कैसे कैसे गुरु कैसी कैसी शिक्षा ( आख़िर इस दर्द की दवा क्या है )
डॉ लोक सेतिया
अब उनकी तो बात ही क्या की जाए जो शिक्षा देने से इनकार करते थे फिर भी गुरु दक्षिणा में अंगूठा ही कटवा कर बेबस अपाहिज बनाने में संकोच नहीं करते थे । अब सच्चाई ईमानदारी की पढ़ाई कोई अध्यापक कोई शिक्षक नहीं पढ़ाता है खूब पैसे देकर धनवान बनने के तौर तरीके सबक सीखने वाले भी सिखाने समझाने वाले को गुरु तो नहीं समझते हैं । शिक्षा इक बाज़ार ही नहीं कारोबार बन गया है और लूटने के तौर तरीके खोजते हैं और शराफ़त की नकाब लगा कर देश समाज को कितना कैसे लूटना है यही पाठ पढ़ाते हैं । सदाचार की उचित व्यव्हार की बातें नेक कमाई और ऊंचे आदर्श की शिक्षा खुद उनको नहीं भाती न ही पढ़ाना चाहते हैं । लेकिन गुरु हैं और बहुत अनगिनत तरह की शिक्षा उपदेश और उल्टी राह दिखलाने वाले । सोशल मीडिया पर ऐसे कितने लोग हैं जो नफरत का ज़हर बांटते रहते हैं कभी राजनीति कभी धर्म कभी तथाकथित घिसे पिटे संस्कारों संस्कृतियों के नाम पर । अनपढ़ या पढ़े लिखे का कोई अंतर नहीं है सभी अज्ञानी खुद को सर्वज्ञानी घोषित किए हुए हैं । उनके दिलो दिमाग़ भरे पड़े हैं ऐसे भटकाने वाले संदेशों या नकारात्मक उपदेशों से पता नहीं कहां से इतना विष उनको मिला है जो खुद उनके भीतर से विवेक को ख़त्म कर सभी को बर्बाद करने को उतावला है । ये विष को अमृत बताते ही नहीं प्रमाणित करते हैं यही असली है कोई न कोई लेबल लगाया हुआ है । उपदेशक तक समाज को सही राह चलने को नहीं कहते बस उनका अनुयायी बन कर उनके हर अपराध है गुनाह को अनदेखा कर उनका गुणगान करने को जाने कैसे इक मज़बूरी बना देते हैं कि गुनहगार अपराधी साबित होने अदालत से दोषी करार दे सज़ा मिलने के बावजूद भी अनुयायी उनको गुरूजी बताते घबराते नहीं है ।
बड़े बड़े पदों पर बैठे शासक प्रशासक राजनेता अधिकारी कर्मचारी संविधान और देश राज्य के प्रति निष्ठा और ईमानदारी को ताक पर रख कर अन्याय अत्याचार और सामान्य जनता को सताने का कार्य करना अपना अधिकार समझते हैं । इन सब को भ्रष्टाचार और घोटाले बनाने की शिक्षा किसी न किसी से मिलती है जिसे अपना स्वामी समझ हराम की काली कमाई से चढ़ावा देते रहते हैं । देश समाज को घुन की तरह खाने और खोखला करने वाले लोगों से बड़े बड़े उद्योगपति बड़े कारोबारी गठबंधन कर देश की अर्थव्यस्था को गिराने में रसातल से नीचे पहुंचा रहे हैं लेकिन वास्तविक संत महात्मा नहीं जो जनता को ऐसे पापियों का विरोध करने की बात भी कर सके । सब देखते हैं सुनते हैं समझते हैं पर बापू के बंदर बनकर बिल्लियों को रोटी का बंटवारा करते हैं । बहुत थोड़े लोग हैं जिन्होंने किसी को गुरु नहीं बनाया अन्यथा हर कोई किसी ऐसे गुरु की चंगुल में फंसा हुआ है लेकिन बंधक होने को अपना सौभाग्य मानते हैं । गुरु शब्द की परिभाषा फिर से समझाने की आवश्यकता है कि जो आपको विवेकशून्य स्वार्थी और लोभी लालची बनाता है उसकी शरण जाने से कल्याण होता है और आपको मरने तक स्वर्ग का इंतज़ार नहीं करना पड़ता आप जैसे चाहें बिना महनत काबलियत मालामाल होकर आनंदमय जीवन जी सकते हैं किसी पाप अपराध का बोझ नहीं मन पर रखना जो मर्ज़ी करो सब माफ़ है । आधुनिक गुरूजी की माफ़ी सबको मिलती है उनके गुनाहों को उचित मानकर उनके अपकर्मों में सहभागी बन कर । हर कोई इक व्यौपारी है गुरु का चोला धारण कर और भगवान से नहीं डरते क्योंकि उनको यही याद है गुरु भगवान से अधिक महान हैं लेकिन आधुनिक गुरु भगवान से नहीं शैतान से मिलवाते हैं और लोग भी शैतान को देख ख़ुशी से झूमते हैं शैतान से डरना भी और उसका गुणगान करना भी यही सफलता की सीढ़ी है ऐसा पढ़ाया समझाया जाता है । भगवान को लेकर अभी किसी को सोचने की फुर्सत नहीं है कभी कभी किसी धार्मिक स्थल मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जा कर सर झुका आते हैं नज़र नहीं आता कहीं कोई ईश्वर साक्षात सुविधा है आशिर्वाद मिलता दिखाई देता है भरम बना रहता है दोनों का ईश्वर का और उसे मानने वाले का भी । गुरु दक्षिणा अग्रिम भुगतान से वसूली जाती है जैसे कोई चाहे गुप्त ढंग से नकद या ऑनलाइन सभी तरीके आसानी से उपलब्ध हैं ।
1 टिप्पणी:
आजकल के भटके हुए, स्वार्थ में लिप्त गुरुओं की कलई खोलता बढ़िया लेख
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