जुलाई 19, 2018

हर सवाल का जवाब है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

       हर सवाल का जवाब है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

    जो अब तक होता रहा अब नहीं होगा। नहीं नहीं बिल्कुल नहीं। हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं। आप लोग कभी नहीं सुधर सकते जब हम नहीं सुधरे तो आपको ख़ाक सुधारेंगे। मगर हमारे पर हर समस्या का समाधान भी है। समस्या पैदा भी हम खुद करते हैं और हल भी हम ही कर सकते हैं। गब्बर सिंह से कम मत समझना। भीड़ के हिंसक होने का उपाय है कि भीड़ जमा ही नहीं होने दी जाये। हम भी खुली सभा में नहीं अपना भाषण बंद हालों में दिया करेंगे या किसी टीवी स्टुडिओ में सीधा प्रसारण या फिर रेडिओ पर। सोशल मीडिया से जितना फायदा उठाना था उठा लिया , अब हमारे लिए घाटे का सौदा है।  रोक लगानी तो है अगर अदालत कोई अड़चन नहीं खड़ी करे। नशा करने की आदत बढ़ती जा रही है और इस कारोबार में मुनाफा भी बहुत है , क्यों नहीं शराब सिगरेट की तरह बाकी नशे का भी लाइसेंस जारी किया जाये। जनता नशे में हो तो कुछ नहीं मांगती है कोई अधिकार नहीं रोटी नहीं घर नहीं कारोबार नौकरी नहीं। सरकार को नशे को बढ़ावा देना चाहिए , नशा करने वाले नशे के लिए पैसा खुद हासिल करना जानते हैं।  उनको बस नशा मिलना चाहिए। लोग छुप कर बुरे काम करते हैं , उनको सभी गंदे काम करने की सुविधा उपलब्ध करवाई जाये तो अपराध क्यों करेंगे। इशारा समझ लो। सरकारी कोठों पर सब मिल सकता है , पाकीज़गी की बात करना बेकार है। कलयुग की बात है कलयुग में आप बुराई को मिटा नहीं सकते , कलयुग को कलयुग रहने दो। कुछ परिभाषाएं बदली जा सकती हैं , झूठ बोलना कोई बुरी बात नहीं है।  जब बोलने वाला और सुनने वाला दोनों को पता हो झूठ बोल रहे झूठ कह रहे हैं तो वही सच है। मेरे भाषण की हर बात ऐसा ही सच है। किसी को उस पर विश्वास नहीं हुआ मगर किसी ने शक ज़ाहिर नहीं किया , मन ही मन हंसते रहे लोग। आजकल सब को इक ही बात की ज़रूरत है मनोरंजन की। सब यही कर रहे हैं , कितने डरावने वीडिओ देखते हैं और लुत्फ़ उठाते हैं और औरों को भी भेजते हैं। कोई हादिसा सामने होता है आप और कुछ नहीं करते बस वीडिओ बनाकर वायरल करते हैं अपना नाम रौशन करते हैं। हम संवेदना की बात क्यों करें संवेदना की कीमत क्या है संवेदनहीनता बिकती है। सर्वोच्च अदालत समझ चुकी है हम सभ्य समाज नहीं हैं। बाकी संसार की इक्कीसवीं सदी होगी हम सदियों पुराने युग में रहते हैं जिस में ताकतवर कमज़ोर को खाता है। हमने बाकी सभी को बेहद कमज़ोर कर दिया है , लोकतंत्र को लोकतान्त्रिक संस्थाओं को , अब जल्द विरोध करने वाला कोई नहीं बचेगा। बचे शरण जो होय। हमारी शरण में आने पर दाग़ी बेदाग़ हो जाते हैं , गंगा भले और मैली हुई है हम पापियों के पाप धोते धोते , पाप को पुण्य बना दिया है। हर गुनाह की इजाज़त है। किसी शायर की बात समझी है जिसने कहा था :-

                                इक फ़ुरसते गुनाह दी वो भी चार दिन ,

                                     देखे हैं हौंसले परवरदिगार के।

वैसे तो हमने देश को बर्बाद किया है , इल्ज़ाम किसी पुरानी सरकार पर जाए तो अच्छा। गीतकार से क्षमा चाहता हूं शब्दों की हेरा फेरी के लिए। हेरा फेरी कितनी अच्छी है इसी से समझ लो इस नाम की हर फिल्म सुपर हिट रहती है। जिस गीत में हेरा फेरी शब्द आया वही पॉपुलर हुआ है। समझ लो लोग क्या चाहते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: