जुलाई 22, 2018

अब तो कोई मज़हब ( गोपालदास नीरज के नाम ) डॉ लोक सेतिया

अब तो कोई मज़हब ( गोपालदास नीरज के नाम ) डॉ लोक सेतिया 


                                    कुछ तो सीखो मुझसे यारो 

    जितना कम सामान रहेगा , उतना सफर आसान रहेगा। जितनी भारी गठड़ी होगी , उतना तू हैरान  रहेगा। उस से मिलना नामुमकिन है , जब तक खुद का ध्यान रहेगा। हाथ मिले और दिल न मिले , ऐसे में नुकसान रहेगा। जब तक मंदिर और मस्जिद हैं , मुश्किल में इंसान रहेगा। नीरज तो कल यहां न होगा , उसका गीत विधान रहेगा। 

     आज शायद इस से बेहतर कोई संदेश नहीं हो सकता है। हर मिसरा ही नहीं हर इक शब्द तक कल भी सार्थक था आज भी सार्थक है और सदियों बाद भी सार्थक रहेगा। उन्हीं के शब्दों में , इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में , तुमको सदियां लग जाएंगी हमें भुलाने में। नीरज जी तो याद रहेंगे मगर क्या उनके गीतों का संदेश भी याद रखेंगे हम लोग। चलो इस बहाने आज समझते हैं धर्म को और देशभक्ति को भी , इधर बड़ी बहस होती है कौन असली देशभक्त है कौन नकली। धर्म भी शामिल कर लेते हैं देश से मुहब्बत से बड़ा धर्म क्या हो सकता है। 
 
             देश क्या है , ज़मीन नहीं होता देश , देश है देश के सवा सौ करोड़ लोग। अगर आप देश से प्यार करते हैं तो सभी देशवासियों से मुहब्बत करते होंगे , नहीं करते तो देश से नहीं प्यार कुछ और है। ये कैसे हो सकता है कि हमारे ही देश में करोड़ों लोग भूखे हों और कुछ लोग खाना बर्बाद करते हों। वास्तव में जैसा गांधी जी ने और हर धर्म में बताया गया है कुदरत ने सभी की ज़रूरत को बहुत कुछ दिया है लेकिन किसी की हवस पूरी करने को नहीं दिया है काफी। हमारी हवस मिटती ही नहीं चाहे जितना जमा हो जाये। आप जिनको बेहद रईस समझते हैं वास्तव में धर्म उनको सब से दरिद्र बताता है , जिस के पास बहुत कुछ पास है मगर फिर भी और अधिक पाने की चाहत है। इस नज़र से देखोगे तो समझोगे वास्तविकता क्या है , देश प्रेम और सच्चा धर्म यही है। जो नेता हर दिन खुद अपनी शानो-शौकत पर लाखों करोड़ों खर्च करते हैं और साथ में देश जनता की सेवा का दम भी भरते हैं वो देश समाज जनता को देते कुछ भी नहीं बल्कि देश पर खुद इक बोझ की तरह हैं। यही तमाम धार्मिक स्थलों की बात है जिनको बताया जाता है लाखों का चढ़ावा आता है और धन सम्पति हीरे जवाहरात सोने चांदी के अंबार लगे हैं अगर यही धन दौलत भूखों की भूख और रोगियों के उपचार या शिक्षा या गरीबों की सहायता में खर्च नहीं किया जाता तो उसको धर्म नहीं कह सकते हैं। बात सरकार अमीर उद्योगपतिओं और धनवानों की नहीं है और न ही करोड़ों की आमदनी से थोड़ा भाग अपनी शोहरत को दान देने वाले जाने माने लोगों की ही है। आप हम ज़रूरत से अधिक आय होने पर अपनी ख्वाहिशें बढ़ाते जाते हैं और जितनी भारी गठड़ी होगी उतना तू हैरान रहेगा , नीरज जी की बात को नहीं समझते हैं। अपने आस पास बहुत लोग हैं जिनको जीने को थोड़ा चाहिए , किसी धार्मिक स्थल पर चढ़ावा देने या मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा बनाने को दान देने से कहीं अच्छा ये इंसानियत का धर्म अपनाना होगा। आप केवल मनोरंजन पर या अपने सपने पूरे करने पर जितना धन खर्च करते हैं अपनी ख़ुशी की खातिर वही क्या देश को अर्पित कर सकते हैं। मतलब देश के लोगों की सहायता करने से आप को वास्तविक ख़ुशी और सच्चा धर्म का कार्य कर सकते हैं। अधिक नहीं अगर जैसा कुछ धर्मों में दशांश बिना किसी को बताये ज़रूरतमंद लोगों को दे सकते हैं बेशक जितना भी थोड़ा हिस्सा आप मन से तय कर लें पांच फीसदी भी अगर दस नहीं मगर देश की भलाई को कुछ योगदान आप भी हम सभी दे सकते हैं। गोपालदास नीरज जी को इस से बड़ी श्रद्धांजलि कोई नहीं दी जा सकती है।



2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तेरे रंग में यूँ रंगा है - नीरज जी को श्रद्धांजलि - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !