जुलाई 08, 2018

मुझको यारो माफ़ करना मैं नशे में हूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

 मुझको यारो माफ़ करना मैं नशे में हूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

       दौलत का नशा उत्तर जाता है , शोहरत का नशा पागल कर देता है और हद से ज़्यादा नाम होने पर बदनामी कब मुकदर बन जाये पता नहीं चलता है। सत्ता का नशा जब चढ़ता है तो इंसान भगवान को भी चुनौती देने लगता है मगर जब सत्ता जाती है हाथ से तो फिर भगवान भी साथ नहीं देता है। महफ़िल में सभी मदहोश थे फिर भी हर कोई अपनी कहानी सुना रहा था कौन सुनता है कोई नहीं जानता। अगली सुबह किसी को रात की बात याद नहीं होती है। उनका भाषण जारी है , किसी ने इशारा किया सरकार आप आराम करो अभी आप नशे में हैं। डांट दिया मैं कभी कोई नशा नहीं करता तुम मुझे नशे में बताते हो। कनक कनक से सौ गुनी मादकता अधिकाय , वा खाये बौरात है ये पाये बौराय। सोने में धतूरे से सौ गुना नशा होता है , धतूरा खाने से नशा चढ़ता है सोना पाने से ही नशा हो जाता है। आप सत्ता के नशे में चूर हैं , अभी आपको मंज़िल तलाश करनी हैं पास हैं फिर भी दूर हैं। गाड़ी में बैठे लगता है सब पेड़ पौधे सड़कें पीछे की तरफ भागते जा रहे हैं। आप को शायद अनुभव नहीं है इतने लंबे सफर का जो दिन चढ़ते शुरू होता है और सब बहुत सुहाना लगता है , साथ कोई साथी अच्छा हो तो दिल करता है ये सफर हमेशा चलता ही रहे। मगर जब शाम ढलने लगती है और रौशनी कम हो रही होती है तब तेज़ चलाने लगते हैं गाड़ी को। मगर तब लगता है रास्ता और लंबा होता जा रहा है , अंधेरा बढ़ता जाता है तब गाड़ी में बैठे मुसाफिर को लगता है जैसे हम उल्टी तरफ को जा रहे हैं। आजकल वही हाल है आप सुबह से दोपहर बाद तक मस्ती में झूमते रहे , शाम होने लगी तो समझ आया कि अभी बहुत सफर बाकी है तय करना। मगर अब देर हो चुकी है। सौ साल की बात करते करते वादा करते हैं कुछ साल में सब बदलने का मगर समय कब बीत जाता है पता नहीं चलता। साल बाकी है अभी लगता है मगर हर दिन समय घटता जायेगा महीने गिनते गिनते दिन गिनने की नौबत आएगी। फिर वो घड़ी भी आनी है जब विदाई की बेला में समझ नहीं आता कौन सा गीत बजेगा। बाबुल मोरा नैहर छूटा जाये। या फिर लागा चुनरी में दाग़ छुपाऊं कैसे। चदरिया जस की तस रखनी कब किसी को आती है। अब आप चाहते हैं जल्दी से सब करना या करने का दिखावा करना मगर सावधान , ऐसे में दुर्घटना की संभावना रहती है , लेकिन आपको धीरे चलना पसंद नहीं। अभी भी आप को इतनी सी बात नहीं समझ आई कि आप जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं। कोल्हू के बैल की तरह गोल गोल घुमते रहे मगर पहुंचे कहीं नहीं। दुनिया वास्तव में गोल है ये तो चार साल में आपने आकाश की सैर करते देखा ही होगा। मगर आसमान में घर नहीं बनता है रहने को ज़मीन की ज़रूरत होती है। अब जब ज़मीन खिसकने लगी तो पांव थरथरा रहे हैं। आपको मेरी बात नहीं समझ आई होगी , मैं तो शुरू से समझाता आया हूं। समझते कैसे जनाब आप नशे में हैं।

       आपको पता है हमारे राज्य का हाल क्या है , अपराध बढ़ते रहे और सरकार सोती रही। खूब इश्तिहार छपवाए ईमानदारी के मगर बात किसी की नहीं सुनी। कहते हैं मीडिया वालो मुझे तुम से ज़्यादा पता है , ये ही नहीं पता कि अधिकारी आपकी आंखों में धूल झौंकते रहते हैं।  आप जब जब किसी शहर जाते तब तब उसी शहर की सफाई उसी जगह की चार दिन करते हैं और फिर वही सब होने लगता है। दफ्तर में बैठे दर्ज हुई शिकयतों को गिनती घटाने का काम करते हैं। पुलिस को कानून व्यवस्था सुधारने की चिंता नहीं आये दिन तमाशे करते हैं नाच गाना ताकि लोगों का मनोरंजन हो सके। आप जाकर आशावादिता का सबक पढ़ाते हैं और अंधेरी रात को दिन समझने का ढंग बताते हैं। सावन के अंधे जैसे हमेशा सब तरफ हरियाली बताते हैं। थक गए हैं मगर थकते नहीं हैं चल रहे हैं चलते रहे जीवन भर भागते जाते हैं। जो कहानी खुद नहीं पढ़ी कभी जाने कैसे उस कहानी का किरदार निभाते हैं। ज़रा सी बात पर ताव खाते हैं और मीडिया वालों को तहज़ीब सीखने का उपदेश दे आते हैं। उपदेशक इसी में मार खाते हैं।



             अब विपक्षी दलों से भारत को मुक्त करने की तैयारी

   8 जुलाई को फरीदाबाद में मनोहर लाल जी दो दिवसीय मंथन में उपरोक्त विचार व्यक्त करते हैं। भगवान न करे उनका ख्वाब सच हो मगर उनकी मंशा डराती है। जब विपक्ष नहीं होगा तो लोकतंत्र कैसे होगा , क्या रूस और चीन की तरह नाम को वोट डालने होंगे या फिर चुनाव आयोग की ज़रूरत ही नहीं होगी। खैर अच्छा किया लाज का घूंघट उतार दिया। पहले एक दल खराब बताते थे अब आपको छोड़ सभी खराब हैं की घोषणा कर रहे हैं। आगे आगे देखते हैं होता है क्या , देख कर  दिन अच्छे रोता है क्या। आपके आदर्श वो लोग हैं जो देश की आज़ादी के आंदोलन में साथ नहीं थे विदेशी शासक अच्छे लगते थे , गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में कुछ नहीं किया अब देश को गुलाम बनाना चाहते हैं। विपक्ष होना ज़रूरी है। एक वो भी नेता आप ही के दल के हैं जो 24 दलों को लेकर गठबंधन की सरकार चलाने का करिश्मा कर सकते थे और आप हैं कि मैं ही मैं की बात करते हैं। किसी शायर ने समझाया था , हमीं हम हैं तो क्या हम हैं , तुम्हीं तुम हो तो क्या तुम हो। थोड़ा संविधान को समझ लो अच्छा है।  पुराने लोग समझते थे पहले सोचो , फिर तोलो फिर बोलो। अभी पॉज ले लो बाद में पछताना नहीं पड़ेगा। सलाह अच्छी कोई भी दे मान लेनी चाहिए। आगे आपकी मर्ज़ी। 

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सेठजी, मनिहारिन और राधा रानी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !