सच बोलना तुम न किसी से कभी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
सच बोलना तुम न किसी से कभी
बन जाएंगे दुश्मन , दोस्त सभी ।
तुम सब पे यक़ीं कर लेते हो
नादान हो तुम ऐ दोस्त अभी ।
बच कर रहना तुम उनसे ज़रा
कांटे होते हैं , फूलों में भी ।
पहचानते भी वो नहीं हमको
इक साथ रहे हम घर में कभी ।
फिर वो याद मुझे ' तनहा ' आया
सीने में दर्द उठा है तभी ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब👍
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