दिसंबर 28, 2012

हमको मिली सौगात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 हमको मिली सौगात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको मिली सौगात है
अश्कों की जो बरसात है ।

होती कभी थी चांदनी
अब तो अंधेरी रात है ।

जब बोलती है खामोशी
होती तभी कुछ बात है ।

पीता रहे दिन भर ज़हर
इंसान क्या सुकरात है ।

होने लगी बदनाम अब
इंसानियत की जात है ।

रोते सभी लगती अगर
तकदीर की इक लात है ।

"तनहा" कभी जब खेलता
देता सभी को मात है ।
 

 

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