जुलाई 19, 2023

जनता का गठबंधन कब होगा ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया

   जनता का गठबंधन कब होगा ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया  

  सबका अपना अपना सांझा मंच होता है नौकरी कारोबार शिक्षक डॉक्टर्स से सामाजिक धार्मिक कितने ही संगठन हैं । ज़रूरत मुसीबत के समय इनका आपसी तालमेल भी होता रहता है अधिकांश जनसमस्याओं को लेकर आपसी मतभेद को एक तरफ छोड़ मतलब की दोस्ती भाईचारा निभाना पड़ता है , अभी उनके इस आचरण को एक तरफ रख कर देश की सत्ता की राजनीति की चर्चा करते हैं । चुनाव से पहले का हिसाब अलग होता है और चुनाव बाद सरकार बनाने का बिल्कुल अलग । भले किसी दल को कितना बड़ा बहुमत हासिल हो सरकार का गठन शुद्ध लेन देन का घाटे मुनाफ़े का गणित लगा कर किया जाता है । कमाल की बात यही है सत्ता मिलने के बाद सत्ता सुःख और भविष्य में सत्ता विस्तार पर ध्यान रखते हैं देश जनता और बाक़ी सभी लोकलुभावन बातों को किसी कूड़ेदान में फैंक देते हैं या किसी तहखाने में रखते हैं ताकि जब कभी सीधे ढंग से बात नहीं बने उंगली टेढ़ी कर घी निकाला जा सके । ये आसान तो नहीं होगा फिर भी कभी कोई इस को लेकर शोध करना चाहे कि देश राज्यों की राजनीति की विचारधारा को लेकर कब कौन कितनी बार इधर से उधर उधर से किसी और तरफ पाला बदलते रहे तो दुश्वारी यही होगी कि सभी मौसेरे भाई कभी सगे कभी सौतेले रहे हैं । ये आपसी परिवारिक झगड़ा है कोई दुश्मनी हर्गिज़ नहीं बस बंटवारा बराबर होना संभव ही नहीं है किसी भी बंदर को बिल्लियों का भरोसा नहीं बचा है बंदरबांट का खेल जारी है हर सरकार कन्या कुंवारी है दूल्हों की तैयारी है आती नहीं जनता की बारी है ये कैसी लाचारी है । 
 
  पूरा किस दिन इक ख़्वाब होगा देश में सच्चा इन्क़लाब होगा हर लुटेरा बेनकाब होगा सभी गुनहगारों के गुनाहों का हिसाब होगा । देश की जनता एक साथ मिलकर नेताओं अधिकारियों झूठ के कारोबारियों को हर मंच पर हराएगी गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ असली आज़ादी का जश्न मनाएगी । कोई बड़ा न कोई छोटा होगा कोई ख़ास नहीं कोई शासक नहीं ज़ुल्म का नाम निशान मिट जाएगा सर उठाकर जिएंगे हम कोई किसी के सामने नहीं अपना सर झुकाएगा ।  जनता शासकों से टकराएगी जब सच्चाई झूठ से नहीं घबराएगी राजनीति की पाठशाला गुलामी को छोड़ आज़ादी का मतलब समझाने को मिट्टी से तिलक लगाएगी ये सड़ी गली व्यवस्था उठा कर फैंक दी जाएगी । तानाशाही जड़ से मिट जाएगी तलवार ज़ालिम की हाथों से गिर जाएगी साहिर की ख्वाबों की वो सुबह जिस दिन आएगी जेलों के बिना दुनिया की सरकार चलाई जाएगी । देश की भोली जनता समझेगी मालिक खुद को सर पर जो नाच रहे उनको पांवों तले धरती पर ढायेगी जिनको सेवक चुना उनको कर्तव्य का सबक पढ़ाएगी । आपसी मतभेद भुलाकर असली दुश्मन को पहचानेगी तख़्त ओ ताज़ को जनता ठोकर लगाकर खुद सिंघासन पर बैठ अपने अधिकार लेकर अपने निर्वाचित सेवादारों को ईमानदारी की राह चलने को विवश कर सामाजिक समानता की आधारशिला रख कर इक ऐसी ईमारत उठाएगी जिस पर गर्व करेंगें देशवासी दुनिया भी ख़ुशी मनाएगी । 
 

राजनीति पर कुछ दोहे पेश हैं :- 

 
नतमस्तक हो मांगता मालिक उस से भीख
शासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख ।

मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर ।

तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग ।

दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल ।

झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना  व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार ।

नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग ।

चमत्कार का आजकल अदभुत  है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार ।

आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता  यह अपना ईमान ।
 

इक बेचैनी है देशवासियों के दिलों में उसे लेकर कविता पेश है :- 

 
पढ़ कर रोज़ खबर कोई
मन फिर हो जाता है उदास ।

कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस ।

कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास ।

कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास ।

चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास ।

सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास ।

जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास ।

बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास ।

कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास ।
 


 

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