जुलाई 08, 2023

तीन में नहीं तेरह में भी नहीं ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  तीन में नहीं तेरह में भी नहीं ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

मुहावरे की बात करते हैं लेकिन पहले मुहावरे को समझते हैं ये कैसे बना कब शुरू हुआ । एक बेहद धनवान व्यक्ति अपने नगर की एक तवायफ पर मोहित हो गया था । रोज़ उसका मुजरा देखने के लिए जाता था और उसे उपहार में काफी धन , रत्न एवं आभूषण दिया करता था । एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब उस धनवान व्यक्ति की ओर से तवायफ को कोई उपहार ना मिलता हो । एक दिन उस धनवान व्यक्ति को नगर से बाहर जाना था । उसने अपने निजी सचिव को एक काफी महंगा सोने का हार देते हुए कहा कि , कल मेरी अनुपस्थिति में तुम चले जाना और उसे कहना कि यह उपहार उसे सबसे ज्यादा चाहने वाले व्यक्ति ने भेजा है । आदेश अनुसार निजी सचिव तवायफ के पास पहुंचा और सोने का हार देते हुए कहा कि यह उपहार आपको आपके सबसे ज्यादा चाहने वाले व्यक्ति ने भेजा है । तवायफ ने कंफर्म करने के लिए सबसे पहले तीन नाम लिए तीनों में उस धनवान व्यक्ति का नाम नहीं था । फिर तवायफ ने 10 नाम और बताए लेकिन इसमें भी धनवान व्यक्ति का नाम नहीं था । निजी सचिव तवायफ से सोने का हार वापस वापस लेकर चला आया । दूसरे दिन जब धनवान व्यक्ति यात्रा से लौट कर आया और पूछा कि क्या तुमने तवायफ को मेरा उपहार मेरे मैसेज के साथ दे दिया । तब उसके निजी सचिव ने उसे बताया कि सेठ जी आप , तीन में न तेरह में , न सेर भर सुतली में , न करवा भर राई में । 

   इधर सरकार को सब का ख़्याल आने लगा है हर वोटर को लुभाने को खैरात बंटवाने की बात होने लगी है । वरिष्ठ नागरिक विधवा बुढ़ापा उपेक्षित वर्ग से गरीब बेबस के बाद फ़रमान सरकारी है जिनका कोई नहीं पति पत्नी कुंवारे हैं उनकी भी आई बारी है । कुछ और बाकी रह गए हैं उनकी कौन समझता कितनी लाचारी है । यहां त्रिशंकु जैसे लोगों की बात है जिनका कोई दिन नहीं न कोई रात है जिनकी फ़सल पर हुई बेमौसमी बरसात है जिनके हाथ में नहीं किसी का हाथ है । ज़मीं नहीं जिनकी न कोई आस्मां है बिखर गया जिनका आशियां हैं कोई मंज़िल है न कोई कारवां हैं । अलग-अलग होने वालों की ये दर्द भरी दास्तां हैं मुझे कुछ नहीं कहना बस लिखना उन सभी का बयां हैं जो ढूंढते हैं चैन दिल का मिलता कहां है । 

   सीधी साफ सच्ची बात कहते हैं जो अपने हमसफर से बिछुड़ गए छोड़ा किस ने किस को छोड़ो जो हुआ सो हुआ तन्हा-तन्हा रहते हैं । कुछ तलाकशुदा कुछ मझधार में अटके हैं अदालत की चौखट पर क्या बताएं कितना भटके हैं । सरकार उनकी तरफ भी निगाह ए करम डालो उनको मिलते समाज में बस झटके ही झटके हैं । इक तो जुदाई का ग़म उस पर ये सितम भी नहीं कम सरकार की निगाह में उनका कोई वजूद नहीं है उनकी गिनती तीन में नहीं न तेरह में ही है । परवीन शाकिर कहती हैं कैसे कह दें कि मुझे छोड़ दिया है उस ने , बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की । जनाब राहत इंदौरी जी भी कहते हैं  , मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का , इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूंगा उसे । सरकार से गुज़ारिश है जिनकी कोई खबर नहीं लेता उनकी भी खबर लेनी चाहिए । कुंवारे विवाहित बड़े बूढ़े सब की चिंता है तलाकशुदा औरत मर्द दोनों की भी बात इस बार होनी चाहिए । कुंवारे लोगों को पेंशन मिलने लगी तो क्या वो विवाह नहीं करेंगे आपकी राह चलने लगेंगे या कहीं चुपचाप शादी कर या बिना शादी संग संग रहते हुए चार चार लड्डू खाने को पाते रहेंगे इस से किसी को क्या लेना देना । लेकिन तलाक लेने देने के बाद समाज में उपेक्षित वर्ग की उपेक्षा सरकार भी करने लगी तो मामला भेद-भाव का समानता का मौलिक अधिकार से लेकर न्याय में समानता का बन जाएगा  । हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , खाक़ हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक , चचा ग़ालिब फरमाते हैं बस और देर मत करना कहीं देर न हो जाए । 
 
आखिर में सत्ताधारी दल ही नहीं सभी राजनैतिक दलों को अवसर का लाभ उठाना चाहिए और घोषणापत्र में सिर्फ तलाकशुदा की ही नहीं जिनको चाहत है तलाक लेने की उनके लिए भी कोई वादा कोई लुभाने को आर्थिक कानूनी मदद की बात की जा सकती है । सर्वेक्षण करवा देखें कितने आपको चाहने वाले मिलेंगे जो सामने नहीं आते मगर ख़ामोशी से समर्थन और वोट डालकर आपकी बिगड़ी सूरत को संवार सकते हैं । कहते हैं जिनका कोई नहीं उनका भगवान होता है लेकिन भगवान की चौखट से ख़ाली हाथ ख़ाली दामन लौटने वाले कहां जाएं कोई दर उनको भी खुला मिलना चाहिए । 
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

उत्तम उद्धरण से शुरुआत करते हुए...राजनीतिक आकाओं की पोल खोलता लेख