जून 06, 2025

POST : 1982 दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी  ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

चोरी चोरी चुपके चुपके नहीं सोशल मीडिया पर दुनिया भर के सामने लड़ना झगड़ना  ऐसे धनवान लोगों का और ताकतवर देशों के शासकों का सभी ने देखा रात भर जागकर । देसी भाषा में इसको खुला खेल फर्रुखाबादी कहते हैं , अमेरिका में क्या कहते हैं नहीं मालूम । लेकिन मैं उनकी तरह कोई विश्लेषण नहीं करने वाला जिनको सब पता होता है और सभी कुछ का वीडियो बनाकर यूट्यूब चैनेल पर शेयर करना होता है वो भी सबसे पहले और सबसे शानदार । हमने सरकारों की बादशाहों की पैसे वाले धनवान भाई बहनों से लेकर कारोबार में टक्कर देने वालों की कौन बड़ा कौन छोटा को लेकर टकराव की चर्चा बहुत सुनी हैं । मैंने कभी उनकी दोस्ती को दोस्ती नहीं समझा और न ही दुश्मनी को दुश्मनी समझने की भूल की है । बड़े लोगों की बातें कभी बड़ी नहीं होती हैं कभी देखना सोचना समझना तो गली के शहर के चौक पर झगड़ते हुए छोटे छोटे बालक जैसे लगते हैं झट से बाप दादा मां बहन पर उतर आते हैं कभी हाथ नहीं लगाते कायर बन कर दूर से धमकियां देते हैं । 
 
हमको तो अपनी बात कहनी है हमने सब कर के देख लिया है न तो दोस्त बनाकर दोस्ती करना अच्छा है न ही दुश्मन बनाकर दुश्मनी करना अच्छा है । हमको तो हमेशा महसूस हुआ है कि जिनको न दोस्ती करने का सलीका आता है न ही दुश्मनी निभाने का तरीका आता है उन से रिश्ता नाता क्या पहचान तक नहीं रखनी चाहिए । मगर ये अपने बस की बात नहीं क्योंकि जब भी अजनबी अनजान लोगों से मिलते हैं जान पहचान होती है बातें मुलाकातें होती हैं तब बातों बातों में प्यार भी होता है किसी से किसी से तकरार भी हो जाती है । वास्तव में ज़िंदगी की अधिकतर परेशानियां ऐसे ही मिलती हैं कभी बाद में सोचते हैं कि काश उनसे पहचान क्या परिचय ही नहीं होता तो बेहतर था । तेरी दुश्मनी से बढ़कर तेरी दोस्ती ने मारा , हमने तो ढूंढ लिया है किसी मझधार में कोई किनारा , सभी जीता किये मुझसे मैं सभी से बाज़ी हारा ।  
 
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों , मुहब्बत हुई शादी हुई अब आप कुछ भी कर लें कभी अजनबी की तरह जीना संभव नहीं है । पहली बात तो अलग होना ही आसान नहीं है और कितनी मुसीबत से बचने को समझौता कर लेते हैं । अलग अलग होने पर भी ख़लिश रहती है , परवीन शाकिर कहती है , ' कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उसने , बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की । शायद ही कुछ लोग मिलते हैं जिनको आता है जियो और जीने दो का ढंग अन्यथा अधिकांश जीते हैं न जीने ही देते हैं । मीरा भी कहती है जो मैं इतना जानती प्रीत  किये दुःख होय , नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत ना करियो कोय ।  मुझे लगता है जितनी भी कहानियां हैं उन में दोस्ती और दुश्मनी को लिखने वालों ने अपनी सुविधा के लिए उपयोग किया है जब चाहा कोई दोस्ती की परिभाषा बनाई और किसी ने दोस्ती निभाने को अपनी जान की बाज़ी लगा दी । कभी दुश्मनी को इस हद तक बढ़ाया की नफ़रत की इंतिहा कर दी , मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे ऐसे शब्द कहने वाला कभी वास्तव में प्रेमी रहा हो यकीन नहीं किया जा सकता । मगर लेखक को गीत लिखना था इसलिए इक ज़रा सी गलतफ़हमी से इतना बदगुमां हो गया , क्या ऐसे नायक से नायिका फिर कभी नाता कायम रखना चाहेगी , ज़िंदगी में जाने कब कोई ऐसा दृश्य दिखाई दे जाये । कभी किसी अगली कहानी में नायक पछताता है गलतफ़हमी का शिकार होकर अपनी पत्नी से अलग होने के बाद , गाता है ज़िंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम वो फिर नहीं आते । आज दोस्ती दुश्मनी के गीतों के बोलों को याद करना भी अनावश्यक लगता है । बहुत देर लगती है समझ आने में कि ये दोनों ही सिर्फ पागलपन हैं कुछ भी और नहीं हैं किसी से दोस्ती अच्छी न किसी से दुश्मनी अच्छी । अमेरिका के शासक की दोस्ती दुश्मनी हो चाहे अपने देश के शासक की यारी दुश्मनी हमको क्या मतलब है क्या हासिल होगा कल उनके रिश्ते बदल जाएंगे हमको क्या पता कौन कितने पानी में है । आज कुछ शेर अपनी ग़ज़ल से दोहराना चाहता हूं । 
 
 
 

हमको ले डूबे ज़माने वाले ( ग़ज़ल ) 

 

 डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

 

हमको ले डूबे ज़माने वाले
नाखुदा खुद को बताने वाले ।
 

हो गये खुद ही फ़ना आख़िरकार 
मेरी हस्ती को मिटाने वाले । 
 
 
एक ही घूंट में मदहोश हुए 
होश काबू में बताने वाले । 
 
 
तूं कहीं मेरा ही कातिल तो नहीं
मेरी अर्थी को उठाने वाले ।


तेरी हर चाल से वाकिफ़ था मैं
मुझको हर बार हराने वाले ।


मैं तो आइना हूँ बच के रहना
अपनी सूरत को छुपाने वाले ।
 
 
 Mira bhajans: Rhythm divine

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

...झट से मां बाप दादा....👌👍 दोस्ती दुश्मनी पर बात करता लेख