महान नहीं अच्छा तो बनाएं ( देश-समाज ) डॉ लोक सेतिया
ख़ुद भी अपना गुणगान करते हैं और चाहते हैं दुनिया भी हमारे देश को महान समझे चाहे उस के लिए हमको अपनी वास्तविकता पर कितने झूठ के पर्दे डालने पड़ें , बल्कि जितना धन और साधन जो हम कदापि नहीं वही दिखलाने को करते हैं उसी का उपयोग बेहतर देश बनाने में किया जाता तो मुमकिन था महान नहीं पर देखने के काबिल अच्छा अवश्य बना सकते थे । हमारे लिए महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए दुनिया में शान का दिखावा प्रदर्शन अथवा अपने देश समाज की अनगिनत समस्याओं का समाधान स्थाई रूप से ढूंढना । क्या अजीब विडंबना है कि हमारी सरकार देश राज्य की और प्रशासन कभी पहले से सचेत नहीं रहता कि कोई समस्या पैदा होने की संभावना ही नहीं होने देने पर पहले से ध्यान रखे , इंतज़ार करते हैं दुर्घटनाओं अन्य परेशानियों के सामने आने के बाद समझने की उनसे निपटने का उपाय खोजने का तरीका समझने का । विज्ञान इंटरनेट आधुनिक सॉफ्टवेयर एप्प्स हमारी परेशानी कभी नहीं समझ सकते जिनको हमने इतना अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है कि खुद कुछ भी करने क्या सोचने समझने को तैयार नहीं हैं । कड़वा सच यही है कि सत्ता काबिल लोगों के हाथ में नहीं बल्कि ऐसे राजनेताओं के हाथों में है जिनको समझ ही नहीं देश की समस्याओं को हल करने को सही योजनाएं बनाने की क्योंकि जिस क्षेत्र संबधी समस्या हो उसे लेकर नेताओं की जानकारी लगभग शून्य होती है और उनके सलाहकार योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अन्य कारणों से नियुक्त होते हैं । सबसे खेदजनक बात है कि कार्यपालिका अधिकारी कर्मचारी सुरक्षाकर्मी से संवैधानिक संस्थाओं पर कार्यरत लोग सत्ता पर आसीन नेताओं की कठपुतलियां बन गए हैं और उनके अनुचित कार्यों गलत नीतियों पर खामोश रहते हैं । देश की समस्याएं जनता का अभिशाप होती हैं लेकिन सरकार प्रशासन के लिए वरदान जैसा क्योंकि सूखा बाढ़ या दुर्घटना भी कुछ लोगों के लिए घर भरने का अवसर होती हैं उनको लाशों का कारोबार करते भी संकोच नहीं होता है । अपराध समस्याएं उनके लिए शोक का नहीं जश्न मनाने का अवसर होती हैं मगरमच्छ के आंसू पर मत जाना ।
बड़े लोग ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
बड़े लोग बड़े छोटे होते हैंकहते हैं कुछ
समझ आता है और
आ मत जाना
इनकी बातों में
मतलब इनके बड़े खोटे होते हैं ।
इन्हें पहचान लो
ठीक से आज
कल तुम्हें ये
नहीं पहचानेंगे
किधर जाएं ये
खबर क्या है
बिन पैंदे के ये लोटे होते हैं ।
दुश्मनी से
बुरी दोस्ती इनकी
आ गए हैं
तो खुदा खैर करे
ये वो हैं जो
क़त्ल करने के बाद
कब्र पे आ के रोते होते हैं ।
75 साल बाद साफ पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं सभी नागरिकों को दो वक़्त रोटी शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं और रोज़गार की हालत की बात क्या करें । खुद शान ओ शौकत से रहने वाले शासक प्रशासक जनता को बुनियादी अधिकार नहीं देना चाहते और उस को ख़ैरात बांटने की बात करते हैं जो वास्तव में गर्व की बात नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी को मुफ़्त अनाज या ऐसी ही सरकारी अनुकंपा पर बेबसी भरा जीवन बसर करना पड़े । आज भी पुलिस से लेकर राजनेता तक सभी सामन्य नागरिक को सुरक्षा प्रदान नहीं करते बल्कि अपराधियों को संरक्षण देने का कार्य करते दिखाई देते हैं इतना ही नहीं अन्याय अत्याचार करने वालों का समर्थन करते नज़र आते हैं धनबल और बाहुबल के सामने नतमस्तक होकर । जिनको चुनाव में बहुमत पाने को अपराधियों और काली कमाई करने वालों की आवश्यकता होती है उनसे ईमानदारी से देश की जनता की सेवा की उम्मीद करना व्यर्थ ही है । अब तो लगता ही नहीं कि सांसदों विधायकों से आईएएस आईपीएस अधिकारी बड़े पदों पर बैठे प्रशासकों को जनता की परेशानी दुःख दर्द उनकी बदहाली से कोई भी सरोकार वास्तव में है । सच तो यही है कि देश की तीन चौथाई जनता के पास कुछ भी नहीं और एक चौथाई रईस धनवान साधन सम्पन्न वर्ग के पास ज़रूरत से बहुत ज़्यादा है फिर भी उनको और अधिक और भी अधिक की भूख है लालसा है जो ख़त्म नहीं होती बढ़ती जा रही है । सुदामा पांडेय धूमिल जी ने इक कविता में कहा है एक आदमी रोटी बेलता है एक आदमी रोटी खाता है एक तीसरा है जो रोटी बेलता नहीं रोटी खाता भी नहीं रोटी से खेलता है वो तीसरा कौन है इस पर देश की संसद मौन है ।
ये एक तिहाई से एक चौथाई लोग हैं देश की आबादी के जो रोटी से खेलते हैं । समाजसेवा धर्म सिनेमा टीवी चैनल से सोशल मीडिया तक पत्रकारिता से लेखन कार्य को इक निजी स्वार्थ का नाम शोहरत पाने का माध्यम समझ समाज को सच दिखाना छोड़ झूठ को सच साबित कर मालामाल होने को मकसद बना चुके हैं । हम हैरान होते हैं अपराध और असामाजिक तत्वों की बढ़ती गतिविधियों को देख कर जबकि सत्ताधीश और प्रशासन कोशिश करता है किसी तरह ऐसी तमाम घटनाओं को छिपाने या दबाने की क्योंकि उनका अक्सर गठजोड़ रहता है तमाम अवैध धंधों नशे का कारोबार से गुंडागर्दी तक से अपना आतंक कायम रखने को । हमारे धार्मिक ग्रंथों में अन्न को भगवान मानते हैं खाने को बर्बाद करना पाप अधर्म समझा जाता है लेकिन कभी शायद सोचा ही नहीं होगा कि देश के राष्ट्रपति भवन से लेकर कितने ही सरकारी आवास निवास स्थलों पर हर दिन कितना खाना बर्बाद किया जाता है जो चाहे किसी भी व्यक्ति या पद की खातिर हो देश की भूखी जनता के ख़िलाफ़ भद्दा मज़ाक ही है कभी पता लगाना कौन कितने लाख का खाना एक दिन का खाता है कोई मानव कभी नहीं खा सकता है ।
1 टिप्पणी:
वाजिब प्रश्न करता अच्छा आलेख👌👍
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