जो भूला लोकतंत्र आचार ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
जो भूला लोकतंत्र आचार
हुई सत्ता की जय जयकार ।
चुना था जिनको हमने , वही
बिके हैं आज सरे-बाज़ार ।
लुटा कर सब कुछ भी अपना
बचा ली है उसने सरकार ।
टांक तो रक्खे हैं लेबल
मूल्य सारे ही गए हैं हार ।
देखिए उनकी कटु-मुस्कान
नहीं लगते अच्छे आसार ।
1 टिप्पणी:
...कटु मुस्कान...नही अच्छे आसार👌👍
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