कोरोना के साक्षात दर्शन ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
सोशल मीडिया का मुझ पर भी असर हुआ लोग भगवान धनवंतरी जी की वंदना के संदेश भेजने लगे। आयुर्वेद का स्नातक होने और आयुर्वेदिक दवाओं से उपचार करने से मुझे भी लगा जो तब नहीं लिखा समझाया अब तो जानकारी दे सकते हैं धनवंतरी जी। कोई और साधन उनसे वार्तालाप का उपलब्ध नहीं मैंने गूगल से सर्च किया फेसबुक और वेबसाइट्स भी खोजी उनका कहीं कोई अकाउंट नहीं ईमेल नहीं कांटेक्ट नंबर नहीं मिला। तब उपाय सूझा जो कथाओं पुराणों में किसी भी देवता की उपासना निरंतर करने जब तक वो खुश होकर दर्शन देते हैं और वरदान मांगने की बात खुद ही कहते हैं यह एक ही विधान है। घर खाली बैठा क्लिनिक बंद कर दी थी 45 साल रोग और रोगियों से नाता रखने के बाद। फुर्सत ही फुर्सत है बस ध्यान लगाने अलग अकेले आंखे बंद कर भगवान धनवंतरी जी की तस्वीर के सामने उन्हीं का नाम जपने लगा। ऐसे में कितने दिन बीते कुछ भी ध्यान नहीं रहता है आखिर उनको सामने आकर पूछना ही पड़ा कि जब मैंने ये व्यवसाय ही छोड़ दिया है तब उनको क्यों बुलाना चाहता हूं। मैंने कहा भगवान सबको आपकी ज़रूरत है और भरोसा है या इक उम्मीद है कोई दवा कोरोना रोग की आप ही बता सकते हैं।
धनवंतरी जी ने अपने हाथ में पकड़ी किताब खोली और एक एक पन्ना छान मारा उनको ऐसे किसी रोग रोगाणु की कोई बात नहीं मिली ढूंढने से। नहीं ऐसा कोई रोग नहीं है न कभी था न ही होना ही है। मैंने उनको बताया और दिखलाया कि आजकल यही सबसे भयानक रोग है और विश्व भर में फैला हुआ है। अख़बार टीवी वीडियो सब उनको दिखाए मगर उनको भरोसा नहीं हुआ क्योंकि उनकी जानकारी के बाहर कोई रोग हो नहीं सकता और कोई रोग नहीं जिसकी दवा उनके पास नहीं हो। मैंने कहा इधर आयुर्वेद का बहुत नाम होने लगा है , भगवान धनवंतरी जी हंस दिए कहने लगे तुम भी जानते हो मुझे भी पता है आयुर्वेद का नाम नहीं हो रहा है उसका बाजार सजाकर पैसा बनाने का कारोबार किया जाने लगा है। पिछले पचास साल में कोई उपचार नहीं रोगों का खोजा गया कोई शोध नहीं किया गया केवल आयुर्वेद को ठगी का माध्यम बनाया गया है। झूठ दावा करते हैं हमने कोई खोज की है उनको आयुर्वेद का कुछ भी ज्ञान नहीं न ये जानते हैं कि आयुर्वेद का मकसद कमाई करना नहीं सबको स्वस्थ और निरोग रखना है। मुझे चिंता नहीं करने और भरोसा दिलाने को समझाया कि ये कोई बुराई बनकर आया हुआ दानव लगता है। और ऐसे लोग कभी अधिक समय तक रहते नहीं हैं ये जिस तरह अचानक तेज़ी से आया है आंधी बनकर उस से लगता है जल्दी ही इसका अंत भी हो जाएगा। सवाल इतना है कि ये चला गया तब भी उसके बाद क्या दुनिया के लोग अपनी गल्तियों को समझेंगे और फिर नहीं दोहराएंगे। विपत्ति भी आपको अवसर देती है सुधार करने का।
धनवंतरी जी ने अपने हाथ में पकड़ी किताब खोली और एक एक पन्ना छान मारा उनको ऐसे किसी रोग रोगाणु की कोई बात नहीं मिली ढूंढने से। नहीं ऐसा कोई रोग नहीं है न कभी था न ही होना ही है। मैंने उनको बताया और दिखलाया कि आजकल यही सबसे भयानक रोग है और विश्व भर में फैला हुआ है। अख़बार टीवी वीडियो सब उनको दिखाए मगर उनको भरोसा नहीं हुआ क्योंकि उनकी जानकारी के बाहर कोई रोग हो नहीं सकता और कोई रोग नहीं जिसकी दवा उनके पास नहीं हो। मैंने कहा इधर आयुर्वेद का बहुत नाम होने लगा है , भगवान धनवंतरी जी हंस दिए कहने लगे तुम भी जानते हो मुझे भी पता है आयुर्वेद का नाम नहीं हो रहा है उसका बाजार सजाकर पैसा बनाने का कारोबार किया जाने लगा है। पिछले पचास साल में कोई उपचार नहीं रोगों का खोजा गया कोई शोध नहीं किया गया केवल आयुर्वेद को ठगी का माध्यम बनाया गया है। झूठ दावा करते हैं हमने कोई खोज की है उनको आयुर्वेद का कुछ भी ज्ञान नहीं न ये जानते हैं कि आयुर्वेद का मकसद कमाई करना नहीं सबको स्वस्थ और निरोग रखना है। मुझे चिंता नहीं करने और भरोसा दिलाने को समझाया कि ये कोई बुराई बनकर आया हुआ दानव लगता है। और ऐसे लोग कभी अधिक समय तक रहते नहीं हैं ये जिस तरह अचानक तेज़ी से आया है आंधी बनकर उस से लगता है जल्दी ही इसका अंत भी हो जाएगा। सवाल इतना है कि ये चला गया तब भी उसके बाद क्या दुनिया के लोग अपनी गल्तियों को समझेंगे और फिर नहीं दोहराएंगे। विपत्ति भी आपको अवसर देती है सुधार करने का।
उनकी बात सच्ची थी मेरे पास कोई जवाब नहीं था मगर मैंने उनसे विनती की हाथ जोड़कर कि कोई तो मार्ग मुझे बताएं कि कोरोना अगर रोग ही नहीं है तो फिर क्या है। तब उन्होंने मुझे उपाय बताया कि कोरोना जो भी कोई है देव दानव या कुछ भी और वही खुद अपना परिचय दे सकता है। वही आपको कारण भी बता सकता है क्यों दुनिया को भयभीत किया हुआ है और कैसे उस से मुक्ति भी मिल सकती है। तब भगवान धनवंतरी जी ने मुझे अतिगोपनीय उपाय बतलाया कि इस तरह कोरोना से आपका साक्षत्कार हो सकता है। इतना समझा कर धनवंतरी जी अंतर्ध्यान हो गए। अब मुझे डर लगने लगा कि जिस के नाम से हर कोई थर थर कांपता है मैं खुद उसको अपने पास आने की मूर्खता कैसे कर सकता हूं। ये पागलपन नहीं किया जा सकता है।
सोचते सोचते मुझे नींद आ गई लेकिन सपने में बिना बुलाये ही कोरोना चले आये दर्शन देने को। बोले जब तुम अपने आयुर्वेद के जन्मदाता को याद कर रहे थे तभी मुझे मालूम हो गया था। और उत्सुकता थी वो आकर क्या जानकारी देते हैं इसलिए उनके पीछे पीछे चला आया था और सब वार्तालाप सुन लिया था। मुझे आशा थी अब तुम मुझे बुलाने की कोशिश करोगे अवश्य पर बड़े डरपोक हो घबरा गए जाने क्या सोचकर। कभी सुना है किसी की आरधना उपासना की हो और उसने दर्शन देकर वरदान के सिवा कुछ भी दिया हो। चलो कोई बात नहीं जबकि तुम मौत से घबराते नहीं हो बस कोरोना शब्द से ही तुम्हें परेशानी है। मैंने कहा महोदय आपने दर्शन दे ही दिए हैं तो मेरी चिंता का भी समाधान करें कि कौन हैं आप। अगर रोग नहीं हैं तो आपके कारण कितने लोग बिमार हैं और मरे हैं मर रहे हैं डरते हैं मर जाएंगे। कोरोना कहने लगे क्या आपको मेरे कारण कुछ भी अच्छा नहीं दिखाई दिया आपने ही खबर पढ़ी वीडियो दिखाया टीवी पर भी कह रहे थे हवा साफ हुई है नदी का जल निर्मल हुआ है पशु पक्षी जानवर तक विचरण करने लगे हैं। सड़क दुर्घटना कम हो रही हैं लोग घर में बैठ कितने अच्छे अनुभव कर रहे हैं। ठीक है भयभीत होना अच्छा नहीं मगर भय किस कारण है मौत के डर से , बताओ क्या मुझसे पहचान नहीं थी तब कोई नहीं मरता था। देखो आपकी सरकार भी कितनी बार कोई कठोर कदम उठाती है और कहती है ये जनता की देश की भलाई के लिए है। सब जानते हो क्या क्या याद दिलाऊं और आपको क्यों। अभी भी लॉक डाउन घोषित किया गया है तब भी यही बताया गया है आपकी जान की सुरक्षा की खातिर ज़रूरी है। कुदरत भी जब विवश होती है तब ऐसे कई कठोर कदम उठाती है आपने विकास के नाम पर विज्ञान के अनुचित उपयोग को कितने गलत कार्य किये हैं। क्या आवश्यकता थी जंग करने को भयानक हथियार बनाने की परमाणु बंब क्या कोई ज़रूरत की चीज़ हैं।
किस किस ने जो भी कुदरत या ऊपर वाले ने सबकी खातिर दिया उसका बड़ा हिस्सा हथिया कर खुद को स्वामी घोषित कर रखा है। अब भी नहीं समझे सब बराबर हैं मेरे सामने फिर भी आरोप लगाने और सच झूठ को बिना जाने समझे मनमाने दावे करने लगे हैं। मैंने पूछा आप इतना तो बताओ ये सब कब तक , हर कोई इसी सवाल में उलझा हुआ है। कोरोना ने कहा जब सभी देश विश्व के सभी जीव मानव एक समान हो जाएंगे मुझे यहां कोई काम नहीं होगा और जैसे आया ख़ामोशी से चुपचाप चला जाऊंगा। और इतने में कोई आवाज़ बाहर से सुनाई दे रही थी मेरा सपना भंग हो गया मेरी नींद खुल गई। सोचता हूं शायद हम दुनिया वाले किसी गहरी नींद में ही हैं और जिस दिन जाग गए सब ठीक नज़र आएगा। बिस्तर से उठते ही किताब खोली पहले पन्ने पर लिखा हुआ था ये जगत इक सपना है। उठ जाग मुसाफिर भौर भाई अब रैन कहां जो सोवत है। कोरोना समझाना चाहता था उसकी बुराई ही नहीं और भी देखें उसके आने से लोग कितने बदल रहे हैं जाने किस बात का क्या नतीजा हो सकता है वक़्त बताएगा। कोरोना किसी भयानक ख्वाब की तरह है जिसको खत्म होना ही है लेकिन उसके बाद हमको जो करना और जो नहीं करना है दोनों को समझना होगा।
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया sir👌
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