जुलाई 22, 2018

विश्वास नहीं है पर बहुमत है ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      विश्वास नहीं है पर बहुमत है ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

   सवाल गंदुम जवाब अदरक। बात कुछ पूछी आपने बात ही बदल दी। तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान ए शायर को , ये एतिहात ज़रूरी है इस बहर के लिए। मेरे पास मां है के फ़िल्मी जुमले की तरह मेरे पास संख्या बल है। ये इतिहास भी कमाल दिखाता है , कभी संख्या बल नहीं था फिर भी वाजपेयी जी दिल जीत गये थे। उनकी हार में जीत थी विरोधी भी अफ़सोस कर रहे थे कि एक अच्छे आदमी का ये बुरा अंजाम क्यों हुआ। मैंने कुछ ऐसे भी गरीब देखे हैं जिनके पास दौलत के सिवा कुछ नहीं होता , आपके पास सांसद हैं जनता का विश्वास नहीं है सब जानते हैं। झूठ का शोर कितनी देर तक काम आएगा। इक बात है कहावत नहीं है नियम है कि लोकराज लोकलाज से चलता है , आपने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया है , सवालों को हवा में उड़ा दिया है। धुआं बनाके हवा में उड़ा दिया मुझको , मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको। खड़ा हूं हाथ में रोटी के चार हर्फ़ लिए , सवाल है कि किताबों ने क्या दिया मुझको। आपने शिक्षित युवा के साथ मज़ाक किया है पकोड़े बेचने की सलाह के सिवा आपके पास कोई उपाय नहीं और जो मज़दूर हैं किसान हैं उनके लिए आपकी आंखों में नमी भी नहीं है। एक खलनायक की कटु मुस्कान पर , हो गए दर्शक फ़िदा अच्छा लगा। आईने में देखना अच्छा लगा , अपना अपना चौखटा अच्छा लगा। अपनी सूरत पे फ़िदा होते हैं , लोग खुद अपने खुदा होते हैं। चार साल में क्या इस मानसिकता से चार सौ साल में भी देश को अच्छे दिन नहीं हासिल हो सकते हैं। आपके लिए चुनावी जुमला था जनता के लिए इक सपना था जिसको आपने ही चूर चूर कर दिया। सबका साथ सबका विकास का नारा बदलकर जो हमारे साथ केवल उन्हीं का होगा विकास बना दिया है। विपक्ष छोटा बच्चा लगता है आपको , मगर इक बच्चा जब कहता है राजा नंगा है तो बहुमत का झूठ टिकता नहीं है। सच घटे या बढ़े तो सच न रहे , झूठ की कोई इन्तिहा ही नहीं। ऐसी सरकार से बड़ी सज़ा ही नहीं , जुर्म जनता का क्या है पता ही नहीं। 
                   ( शायर से क्षमा याचना के साथ बदलाव किया है ) ।
 
       विपक्ष के किसी भी नेता की बात का जवाब मिला ही नहीं। राहुल जी आंख से आंख नहीं मिलाने की बात जब कह रहे थे आप हंस रहे थे मगर जब जवाब दिया तो वही घटिया डायलॉग खुद को गरीब वंचित बताने का मगर उपहास की तरह। ये वास्तव में क्रूर मज़ाक था गरीब और शोषित लोगों के साथ , 22 साल से सत्ता पर बैठा नेता ( इसमें गुजराज भी शामिल है ) खुद को अभी भी कुचला हुआ बताता है मगर सब को कुचलना चाहता है। भगवान को छोड़ो खुद अपनी आत्मा का सामना करोगे तो खुद पर रहम नहीं हंसी आएगी। मगर आपको शायद देश की संसद सिनेमा हाल की तरह लगती है तालियां शोर और मुनाफा कमाना। जो लोग देशभक्त होते हैं या हुए हैं उन्होंने अपना सभी कुछ देश को दिया था जान भी आज़ादी के लिए मगर कोई मुनाफा नहीं चाहते थे। आपको कितना चाहिए , कोई हिसाब है खुद पर कितना धन खर्च किया। कितना पैसा विदेशी यात्राओं पर बेकार बर्बाद किया , कितना धन अपनी झूठी शान बढ़ाने पर सरकारी विज्ञापनों पर लुटाया मीडिया वालों को। बेशक विकास हुआ है आपके दल के आलीशान दफ्तर दिल्ली से लेकर सभी राज्यों में बन गये हैं , बिल्कुल ठीक जैसे कांग्रेस को कहते हो सत्तर साल में जो नहीं किया आपने चार साल में खड़ा कर लिया अपने दल के लिए ही। जनता के लिए घर केवल कागज़ों पर कागज़ की नाव की तरह। कागज़ी नाव से बच्चे खेलते है बारिश में , ये जो बहाव है सैलाब आया हुआ है उस में कागज़ की कश्ती नहीं काम आएगी। ग़ज़ल अच्छी है पर मौसम बदला हुआ है। किसी को बिना अनुभव देखे रक्षा सौदे का भागीदार बनाना खतरनाक है। आपने उच्च शिक्षा संस्थान का तमगा दे दिया उसको जो वास्तव में ज़मीन पर बना तक नहीं मगर आपको लाज नहीं आती ऐसा करते खेद ही जताया होता। फ़हरुख अब्दुल्ला की नसीहत बुरी नहीं है दिलों को जीतने की , ताकत से भयभीत करना नफरत की आग से देश को भस्म करना समझदारी नहीं है। किसी दल से देश को मुक्त नहीं करवाना है ये लोकतंत्र है , ये अनुचित मानसिकता को बदलना ज़रूरी है कि हम ही हम हैं। हमीं हम हैं तो क्या हम हैं , तुम्हीं तुम हो तो क्या तुम हो। राजनीति विचारों की जंग है कोई दुश्मनी नहीं हैं। जिस दिन केवल आर एस एस नहीं देश के सभी लोग अपने लगने लगें उस दिन जो दिल की आरज़ू है महान लोगों में नाम शामिल करवाने की खुद ब खुद हो जायेगा। शोहरत जुर्म होती है अगर जिस पल उसकी तम्मना की जाती है , ये बिना चाहे मिलती है जब आप काबिल हो जाते हैं। याद रखना गांधी जी किसी पद पर नहीं रहे , सुभाष भक्त सिंह कोई सत्ता पर नहीं बैठे मगर जनता ही नहीं दुनिया में आदर है नाम है। 

 

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