध किया है मैंने , चाहे जब जब जिसकी भी सरकार रही हो। अफसोस होता है जो उस दौर में संविधान में बताये अधिकारों की बात करते थे और जेल जाने के डर से छुप छुप कर भागते रहे वही आज अपनी सरकार द्वारा लागू निर्णय का विरोध करने वालों को देश हित की बातें समझाते हैं। ऐसे में इक अंदेशा होना लाज़मी है हम किस दिशा को जा रहे हैं। लोकतंत्र में सरकार का विरोध अपराध नहीं हो सकता , और जिनको मोदी जी के नोट बंद करने से परेशानी हो उनको अदालत जाने से रोकने की बात सोचना ही बताता है कि सोच अलोकतांत्रिक और संविधान की भावना के विरुद्ध है। शुक्र है सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बात मानने से इनकार करने के साथ इक चेतावनी भी दी है कि ज़रूरत से ज़्यादा जनता को दबाना खतरनाक हो सकता है , लोग इतने परेशान हैं कि दंगा भड़क सकता है। अब आप सर्वोच्च न्यायलय की बात  को किसी सिरफिरे केजरीवाल का बयान नहीं बता सकते।

                कुछ टीवी चैनेल समझते हैं जो उनकी सोच है वही उचित है , और कहने को वो हर दिन कोई बहस करवाते हैं अलग अलग लोगों को आमंत्रित कर के। मगर इनका लहज़ा किसी तानाशाह जैसा ही होता है , जैसे ही कोई उन के ठूंसे शब्द बोलने से मना करता लगता है वो किसी न्यायधीश की तरह नहीं किसी बंदूक धारी की तरह डराते लगते हैं। इतनी बात समझ लेना ज़रूरी है कि लोकतंत्र में विरोध या असहमति को स्वीकार करना लाज़मी है। विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार केवल आप का ही नहीं है। जहां तक काले धन की बात है देश की जनता उसका विरोध करती है हमेशा ही , मगर कोई दल ये समझे कि उनको छोड़ बाकी सभी दल काले धन पर चलते रहे हैं तो ये अर्धसत्य ही नहीं पूर्ण झूठ होगा। आज़ादी के बाद से जनता के धन की लूट में , काली कमाई वालों से चन्दा लेने वालों में आप भी शामिल रहे हैं। इक निर्णय से आपके सभी पाप भी धुल नहीं सकते , आपको लगता है ये फैसला गंगा स्नान है , कि डुबकी लगाई और पापी से धर्मात्मा हो गये। माना ये निर्णय उचित है काला धन बंद किया जाना चाहिये मगर ऐसा करने में मनमानी और बिना सोच विचार हर दिन नियम बदलना बताता है सरकार को समस्या समझने में नाकामी हुई है। इक बात और भी मुझे लगता है कि अभी बेशक कुछ लोग खामोश है मगर उनको इस फैसले से परेशानी हुई है वो जैसा आप सोचते हैं , आपके ही समर्थक वर्ग रहे हैं कारोबारी लोग , अगली बार आपके विरोधी हो सकते हैं।  इसलिये देश हित में जनता को थोड़ा समय साथ देने को कहते हुए खुद भी इस बात के लिये तैयार रहें। जनता क्या सोचती है अक्सर कुर्सी पर बैठे नेता नहीं समझ पाते हैं।

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