जुलाई 12, 2018

जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग - 4 डॉ लोक सेतिया

जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात ) भाग -4 

                                   डॉ लोक सेतिया 

  आज की कहानी वास्तव में बेहद कठिन मोड़ की बात थी। इक पिता जो छोटी सी नौकरी में बेहद ईमानदारी से काम करता है , जिस जगह काम करता है जो मालिक था वो अब नहीं है और उसका बेटा उसे नौकरी से हटा नहीं सकता क्योंकि मरने से पहले उसे पिता ने ऐसा कहा था। ऐसे में जब वो अपने आज के मालिक से क़र्ज़ मांगता है तो खरी खोटी सुना मना कर देता है। मगर तभी शाम को उसे दस लाख रूपये बैंक में जमा करवाने को देकर भेजता है लेकिन बैंक पहुंचने पर बैंक बंद हो गया होता है। विवशता में इतनी बड़ी रकम उसे घर में रखनी पड़ती है , सुबह होने पर पता चलता है कि रात को घर में चोरी हो गई है। मालिक उसे पुलिस थाने ले जाता है और उसी पर शक जताता है कि तभी पुलिस का हवालदार इक चोर को पकड़ कर लाता है उसी बैग के साथ। मगर बैग में कोई पैसा नहीं होता और चोर स्वीकार करता है कि हां मैंने चोरी की है मगर इस बैग में कुछ भी नहीं था। पुलिस मानती है कि वो चोर से चोरी की राशि बरामद कर ही लेंगे , मगर घर आने पर उसे पता चलता है कि चोर की चोरी से पहले उनकी अपनी औलाद ने ही पैसे चुरा लिये थे अपनी अपनी ज़रूरत को पूरा करने की खातिर। इस बात की चिंता किये बगैर कि उनके ऐसा करने से पिता पर क्या क्या मुसीबत आ सकती है। अभी कहानी को यहीं रोक कर स्टुडिओ में बैठे लोगों की बातें करते हैं। 
 
     बेटे बेटी ने चोरी की बहुत लोग इसे उनकी मज़बूरी ही नहीं बता रहे थे बल्कि पिता को ही कटघरे में खड़ा कर कह रहे थे वो अच्छा पिता नहीं साबित हुआ क्योंकि बच्चों की ज़रूरत पूरी नहीं कर सकता था। अब उनकी मज़बूरी या ज़रूरत भी जानना ज़रूरी है। बेटी की ससुराल वालों की मांग और बेटे को नौकरी मिलने के लिए लाखों रूपये की ज़रूरत। अर्थात जो पिता संतान की उचित या अनुचित किसी भी तरह की मांग को पूरी नहीं कर सकता है उसकी ईमानदारी किस काम की। ये बेहद खेद की बात है जो ऐसे शो में भाग लेने वाले तथाकथित आधुनिक समाज के लोग ईमानदारी और नैतिकता को अनावश्यक समझते हैं। जब एंकर ने पूछा कि क्या पिता को अपने बच्चों की चोरी की बात पुलिस को बता देनी चाहिए तो ज़्यादातर लोग नहीं चाहते थे।  उनकी चोरी और गुनाह ही नहीं अपने ही पिता से धोखा करने को बच्चों की भूल बता बचाने की बात कर रहे थे। ये सब देखकर समझ सकते हैं अगर पकड़े जाने का डर नहीं हो तो इनमें से अधिकतर कोई भी अपराध कर सकते हैं। शायद उनको नहीं समझ आया हो कि जो लोग उनकी जान पहचान के हैं उनकी राय सुनकर और उनकी सोच जानकर उन पर भरोसा नहीं करेंगे अगर कोई ऐसी घटना घट जाये। 
 
        सोशल मीडिया पर आकर कुछ भी बोलने और समझाने की आदत का ये भी साइड इफ़ेक्ट है। जब कुछ भी कहना हो किसी घटना को लेकर या कोई राय देनी हो जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। थोड़ा संयम रखना सीखना चाहिए। अन्यथा बाद में पछताना पड़ता है। यही हुआ इस कहानी के आखिर में। पिता अपने बच्चों को पकड़वाने की जगह खुद पर चोरी का इल्ज़ाम ले कर बेगुनाह को बचा खुद हवालात में बंद हो जाता है। बेटा अपनी नौकरी पाकर खुश है और बेटी ससुराल जाने की बात से खुश है , अपने पिता की बात उनको मूर्खता लगती है। मगर जिस मालिक को सभी स्टुडिओ में बैठे दर्शक बुरा भला कह रहे थे , वही जब पता चलता है की वो इंसान चोर नहीं बल्कि उस के बच्चों ने चोरी की है तो उसे आकर छुड़वाता भी है और ये भी कहता है कि जब तक आप नहीं कहोगे आपके बच्चों पर कोई करवाई नहीं करेगा। उसे अपने पिता की कही बात अब समझ आती है और वो उनको आदर देता है बड़ों की तरह और अगले दिन से काम पर आने को कहता है। ये कहानी का सुखद अंत है मगर सवाल बाकी छोड़ जाती है ये कहानी भी , मुजरिम उस कहानी के पात्र नहीं हैं , वास्तव में हमारा समाज कटघरे में खड़ा है। क्या हम खुद वास्तविक जीवन में ईमानदार इंसान की कदर करते हैं ? शायद नहीं !!


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