अगस्त 13, 2023

दुनिया बदल गई हम नहीं बदले ( इज़हार ए मुहब्बत ) डॉ लोक सेतिया

दुनिया बदल गई हम नहीं बदले ( इज़हार ए मुहब्बत ) डॉ लोक सेतिया  

सब लोग समझा समझा कर थक गए पर हम पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ अब कैसे समझाएं की हम खुद बदलना ही नहीं चाहते या कोशिश की मगर हम से दुनिया के साथ पल पल बदलना नहीं हो पाया । चलो हम पुराने ही रहे तो कोई बात नहीं यहां कितने बदलाव कर के भी लोग फितरत नहीं बदल सके । ये महीना ही ऐसा है 15 अगस्त आने से पहले ही देश से प्यार करने वालों की तैयारी दिखाई देने लगती है पर धीरे धीरे देशभक्त कहलाने वाले बढ़ रहे हैं मगर देशभक्ति इस तरह घटती गई है कि वास्तविक देशभक्ति ढूंढने से कहीं नहीं मिलती । थोड़ा अजीब लगेगा कि देशभक्त हैं सभी लेकिन देशभक्ति सभी में मिलती नहीं है ठीक वैसे जैसे इधर इश्क़ आशिक़ी प्यार मुहब्बत की बात सब करते हैं बस वफ़ा क्या होती है कैसे निभाते हैं इस से सभी अनजान हैं । टीवी पर शो में आज़ादी और शहीदों की बातें गीत संगीत खूब छाये हुए हैं और दर्शक से लेकर शो बनाने वालों से भाग लेने वालों और निर्णायक बने ख़ास अनुभवी लोगों से लेकर विशेष अतिथिगण तक कुछ क्षण को भावविभोर दिखाई देते हैं और कितनी बार नम आंखें और भावनापूर्ण बातें सुनकर लगता है जैसे इस आधुनिक दुनिया में कुछ भी बुराई कहीं नहीं है सब भले संवेदनशील लोग हैं । लेकिन इस टीवी की सिनेमा की पर्दे की दुनिया और शहर शहर गली गली आयोजित रंगारंग समारोह से बाहर निलकते ही जो असली दुनिया है वहां सब बिल्कुल विपरीत है । कोई सच्चाई ईमानदारी और  त्याग बलिदान की राह पर चलने की बात कदापि नहीं करता सबको खुदगर्ज़ी स्वार्थ और ऐशो आराम की मौज मस्ती नाचने झूमने की आरज़ू रहती है । किसी और का दर्द किसी की परेशानी किसी की बेबसी कोई नहीं समझता है । अपने अपने मतलब की खातिर सभी देश को बर्बाद करने अपराध को बढ़ावा देने और शासक बनकर देश में अपनी मनमानी करने वालों की जयजयकार करते हैं । लोकतंत्र न्याय और मानवता की चिंता कौन करता हैं सब मानते हैं कि सत्ता पर बैठ नियम कानून को ताक पर रख संविधान की धज्जियां उड़ाना उनका अधिकार है जिन के पास जनता द्वारा निर्वाचित होने अथवा बड़े बड़े पदों पर नियुक्त होने से अधिकार हैं लेकिन कर्त्तव्य निभाने की बात याद नहीं जिनको । 
 
विदेशी शासकों के अन्याय अत्याचार और दमन के ख़िलाफ़ लड़ने वाले शहीदों की समाधियां बनाते हैं बुत बनाते हैं उन पर फूल चढ़ाते हैं लेकिन उनकी राह पर चलने को कोई तैयार नहीं है । हर कोई मानता है ये उसका काम नहीं है गुंडागर्दी और अराजकता का झूठ का विरोध करना हर किसी को पागलपन लगता है । किस देश समाज की भलाई की बात करते हैं जिसको खराब करने वालों का विरोध हम नहीं करना चाहते बल्कि अपनी सुविधा अनुसार उनके पक्ष में खड़े ताली बजाते हैं । सोचते समझते हुए भी गलत का समर्थन करते हैं लेकिन खुद को देशभक्त मानते हैं देशभक्ति का अर्थ नहीं समझते हैं । इधर कविता साहित्य फ़िल्म टीवी सीरयल टीवी शो सभी दर्शकों को वास्तविक दुनिया से नहीं किसी झूठी बनावटी काल्पनिक दुनिया से परिचित करवाते हैं जहां हर तरफ चकाचौंध रौशनी है । देश में भूख है आधी आबादी को जीने के बुनियादी अधिकार तो क्या पीने को साफ पानी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं ये सब रईस अमीर और धनवान लोगों को ऊंचे दाम मिलती हैं समानता की बात की जाती है समानता दिखाई नहीं देती । केवल मुट्ठी भर लोगों के पास देश का अधिकांश धन और संपत्ति है और एक तिहाई जनता के पास कुछ भी नहीं । आज़ादी संवैधानिक अधिकार मौलिक अधिकार मानवाधिकार और न्याय अधिकांश जनता को कुछ भी हासिल नहीं है क्या इसी आज़ादी की कल्पना की थी देश की गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने को अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले सवतंत्रता सेनानियों ने । जिसे देखो अपने धर्म की अपनी अपनी पहचान की बढ़ाई करते है और वही सबसे अच्छा है कोई और अपने से अच्छा नहीं हो सकता मानता ही नहीं मनवाना भी चाहता है लेकिन विडंबना या हैरानी की बात है कोई खुद अपने ही धर्म समाज की बातों पर अमल नहीं करता । आदर्श की बातें सोशल मीडिया और महफ़िल सभाओं में भाषण और चर्चा के लिए हैं वास्तविक जीवन में सभी का आचरण बिल्कुल विपरीत होता है । अवसर मिलते ही कुछ भी करने में संकोच नहीं आज किसी की कल किसी और की जयजयकार करते हैं थाली के बैंगन हैं जिधर झुकाव उधर लुढ़कते रहते हैं । मान्यताएं बदलते देर नहीं लगती । विचारधारा की बात क्या जब विचार करना विवेक से काम लेना छोड़ दिया है । सारी दुनिया बदल गई हम नहीं बदले क्योंकि हमने खुद अपने आप से नज़र मिलाना कभी नहीं छोड़ा और जिस पर चलते नहीं उस राह को अच्छा बताने का दम नहीं भरते जैसे हैं वैसे दिखाई देते हैं । सभी से दोस्ती करने की कोशिश की है कभी किसी को दुश्मन नहीं समझते हैं अपने विचार किसी पर थोपना नहीं चाहते हैं । सही को सही गलत को गलत कहने में कोई संकोच नहीं है जिस राह को सच्चाई का मार्ग मानते हैं उस से भटकते नहीं कितनी कठिनाइयों के बावजूद भी । अपने फायदे की ख़ातिर झूठ की परस्तिश नहीं करते बल्कि झूठ को झूठ बताने की आदत रही है , आदत बदलना नहीं आता और बदलना भी नहीं चाहते । तभी हर किसी को अखरते हैं कड़वा सच कौन सुनेगा और मीठा झूठ बोलना नहीं चाहते हैं हम कभी भी । आखिर में कुछ लाजवाब शेर कुछ बड़े शायरों के डायरी में संकलित किये हुए हैं , उनके नाम ठीक से याद नहीं पेश हैं । 

न मिले ज़ख़्म न निशान मिले ,  पर परिंदे लहू-लुहान मिले । 

यही संघर्ष है ज़मीं से मेरा  ,  मेरे हिस्से का आसमान मिले । 

छोड़ो कल की बात हमारे साथ चलो ,  बदलेंगे हालात हमारे साथ चलो । 

साज़िश में दिन-रात लगे कुछ लोग यहां ,  हाथों में दे हाथ हमारे साथ चलो ।  

दर और दरीचों के लिए सोच रहा है  , वो कांच की बुनियाद पे दीवार उठाकर । 

घर में सब के खिड़कियां थीं और दरवाज़ा भी था , घुट के मर जाने का सब को अंदाज़ा भी था । 

जब पूछ लिया उन से कि किस बात का डर है , कहने लगे ऐसे ही सवालात का डर है । 

ज़मीनों आसमां सब के लिए हैं सोच लो  ,  तुम्हारी ही नहीं जागीर ज़हन में रखना । 

यकीनन मुश्किलें तो आयेंगी पर दोस्तो , निपटने की कोई तदबीर ज़हन में रखना । 



 




 
 

कोई टिप्पणी नहीं: