चंदा मामा ख़ुश हुए ( कुछ सच्ची कुछ झूठी ) डॉ लोक सेतिया
[ व्यंग्य कहानी ]
चंद्रयान को लेकर इक फ़िल्म बनानी पड़ेगी बॉलीवुड की नज़र थी सौ तरीके ढूंढ लेते हैं फ़िल्मकार बड़ी चतुराई से चोरी चोरी चुपके चुपके इक नायक को चंद्रयान के गुप्त कक्ष में जगह उपलब्ध करवा चांद पर भेज दिया गया ये राज़ कोई नहीं जानता आप भी बताना मत बस उधर से आने वाली सूचनाओं को जानिए । चांद को देखा तो हैरान हुए अभिनेता ये पाकर कि जैसा सोचा था वैसा कुछ भी नहीं नज़र आ रहा था मगर जाने कहां से मधुर गीतों की आवाज़ सुनाई दे रही थी कोई आशिक़ अपनी माशूका को सुनहरे सपने दिखला रहा था । ये रात ये चांदनी फिर कहां , चौदवीं का चांद हो या आफ़ताब हो , चांद सी महबूबा हो मेरी , चांदनी है रात सितारों की बारात हम थामे हाथों में हाथ निभाना जन्म जन्म का साथ , कितने नये पुराने गीत बज रहे थे । आखिर ढूंढा तो मिल गया इक उपकरण जिस में ये संगीत भरा खुद बज रहा था । बड़ी ही उबड़ खाबड़ जगह थी उसको ज़मीन नहीं कह सकते थे पांव रखते तो फ़िसल कर सीधे पाताल जाने का ख़तरा सामने दिखाई देता था धरती पहाड़ समंदर सब गायब थे जैसे किसी तेज़ हवा में तिनके जाने कहां खो गए हों । शायद कुछ नशा सा छाया था या नींद आने लगी और नायक गहरी मदहोशी में चला गया ।
नींद में ख़्वाब था अभिनेता के सर पर ताज था चांदनगरी इक देश था जिस पर उसका राज था । उसका भव्य शानदार दरबार था वही जनता वही राजा खुद अपनी सरकार था । बस इक मामा था जो किसी जादूगर की कहानी का जिन था जो मांगो सब तैयार था । मामा को उस से प्यार था यही इक ऐतबार था हर दिन इक रविवार था खाने की भूख नहीं न कोई पीने की प्यास थी कोई पेड़ पौधा नहीं कोई घोड़ा गधा नहीं बस बड़ी दूर दिखाई देती हरी हरी घास थी । चांद पर चांदनी की नहीं कोई औकात थी अंधेरा था न उजाला था कोई दिन था न कोई रात थी फिर भी कुछ तो बात थी फ़ैली हुई चमचमाती लुभाती कोई सौगात थी । अचानक इक आवाज़ आई संभलना मेरे भाई छूना मत किसी को भूले से ये सब है करिश्माई । ख़्वाब में ख़्वाब पूरा हो रहा था अभिनेता फिर से जवान होने लगा बुढ़ापा अपनी निशानी मिटो चुका था । धरती पर अपने चाहने वाले राजनेता को फोन लगाया था पहुंच गया सुरक्षित आपने जिस जगह भिजवाया था । हम दोनों यहां मिलकर झूमेंगे नाचेंगे गाएंगे अपनी दुनिया नई बसाकर विधाता हैं कहलाएंगे सदियों तक पूजे जाएंगे । खाने को पीने को कुछ नहीं है हम सबको यहां लाएंगे लेकर बस्तियां बसाएंगे भूखे नंगे ख़ुशहाल कहलाएंगे खाली पेट भजन गाएंगे । जागो सुबह हो गई है पत्नी ने जगाया था तब महानायक को होश आया था सीधे आसमान से धरती पर आया था । चांदनी का ख़्वाब था कि कोई घना काला साया था रात अधिक पी ली थी सर चकराया था जाने कौन था जिसको मामा समझा था जो घर छोड़ने आया था ।
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