जुलाई 21, 2018

भगवान बचाये ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया

          भगवान बचाये ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया 

     समझ नहीं आता किस किस से बचना है , भगवान किस को किस किस से बचाता फिरे भगवान तो खुद बचता फिरता है। भगवान के नाम पर क्या क्या नहीं कर रहा कौन कौन। चलो सब से पहले टीवी वालों की बात करते हैं। बाज़ार की दुकान बना दिया है एकाध को छोड़कर सभी ने। भविष्य बांचने से लेकर शनि मंगल तक सब पर इनका इख्तियार है मगर खुद इनको मज़ाल है किसी ग्रह की कोपदृष्टि लग सके। विश्वास है या नहीं बिकता है जो भी बेचना है , ठगी मत कहो लालच मत कहो समाज सेवा है नेता लोगों की तरह। मगर प्राइम टाइम में देश की खबरें नहीं वास्तविकता को छुपाने को नया खेल तमाशा दिखलाते हैं। कोई पैसे की खातिर इतना भी गिर सकता है कि अपने वास्तविक धर्म को ही भुला दे। मगर खुद को लोकतंत्र के रक्षक और सच के झंडाबरदार बताने वाले सच को खुद कत्ल करते हैं हर दिन बार बार और लोकतंत्र तथा संविधान की उपेक्षा व अनादर करने वाले सत्ताधारी नेताओं को महिममंडित करते हैं। विशेषाधिकार और सरकारी विज्ञापनों द्वारा देश और जनता के धन की लूट में बड़ा हिस्सा पाने को। सब को आईना दिखाने वाले अपने को कभी नहीं देखते अन्यथा देश का आज तक का सबसे बड़ा घोटाला यही विज्ञापनों की लूट है। जिस धन से देश और जनता की कोई भलाई नहीं होती और कुछ ख़ास लोगों की तिजोरी भरती हो उसी को घोटाला कहते हैं। देश समाज की चिंता के दावे और देश भक्त होने का इनका दावा किस की मज़ाल है जो सवाल करे ये सब क्या है। टीवी सीरियल हों या विज्ञापन महिलाओं के लिए इनकी मानसिकता छुपाये नहीं छुपती है। मगर शायद इनको ये नहीं पता कि जैसे सरकारों और नेताओं से जनता निराश हो जाती है उसी तरह टीवी से लोगों का मोहभंग ही नहीं हो रहा बल्कि उन पर भरोसा खत्म हो रहा है। ये जो पब्लिक है वो सब जानती है। 
 
      मगर इन से बचना कठिन नहीं है टीवी का रमोर्ट आपके हाथ है खुद बच सकते हैं। मगर जो लोग गली गली धर्म और देशभक्ति के नारे लगाते हुए भीड़ बनकर जिसे भी चाहे जान से मार दें या हड्डी पसली तोड़ दें और देश में इक भय और दहशत का माहौल बना रहे हैं ताकि लोग उनसे भयभीत होकर उनके खिलाफ विरोध की बात नहीं कर सकें उनसे देश की सबसे बड़ी अदालत परेशान होकर नया और सख्त कानून लाने का आदेश देती है। लेकिन कानून बनाएगा कौन जब सत्ताधारी नेता ऐसे अपराध के दोषियों को सम्मानित कर देश के कानून और संविधान का उपहास कर रहे हैं। मगर आप इन की आलोचना नहीं करना अन्यथा इनके पास खुद के देशभक्त होने का तमगा भी है और आपको देश के दुश्मन बताकर देश से बाहर जाने को कहने का अधिकार भी। अदालत कनून संविधान से बड़ा इनके लिए कोई राजनेता या दल है। मगर ये तब खामोश रहते हैं जब अहिंसा के पुजारी और देश के बापू गांधी के हत्यारे का मंदिर कोई बनाकर देश और समाज को संदेश देता है कि हमारी वास्तविकता क्या है। जिस से असहमत हों उसकी हत्या को उचित ठहरा सकते हैं। 
 
        जिस पाठशाला से ऐसी शिक्षा मिलती हो उस को क्या नाम देना चाहिए मुझे नहीं पता हैं देश की सेवा तो हर्गिज़ नहीं कहा जा सकता है। तर्क से अपनी बात का कायल किया जा सकता है मगर जब कुतर्क ही तर्क बन जाये तो केवल उलझन उतपन्न होती है। उलझन यही है , आरोप उनके , अदालत उनकी खुद की चौराहे पर उनका इंसाफ भी मनमर्ज़ी का। अपील नहीं दलील नहीं कोई रहम नहीं सफाई नहीं , सामने महिला हो या बच्चा या कोई अपाहिज अथवा अस्सी साल का कोई बूढ़ा इनकी कोई इंसानियत नहीं है धर्म की बात क्या करें। मकसद आपस में लड़वा कर अपना राजनितिक मकसद हासिल करना। सत्ता देश की एकता और भलाई से बड़ी हो गई है तो इरादे नेक कैसे हो सकते हैं। भगवान देश को बचा लो इंसानों की कीमत नहीं है मगर देश का महत्व है इस से सभी सहमत होंगे ही।

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