भगवान से हिसाब मांगता है कोई ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
क्या यही धर्मराज की अदालत है , आत्मा ने निडरता से सवाल किया। चित्रगुप्त जी भी बही खाता छोड़ उसी तरफ देखने लगे। न्यायधीश की ऊंची कुर्सी पर बैठे धर्मराज को अपना अपमान सा लगा। आप कहना क्या चाहते हैं , आत्मा से पूछा। आत्मा ने कहा जनाब आपका परिचय ही जानना चाहा क्या ये भी गुनाह है इस अदालत में। धर्मराज को कहना पड़ा नहीं ऐसा नहीं है मगर आज तक किसी ने पूछा ही नहीं सब को मालूम होता है यहीं सब कुछ चुकाना है। आत्मा ने कहा चलो मान लिया , मुझे मेरा हिसाब मत बताओ मैं जानता हूं। अपना फैसला सुना देना मान भी लूंगा बिना कोई सफाई दिए , मगर आपकी ही तरह मैंने भी हर दिन लिखा था भगवान और भगवान की अदालत का हर हिसाब किताब। मेरे पास कोई नर्क नहीं स्वर्ग नहीं मोक्ष नहीं देने को , मगर आपको आईना तो दिखला सकता हूं। क्या देखना चाहोगे आपके खुद के कर्मों की बात। अधिक समय नहीं लूंगा संक्षेप में सीधी सीधी बात करूंगा। अदालत में मौजूद आत्माओं ने ज़ोर ज़ोर से तालियां बजाईं तो धर्मराज भी घबरा गये। कहीं ये कोई लोकतंत्र की बात तो नहीं , मामला संगीन लगता है। साक्षात भगवान को आने को बुलवाया और ऊंचे सिंहासन पर बिठाकर आत्मा की बात सुन कर समझाने की विनती की। भगवान बोले कहो क्या समस्या है। आत्मा ने कहा सुनोगे ध्यान से मेरी बात पूरी की पूरी बिना बीच में कोई बाधा उतपन्न किये। भगवान मान गये मगर समय की सीमा का ध्यान रखने की बात भी जोड़ दी टीवी वालों की तरह। ठीक है मगर कोई छोटा सा ब्रेक लेने की बात मत कहना जब जवाब देते नहीं बनता हो। ओके फाइन।
भगवान आपने सभी के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब किताब करने का प्रबंध किया मगर खुद आपका हिसाब किताब किसी को देने की व्यवस्था नहीं की। अन्यथा हमारी सरकारों की तरह सी ए जी जैसे संस्थाएं सरकारी योजनाओं की पोल खोल देती हैं। पिछली सरकार इतनी बदनाम हुई कि पूछो मत। पांच साल बाद बदल देते हैं सभी को जब वास्तव में वादे निभाते नहीं हैं। आप पर कोई सवाल ही नहीं करता कि जिस दुनिया को बनाया उसकी हालत को कभी देखा भी है। अपने मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे जाने क्या क्या बनवा कर पत्थर की मूरत बनकर या किसी और तरह अपना गुणगान सुनते रहते हो और समझते हो सब ठीक ठाक है। कहीं कुछ भी ठीक नहीं है मगर आपको चिंता ही नहीं। बुराई पर अच्छाई की विजय दिखाई देती ही नहीं कहीं , बुराई है जो सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है। सच को सूली चढ़ाया जाता है और झूठ की जय जयकार होती है। आपकी कोई अदालत ऐसी है जो आपको भी कटघरे में खड़ा करे और आपको भी दोषी ठहरा सज़ा का एलान करे। हमारे देश की व्यवस्था में लाख खामियां हैं फिर भी हमारे देश की अदालतों के न्यायधीश इतिहास रचते रहे हैं देश की प्रधानमंत्री को अदालत में बुलाकर दोषी ठहराने का फैसला देकर। ये आपके नियुक्त किये धर्मराज आपसे आपका हिसाब मांग सकते हैं। आपने इस बात पर कभी विचार ही नहीं किया आपके नाम पर क्या नहीं हो रहा , आप उसके लिए उत्तरदाई कैसे नहीं हैं। क्या आपका नाम जपना और आपकी अर्चना करना ही धर्म है या वास्तविक धर्म मानवता की रक्षा करना है। आप सब से बड़े जमाखोर हो कितनी ज़मीन कितने आलिशान महलनुमा घर अकेले आपकी खातिर जब करोड़ों लोग भूखे हैं बेघर हैं। लिखवा दिया पापियों का अंत करने आओगे मगर कब आओगे। सरकारी अच्छे दिनों के झूठे वादे में और आपके किये वायदे में अंतर क्या है। सोचोगे तो समझोगे कितनी बड़ी भूल की है अपनी दुनिया की व्यवस्था करना नहीं आता तो नहीं बनाई होती। हम सभी को खिलौना समझ खेलते रहे मगर कभी नहीं सोचा इंसानों पर क्या बीती है।
आदमी को कहा जाता सब से अच्छा है सब से उत्तम योनि है। सब से खराब आदमी ही है। छल कपट झूठ धोखा अन्याय अत्याचार हर बुराई में सब से आगे है। खुश कभी नहीं होता बेशक भगवान ही समझने लगें लोग , तब भी इंसानियत नहीं याद रखता। मुझे तो लगता है भगवान तुम अच्छे लोगों और सच्चे लोगों का कभी साथ नहीं देते , तभी अधर्मी पापी फलते फूलते हैं और ईमानदारी का जीना दूभर है। मुझे बेशक जो चाहो सज़ा दे दो , आपके बारे भी साफ साफ सच्ची बात मन की लिखता रहा हूं। चाहो तो धरती से मंगवा कर पढ़ लेना कुछ भी कल्पना से नहीं लिखा है। आपकी दुनिया की असलियत ही लिखी है। नर्क तो देखा है कोई चिंता नहीं नर्क भेज दो भले , स्वर्ग की चाह कभी की नहीं , मिलेगा भी नहीं और मिल भी जाये तो नहीं रहना मुझे। नेता लोग होते हैं जो खुद स्वर्ग की सुविधाएं पाना चाहते हैं और जनता को नर्क के सिवा कुछ नहीं देते। फिर से जन्म देना तो इंसान नहीं बनाना , इंसानों में इंसानियत बची ही नहीं। पंछी बना देना चाहे मगर पिंजरे में कैद नहीं होना , पेड़ पौधे में भी जीवन होता है कोई सुंगध बांटने वाला साफ हवा छायादार और फलदार पेड़ भी बना सकते हो। कोई रास्ता जिसे लोग कुचलकर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ते जाएं उसकी धूल बनकर भी रहना मंज़ूर है मगर पत्थर नहीं बन सकता तुम्हारी तरह संवेदनहीन नहीं बनना चाहता। अभी फैसला अटक गया है भगवान को मेरा लिखा पढ़ने में जाने कितना वक़्त लगेगा , मैं अभी भी कटघरे में खड़ा हूं और आरोप उस पर लगा है जो कहते है उस से बड़ी अदालत कोई नहीं है। इंसाफ तो करना ही होगा चाहे फैसला खुद भगवान के खिलाफ हो या फिर मेरे। बहुत गहरी ख़ामोशी छाई हुई है।
1 टिप्पणी:
ग़ज़ब sir👌👌
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