ये कैसे समझदार होने लगे सब ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ये कैसे समझदार होने लगे सबदिया छोड़ हंसना , हैं रोने लगे सब।
लगे प्यार करने , समझ कर तिजारत
जो पाया था , उसको भी खोने लगे सब।
किसी पर कभी तुम भरोसा न करना
नहीं अब बचाते , डुबोने लगे सब।
जिन्हें मुझसे सुननी थी मेरी कहानी
सुनाता रहा मैं , वो सोने लगे सब।
सभी आसमां के चमकते सितारे
हमें दुल्हनों के बिछौने लगे सब।
किया रोज़ दावा , कभी हम न रोते
मिला ज़ख्म ,पलकें भिगोने लगे सब।
भुला कर मुहब्बत , मिला क्या है "तनहा"
यहां फूल तक शूल होने लगे सब।
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