अपना यही विचार है ( पहली अप्रैल ) डॉ लोक सेतिया
कौन है अपना कौन पराया , पुराना हुआ ये विचार है
सबकी महफ़िल सबकी रौनक , यही बस व्यौपार है ।
चोरों की बस्ती में चर्चा है यही , जो सबसे बड़ा मूर्ख
सरदार बनेगा वही आज अप्रैल फूल का बड़ा त्यौहार है ।
सबसे पहले ईमानदारी की परिभाषा नई बनाई गई है
जनता को कहना होगा सच्ची सरकार सच्चा सरदार है ।
परिभाषा एक ( कविता )
है अपना तो साफ़ विचार
है लेन देन ही सच्चा प्यार ।
वेतन है दुल्हन तो रिश्वत है दहेज
दाल रोटी संग जैसे अचार ।
मुश्किल है रखना परहेज़
रहता नहीं दिल पे इख्तियार ।
यही है राजनीति का कारोबार
जहां विकास वहीं भ्रष्टाचार ।
सुबह की तौबा शाम को पीना
हर कोई करता बार बार ।
याद नहीं रहती तब जनता
जब चढ़ता सत्ता का खुमार ।
हो जाता इमानदारी से तो
हर जगह सबका बंटाधार ।
बेईमानी के चप्पू से ही
आखिर होता बेड़ा पार ।
भ्रष्टाचार देव की उपासना
कर सकती सब का उध्धार ।
तुरन्त दान है महाकल्याण
नौ नकद न तेरह उधार ।
इस हाथ दे उस हाथ ले
इसी का नाम है एतबार ।
गठबंधन है सौदेबाज़ी
जिससे बनती हर सरकार ।
है लेन देन ही सच्चा प्यार ।
वेतन है दुल्हन तो रिश्वत है दहेज
दाल रोटी संग जैसे अचार ।
मुश्किल है रखना परहेज़
रहता नहीं दिल पे इख्तियार ।
यही है राजनीति का कारोबार
जहां विकास वहीं भ्रष्टाचार ।
सुबह की तौबा शाम को पीना
हर कोई करता बार बार ।
याद नहीं रहती तब जनता
जब चढ़ता सत्ता का खुमार ।
हो जाता इमानदारी से तो
हर जगह सबका बंटाधार ।
बेईमानी के चप्पू से ही
आखिर होता बेड़ा पार ।
भ्रष्टाचार देव की उपासना
कर सकती सब का उध्धार ।
तुरन्त दान है महाकल्याण
नौ नकद न तेरह उधार ।
इस हाथ दे उस हाथ ले
इसी का नाम है एतबार ।
गठबंधन है सौदेबाज़ी
जिससे बनती हर सरकार ।
परिभाषा दो ( कविता )
वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखो
आए पढ़ाने तुमको नई पढ़ाई लिखो ।
जो सुनी नहीं कभी हो , वही सुनाई लिखो
कहानी पुरानी मगर , नई बनाई लिखो ।
क़त्ल शराफ़त का हुआ , लिखो बधाई लिखो
निकले जब कभी अर्थी , उसे विदाई लिखो ।
सच लिखे जब भी कोई , कलम घिसाई लिखो
मोल विरोध करने का , बस दो पाई लिखो ।
बदलो शब्द रिश्वत का , बढ़ी कमाई लिखो
पाक करेगा दुश्मनी , उसको भाई लिखो ।
देखो गंदगी फैली , उसे सफाई लिखो
नहीं लगी दहलीज पर , कोई काई लिखो ।
पकड़ लो पांव उसी के , यही भलाई लिखो
जिसे बनाया था खुदा , नहीं कसाई लिखो ।
आए पढ़ाने तुमको नई पढ़ाई लिखो ।
जो सुनी नहीं कभी हो , वही सुनाई लिखो
कहानी पुरानी मगर , नई बनाई लिखो ।
क़त्ल शराफ़त का हुआ , लिखो बधाई लिखो
निकले जब कभी अर्थी , उसे विदाई लिखो ।
सच लिखे जब भी कोई , कलम घिसाई लिखो
मोल विरोध करने का , बस दो पाई लिखो ।
बदलो शब्द रिश्वत का , बढ़ी कमाई लिखो
पाक करेगा दुश्मनी , उसको भाई लिखो ।
देखो गंदगी फैली , उसे सफाई लिखो
नहीं लगी दहलीज पर , कोई काई लिखो ।
पकड़ लो पांव उसी के , यही भलाई लिखो
जिसे बनाया था खुदा , नहीं कसाई लिखो ।
1 टिप्पणी:
अच्छी धारदार पंक्तियाँ👌👍
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