बड़े क्या हुए बदनाम हो गए ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
नाम वाले सभी बदनाम हैं कमाल है बदनामी को शोहरत समझने लगे हैं आजकल सभी । सुना करते थे बदनाम हैं तो क्या हुआ नाम तो है पर कोई ऐसा चाहता नहीं था जैसा इधर चाहे नहीं चाहे होने लगा है और बदनामी से लोग घबराते नहीं हैं । दाग़ अच्छे हैं क्या अजीब विज्ञापन है दाग़ कपड़े पर हो या चालचलन पर किसे परवाह है । यहां आज अलग-अलग समाज की बात करते हैं कैसे बदनामी ख़ास होने की निशानी बन गई है । बुरा होना चाहते हैं इधर लोग बदनाम होकर वो सब मिलता है जो शराफ़त से ज़िंदगी भर नहीं मिलता । बुराई की आरती पूजा ईबादत होने लगी है ये दुनिया खुद अपनी लाश कंधों पे ढोने लगी है ।
सोशल मीडिया पर देश से राज्य के शहर गांव तक जिनकी छवि ख़राब है गुंडे बदमाश सफेद लिबास में समाज देश के नियम कायदे को ताक पर रखने वाले राजनीति करते भली भली बातें करते नज़र आते हैं । कोई लोक लाज नहीं हैं कैसे और बनते कैसे हैं साधु का भेस धारण किये शैतान इस युग की पहचान हैं लूट डाका घोटाला समाज में आतंक फैलाना उनको शान की बात लगता है । इनकी शान ओ शौकत खुद की कमाई की नहीं देश राज्य के ख़ज़ाने की बदौलत होती है । बाड़ बन कर खेत को खाने वाले राजनेता समाजसेवक सरकारी अधिकारी कर्मचारी जनता की भलाई देशसेवा और ईमानदारी से लेकर संविधान की झूठी शपथ उठाते हैं । पुलिस न्यायपालिका अन्यायी अत्याचारी गुनहगार गंभीर अपराध के दोषी की ढाल बन कर देश में अराजकता को जुर्म को बढ़ावा दे रही है । अख़बारों में उनका नाम तस्वीर छपती है लेकिन इश्तिहार की तरह झूठी सच्ची बात कभी नहीं छपती क्योंकि टीवी अखबार खबर नहीं ढूंढते खबरें उनके पास खुद आती हैं साथ पैसा दौलत और विशेषाधिकार भी लाकर । ईमान को बेच कर बड़ी उंचाईयों को छूने का दावा करने वाले वास्तव में इतना नीचे गिर चुके हैं कि रसातल तक पहुंच गए हैं । सत्ता और धन की ताकत ने आदमी को हैवान बना दिया है और हैवानियत को कोई भला चंगा नाम देने लगे हैं ।
अब बात करते हैं प्यार इश्क़ मुहब्बत की जो आजकल शायद ही कोई करता है लेकिन जिधर देखो इसी का चर्चा है । वो प्यार जो दिलों में पलता था गुलाबी ख़त से लेकर खूबसूरत नग्में गाते थे , हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू हाथ से छू के उसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो । सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो । अपने प्यार की तौहीन नहीं करते थे मिलन हो नहीं हो दिल में आख़िरी सांस तक रहते थे दर्द सहते थे कुछ नहीं कहते थे । आजकल खुले आम सोशल मीडिया पर प्यार का कारोबार होता है किसी एक से नहीं जाने किस किस को कितनों से कितनी बार ये जिस्मानी प्यार होता है । किसी को कभी नहीं किसी का ऐतबार होता है ये सिलसिला ख़त्म होता है नया शुरू होने को ये शराब का उतरता ख़ुमार होता है । सिनेमा टीवी सीरियल से रियल्टी शो तक प्यार को बदनाम करते रहते हैं अपनी गंदी मानसिकता शारीरिक आकर्षण की चाहत को आशिक़ी का नाम देकर कितना बुरा काम करते हैं । कुछ बड़े नाम वाले लोगों को लेकर झूठे सच्चे किस्से मनघड़ंत कहानियां ये मीडिया वाले बनाते हैं कौन किस से वफ़ा करता रहा कोई उनसे जाकर नहीं पूछता घटिया बातों को नासमझ नादान लोग प्रेम गाथाएं बतलाते हैं । इक दहशत है इक डर है ये प्यार नहीं है हर किसी के हाथ में गुलाब है हर किसी के दिल में पत्थर है ।
धर्म की बात क्या बताएं किस किस का सच झूठ आज़माएं हमने देखा है हर जगह जाकर कुछ नहीं मिला रास्ता ढूंढा किस तरह से बचें निकलें उनके चंगुल से ख़ैरियत से अपने घर आएं । सब लोग वहां जाते हैं पाने को जिस को मिलता उस का कोई निशान नहीं लेकिन ये पिंजरा नहीं कैदखाना नहीं इक जंगल है फ़ैली आग जिस में कोई भी ठहरने का मुकाम नहीं बाहर निकलना ज़िंदा आसान नहीं । है कितना कुछ बस कोई भी आदमी अच्छा इंसान नहीं । और किस किस की बात की जाए हर तरफ यही बदहाली है और इस बर्बादी को समझने लगे हैं यही आधुनिकता है चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होता मालूम है मगर समाज इस झूठी चमक दमक इस जगमगाती चकाचौंध रौशनी का कायल हो गया है । झूठ का कोई देवता बनाकर उसकी आराधना करने लगे हैं अमृत समझ ज़हर पी खुद अपने हाथों मरने लगे हैं लोग । बाहर उजाला ही उजाला है मगर सभी के भीतर मन में कोई घना अंधकार छाया हुआ है । सुबह होने की उम्मीद तक छोड़ बैठे हैं यही है नसीब समझ बैठे हैं ।
ग़ज़ल - डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
जिन के ज़हनों में अंधेरा है बहुत
दूर उन्हें लगता सवेरा है बहुत ।
एक बंजारा है वो , उसके लिये
मिल गया जो भी बसेरा है बहुत ।
उसका कहने को भी कुछ होता नहीं
वो जो कहता है कि मेरा है बहुत ।
जो बना फिरता मुहाफ़िज़ कौम का
जानते सब हैं , लुटेरा है बहुत ।
राज़ "तनहा" जानते हैं लोग सब
नाम क्यों बदनाम तेरा है बहुत ।
दूर उन्हें लगता सवेरा है बहुत ।
एक बंजारा है वो , उसके लिये
मिल गया जो भी बसेरा है बहुत ।
उसका कहने को भी कुछ होता नहीं
वो जो कहता है कि मेरा है बहुत ।
जो बना फिरता मुहाफ़िज़ कौम का
जानते सब हैं , लुटेरा है बहुत ।
राज़ "तनहा" जानते हैं लोग सब
नाम क्यों बदनाम तेरा है बहुत ।
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया आलेख...बदनामी से शुरू होकर प्यारी ग़ज़ल पर खत्म होता है👌👍
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