नवंबर 04, 2020

बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया

    बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया 

काली रात के अंधेरे में सुनसान वीरान जगह उन सभी बड़े बड़े लोगों की दुनिया से बचकर इक दूसरे से भी छुपकर जाने किस से बैठक है ये समझना ज़रूरी था। हुआ ये कि मैं पंडित जी के कहने पर ऐसी जगह तलाश करने गया था जिस जगह मुर्गी को काटने पर कोई देखने वाला नहीं आस पास हो। मगर उनको देख कर हैरानी हुई उनको क्या छुपकर करना है। राजनेता धर्म उपदेशक बड़े धनवान लोग तथाकथित भगवान लोग उद्योगपति समाज सेवक देश कल्याण समाज कल्याण की बात करने वाले शासन की बागडोर जिनके हाथ रहती है अधिकारी शासन करने वाले सभी इक साथ फिर भी अलग अलग। तभी महाभारत सीरियल वाला मैं समय हूं की आवाज़ वाला घूमता हुआ गोलाकार पहिया नज़र आया। मुझसे मुख़ातिब होकर बोला आज पहली बार आये हो भूल से भटककर चले आये हो नहीं जानते पहले जान लो समझ लो ये सब अकेले अकेले हैं कोई किसी को देख नहीं सकता है आज के बाद तुम भी इधर आओगे तो मुझे छोड़ किसी को देख नहीं सकोगे मगर आज तुम खामोश रहकर देखना सच क्या है। ये लोग रोज़ इक कथा का पाठ करते हैं और साल दो पांच साल बाद इसी तरह मेरे पास आते रहते हैं जब उनको ज़रूरत होती है। तुम जान लो समझ भी लो लिखना चाहो लिख भी सकते हो कथा एक ही है मुझे हर बार दोहरानी पड़ती है। अचानक बैठने को मुलायम आसन मेरे सामने और सभी जो इक दूजे के होने की बात से अनजान थे उनके सामने था बैठने का आदेश मिला समय का सभी बैठ गए। आंखें खुली भी बंद भी क्योंकि कुछ भी गोलाकार पहिये को छोड़कर दिखाई नहीं दे रहा था। 
 
कथा को ध्यानपूर्वक सुनिए आवाज़ आई थी। ऊपरवाले ने कलयुग में सभी को इंसान बनाकर भेजा था आदमी बनकर गुनाह करने की हसरत रहती है आप सभी समझदार लोग गुनहगार हैं मगर गुनाह करने को अपना अधिकार मानते हैं। ऊपरवाला चाहता तो कोई गुनाह कर ही नहीं सकता जैसे आप सरकार पुलिस न्याय करने वाले जब किसी मुजरिम को पकड़ना होता है तो बच सकता नहीं है , समझ गए मतलब। उसने आपको चार दिन की ज़िंदगी गुनाह करने को ही दी है। आपको मालूम नहीं इक शायर कहते हैं " इक फुर्सत ए गुनाह मिली  वो भी चार दिन , देखे हैं हमने हौंसले परवरदिगार के "। फैज़ अहमद फैज़ की बात को आप सभी लोगों ने बिना पढ़े समझा तो नहीं अपना लिया है। बार बार चले आते हैं सोचते हैं चार दिन की ज़िंदगी कभी ख़त्म नहीं हो पर मैं विधाता नहीं समय हूं मुझे अपनी रफ़्तार कायम रखनी है आपके पास जितने दिन हैं जी भर कर गुनाह कर लो ऐसा नहीं  सीमाब अकबराबादी की तरह कहते रहो " उमर ए  दराज़ मांग के लाई थी चार दिन , दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में "। आप लोग ये शेर किसी शासक का समझते होंगे क्योंकि आपको जाने माने शायरों के अशआर गलत और बिना नाम के पढ़ना कहना गुनाह लगता नहीं जबकि ये जुर्म बेलज़्ज़त है। ग़ालिब से दुश्यंत कुमार तक को आपने जाने कितनी बार घायल ज़ख़्मी ही नहीं क़त्ल भी किया है। ये गुनाह करने को आपको इंसान नहीं बनाया गया था। चोरी करना किसी भी लिखने वाले की बात ऐसा अपराध है जिसकी माफ़ी मिलती नहीं है। ये जो ऊपरवाले की लिखी किस्मत को बदलने की बात कहते हैं उनसे बचकर रहना भगवान उनको कुछ नहीं समझा सके कोई और क्या समझाएगा खुद को विधि का विधान बदलने वाले अपनी तकदीर नहीं बदल सकते और झूठे दावे करते हैं आपकी समस्याओं का समाधान करने को राजनेता टीवी चैनल तक ऐसे भविष्य बांचने वालों को बढ़ावा देकर गुनाह से बढ़कर गुमराह करने की महापाप करते हैं। उनके झांसे में कभी मत आना अपने अच्छे बुरे कर्म का नतीजा उनको भी सामने आता ही है। 
 
बंदा गुनहगार है कौन नहीं जानता मगर सबकी हसरत होती है गुनाह करना मगर गुनहगार साबित नहीं होना अदालत यही करती हैं बेगुनाह सज़ा पाते हैं गुनहगार बच निकलते हैं। बेक़सूर भी बड़े दिलचस्प होते हैं , शर्मिंदा हो जाते हैं , ख़ता के बग़ैर भी। आप सभी ख़ास वीवीआईपी कहलाने वाले बेशर्म ही नहीं चिकने घड़े हैं आपकी असलियत सामने आने पर भी आपको लज्जा नहीं आती है और अपने गुनाह स्वीकार नहीं करते आरोप झूठे हैं मनघड़ंत हैं खुद को निर्दोष बताते हैं। झूठ बोलने और बेशर्मी की आदत आपकी महारत है क्योंकि आप खुद अपने आप से अपने मन आत्मा तक से सच छुपाते हैं। देश  समाज और दुनिया आपको जाने क्या मानती है जो आपकी असलियत से विपरीत है। आपको भरोसा है कोई ऊपरवाला आपको आपके गुनाहों की कभी सज़ा नहीं देगा जब भी ऐसी घड़ी आई आप को माफ़ी मांगना उल्लू बनाना आता है और दुनिया को दिखाने को आप यही किया करते हैं धर्म ईश्वर की उपासना करने मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जाकर माथा टेकने और बहुत कुछ करने का दिखावा मगर आचरण धर्मानुसार कभी नहीं करना। यही कलयुग की पहचान है गुनाह करने वालों को इनामात और निर्दोष लोगों को बेगुनाही की भी सज़ा मिलती है। आम लोग भोले नादान लोग कहां ये समझते हैं आप जैसे ख़ास लोगों की तरह कि जब तक ज़िंदगी है मौज मस्ती से रहना है बाद में देखा जाएगा अगर कोई ऊपरवाला हिसाब मांगेगा तो रहम की भीख मांगकर बच जाएंगे क्योंकि वो दयालु है लाख बार भूल माफ़ करता है सुनते हैं। यूं भी मरने के बाद की चिंता में अभी जीना कैसे छोड़ दें भला। हमारे बाद हमारे लिए श्र्द्धांजलि सभा में कितने लोग ऊपरवाले से विनती करेंगे उनकी सुनकर ही सही वो हमें स्वर्ग जन्नत मोक्ष कुछ तो दे ही देगा। 
 
आप सभी जानते हैं जो आप सभी से चालाक चतुर सुजान कहलाता है उसने कैसे अपने से पहले के लोगों को देश समाज की बर्बादी का दोषी करार देने का काम किस ढंग से किया है। अब उसने सबसे बढ़कर देश को समाज को बर्बाद करने का कीर्तिमान स्थापित किया है मगर किसी की मज़ाल है जो उसके होते उसकी ये वास्तविकता सामने लाने की कोशिश करे जब उसने उन सभी को मुजरिम घोषित कर रखा है जो भी उसकी आलोचना करता है या उसके गुनाह का हिसाब बताता है। उसके बाद मालूम नहीं क्या हुआ समय का पहिया और तमाम लोग जो गुनाह करने का सबक पढ़ने आये थे गायब थे और मैं अकेला खड़ा था उलझन लिए कि जो था वो सच था कल्पना थी या कोई ख्वाब था आधा जागते आधा सोते देख याद करता कुछ भूल जाना चाहता हुआ।